सब कुछ छिन जाता है , मगर जीवन नहीं छिना करता है

कण – कण प्रस्तर चूर्ण बनकर दर्पण नहीं मरा करता है

दिव्य सुधावर्षण नभ – व्योम से , पल में क्षण छिन जाता है

चतुर्दिक आभा हो किंचित, मगर अवसर नहीं मरा करता है ,

सब कुछ छिन जाता है , मगर जीवन नहीं छिना करता है |

 

रिस – रिस कर धरती पर जो जीवन रस की सरित बहाता

विष का विषहर बनकर भी जो निर्लेप भाव की अलख जगाता

जीवन हो सुंदर- सार्थक आत्मवत सर्वभूतेषु बन जाता है

सर्व कल्याणी , समभावी बन वह आत्मरस पा जाता है |

सब कुछ छिन जाता है , मगर संस्कार नहीं छिना करता है

सब कुछ छिन जाता है , मगर जीवन नहीं छिना करता है |

– राम पाल श्रीवास्तव ‘अनथक ‘

 

 

tags : Hindi Poem on Life, Don’t hide

कृपया टिप्पणी करें