बिहार के बोधगया में पिछले दिनों भाजपा सांसद हरि मांझी के पुत्र राहुल कुमार को नशे की हालत में गिरफ्तार किया गया। राहुल बोधगया के नावां गांव में साथियों संग शराब पी रहा था। मेडिकल जांच में उसके शराब पीने की पुष्टि हो गई। प्रदेश में शराबबंदी लागू किए जाने के बाद किसी सांसद के पुत्र के नशे की हालत में पकड़े जाने का यह पहला मामला है।

इस बाबत प्रतिक्रिया में सांसद हरि मांझी ने कहा कि साजिश के तहत उनके बेटे को फंसाकर राजनीतिक बदला लिया जा रहा है। दूसरी ओर भाजपा के विनोद नारायाण झा ने कहा कि बिहार में कानून का राज है। कानून का उल्‍लंघन करने वाला कोई भी हो, उसे छोड़ा नहीं जाएगा। इससे पहले भी कई राजनेताओं के परिजन भी शराब पीते गिरफ्तार हो चुके हैं , जिनमें बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के परिवार के कई सदस्य शामिल हैं | अतः जीतन राम मांझी शराबबंदी को विफल बताते हुए सत्ता में आने पर इसके आदेश को रद करने की घोषणा कर चुके हैं |

राज्य में शराबबंदी क़ानून पर सख्ती से अमल हो रहा है , जिसके चलते क़रीब आठ हज़ार से अधिक लोग शराबबंदी से संबंधित कानून का उल्लंघन करने के आरोप में जेल में है | पिछले दो सालों में एक लाख बीस हज़ार से अधिक लोग जेल की हवा खा चुके हैं | हमारे देश के बिहार के साथ ही गुजरात , नागालैंड , मिजोरम में शराबबंदी लागू है | केरल में इस आशय के किए गए प्रयासों पर सुप्रीमकोर्ट ने रोक लगा दी | फिर भी पूरे देश में शराबबंदी से इन्कार नहीं किया , क्योंकि यह संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल है | प्राचीन काल में भी देश में शराबबंदी के प्रयास हुए | अनेक बौद्ध राजाओं ने अपने शासनकाल में शराबबंदी की नीतियां अपनायीं । चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के काल में कौटिल्य ने शराब की दुकानों पर स्वादिष्ट भोजन रखवा दिये । जो व्यक्ति शराब पीने के लिए दुकान पर जाता, उसके सामने अच्छे भोजन पेश किये जाते । इनका मूल्य बहुत सस्ता होता था । भोजन में कुछ ऐसी औषधियाँ मिली होती थीं, जिनसे शराब की लत छूट जाती थी । इस सम्राट के काल में शराब पीने और पिलाने वाले दोनों दंडित किये जाते थे । सम्राट अशोक भी इस नीति पर चलता रहा ।

मेगस्थनीज और स्ट्रैबो ने लिखा है कि यज्ञों के कालों को छोड़कर भारतीय कभी भी सुरापान नहीं करते [ ईसा पूर्व चौथी शताब्दी के समय ] महात्मा बुद्ध ने यज्ञों के समय होने वाले अनाचारों के ख़िलाफ आवाज़ बुलंद की । उन्होंने मद्यपान [ शराबनोशी ] को बुरा और त्याज्य ठहराया ।

बौद्ध धर्मिक पुस्तकों में शराब के इस्तेमाल के ख़िलाफ जनता को सचेत करने वाली एक शिक्षाप्रद कथा का उल्लेख मिलता है । पाठकों की जानकारी के लिए उसे हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं –

एक दिन की बात है कि प्रभु संसार के सब स्रष्ट जीवों पर दृष्टिपात कर रहे थे । सर्वमित्रा नामक एक राजा था । प्रभु ने देखा कि यह ख़ूब शराब पी रहा है । उसके साथ उसके मंत्री -गण ही नहीं उसकी प्रजा भी शराब की लत से ग्रस्त है । प्रभु ने सोचा, ‘‘यह तो महा पापाचार हो रहा है । हाय ! हाय !! इन इन्सानों पर यह कैसा अभिशाप है । शराब पीने में तो मधुर है, परन्तु इसका परिणाम बहुत भयानक है । इन सबका बुद्धि -विवेक नष्ट हो गया है । ये अनाचार क्यों कर रहे हैं ? यदि यह राजा सुधर जाए तो शेष प्रजाजन भी सुधर जाएंगे ।’’

ऐसा विचार कर प्रभु ने ब्राह्मण रूप धरण किया । एक सुराही में शराब भरकर अपने कंधे पर लटका ली और सर्वमित्रा के पास जा पहुंचे । राजा दरबारियों के साथ शराब पीने में मस्त था । प्रभु ने कहा कि मैं सुगंध्ति मधुर शराब लाया हूं । देखो! कितनी प्रिय चीज़ है बताओ ! तुममें से कौन इसकी कीमत दे सकता है ?

राजा की उत्सुकता को देखते हुए प्रभु ने कहा, ‘‘सुनो राजन इसमें न जल है, न मेद्यों की अमृत बूंदें हैं, न यह किसी पवित्रा स्रोत की पुनीत धारा है, न इसमें सुगंध्ति पुष्पों का सार मधु है, न परदर्शी घृत [ घी ] है और न ही दूध् है जो शरद-किरणों की मधुरिमा से युक्त हो । नहीं, नहीं, इस सुराही में पिशाचिनी शराब है । इस शराब के गुण सुनो ! जो इसको पियेगा उसकी सुध-बुध न रहेगी, वह नशे में चूर होकर भोजन के बदले विष्ठा [ गंदगी ] भी खा सकेगा । ऐसी यह शराब है, इसे ख़रीद लो, इतनी निकृष्ट यह सुराही बिक्री ही के लिए है ।

इस पदार्थ में तुम्हारा समस्त ज्ञान और विवेक नष्ट कर देने की शक्ति है, जिससे तुम अपनी विचारधारा पर अधिकार न रखकर एक जंगली जानवर की तरह व्यवहार कर सकोगे ।

तुम्हारे शत्रु तुम्हारी दशा पर हंसी उड़ाएंगे । तुम इसे पीकर ख़ूब नाच सकते हो, गा भी सकते हो। यह शराब अवश्य तुम्हारे ख़रीदने योग्य है| इसमें एक भी अच्छा गुण नहीं है । इसके पीने से तुम्हारी लाज-भावना जाती रहेगी । तुम नंगे भी रह सकते हो । लोगों का समुदाय यदि तुम पर थूके , तब भी तुम्हें बुरा प्रतीत न होगा । लोग तुम पर गोबर, कीचड़, कंकर-पत्थर उछालें तब भी तुम न जान सकोगे । ऐसी शराब को मैं तुम्हारे पास बेचने के लिए लाया हूं ।

जो स्त्री इसका सेवन करेगी, वह नशे में चूर होकर अपने माता-पिता को रस्सियों से बांध्कर और कुबेर जैसे पति को ठुकराकर पतन के गढ़े में प्रसन्नता से जा गिरेगी । ऐसी यह शराब है ।

इसने अनेक सम्पन्न परिवारों को नष्ट किया है, सुन्दर स्वर्ण शरीर को पर जलाकर भस्म किया है, राजमहल और सम्राटों को धूल में मिलाकर पद दलित किया है, फिर भी इसकी प्यास नहीं बुझती ! ऐसी है प्रलयंकारी यह शराब !

इसे ज़बान पर रखते ही मन मलित हो जाता है, जी ऐंठ जाता है । ख़ूब हंसो, ख़ूब बको, कुछ भी ज्ञान नहीं रहता । उसमें झूठ बोलने का साहस आ जाता है, वह सच को झूठ और झूठ को सच समझने लगता है । नशा करने वाली इस वस्तु [ शराब ] के स्पर्श-मात्रा से ही पाप लगता है, बुद्धि मलिन होती, कष्ट और रोग बढ़ते हैं । यह समस्त अपराधों की जननी है, उज्ज्वल मन का भयानकअन्धकार है, जिसकी तीक्ष्ण ज्वाला शीतल हृदय पर सदैव धधककर दहकती रहती है । जो इसके प्रभाव में होकर अपने माता-पिता, स्त्री , बहन और बच्चों का हंसते-हंसते क़त्ल कर सकता है, ऐसी यह शराब है । हे प्रजा के राजा ! यह पेय तुम्हारे प्रतापी कंठ से नीचे उतरने योग्य है, तुम इसे ख़रीदकर सेवन करो ।

इस शराब को ज़रा देखो तो ! इसका माणिक की भांति हल्का लाल रंग है…इसे पीकर इन्सान जानवर बन जाता है, यह नरक की खान है । प्रभु ने यह बखान करके चारों ओर देखा । सब स्तब्ध् थे । अचानक राजा ने तेज़ी से उठकर अपने शराब के पात्रों-बर्तनों को दीवार से टकराकर चूर-चूर कर डाला । राजा यह कहकर प्रभु के चरणों में गिर पड़ा, ‘‘हाय ! पिशाचिनी, मायाविनी शराब, तू जा ! जा !! मुझे छोड़ !!!’’

महात्मा बुद्ध ने अपने अनुयायियों को नसीहत करते हुए कहा था, ‘‘मनुष्यो! तुम सिंह [ शेर ] के सामने जाते भयभीत न होना-यह पराक्रम की परीक्षा है, तुम तलवार के नीचे सिर झुकाने से भयभीत न होना-यह बलिदान की कसौटी है, तुम पर्वत शिखर से पाताल में पड़ने से भयभीत न होना-वह तप की साधना है, तुम दहकती ज्वालाओं से विचलित न होना-यह स्वर्ण-परीक्षा है, पर सुरा देवी से सदैव भयभीत रहना, क्योंकि यह पाप और अनाचारों की जननी है ।’’

ऋग्वेद [ 7-86-6 ] के अनुसार, वसिष्ठ ने वरुण से प्रार्थना भरे शब्दों में कहा है कि ‘‘मनुष्य स्वयं अपनी वृत्ति अथवा शक्ति से पाप नहीं करता, प्रत्युत भाग्य, सुरा, क्रोध्, जुआ और असावधानी के कारण वह ऐसा करता है ।’’

शतपथ ब्राह्मण [ 5-5-4-28 ] में सोम को सत्य, समृद्धि और प्रकाश एवं सुरा को असत्य क्लेश और अन्धकार कहा है। सुरा अथवा मद्य का सेवन एक महापातक कहा गया है |

हमारे देश में इस समय शराब की 120 करोड़ लीटर वार्षिक क्षमता की 165 फैक्ट्रियां कार्यरत हैं । यहां महिला-दुर्व्यवहार और अपराध की अन्य घटनाओं में भारी वृद्धि होती जा रही है । एक अमेरिकी शोध के अनुसार , 95 फीसद हत्याओं, 24 फीसद आत्महत्याओं के लिए शराब सेवन ज़िम्मेदार है, जबकि 25 से 30 फीसद मानसिक विक्षिप्तता के शिकार हो जाते हैं । वास्तव में शराब-सेवन समाज के लिए कलंक है, अभिशाप है । हर व्यसन से जनता को दूर रखने के लिए व्यापक और प्रभावकारी क़दमों की आवश्यकता है ।

– Dr RP Srivastava , Editor – in – Chief , ”Bharatiya Sanvad”

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