अब शहर बलरामपुर बदल रहा है | इस बदलाव को ई रिक्शा के ज़रिए भी देखा और महसूस किया जा सकता है | शहर में ई रिक्शा साल -डेढ़ साल पहले दो-चार दिख जाते थे | अब तो इनकी भरमार है | मैनपुलर रिक्शा दिन-ब-दिन कम होते जा रहे हैं | पहले मैनपुलर रिक्शा के बीस रुपये लगते थे, डिग्री कॉलेज से वीर विनय कायस्थ चौक तक के | ये दूरी कोई एक किलोमीटर की होगी | अब बैटरी रिक्शा से इस दूरी के लिए दस ही रुपये लगते हैं | इस तरह स्वाभाविक है कि लोगबाग बैटरी रिक्शा से शहर के अंदर कहीं जाना पसंद करते हैं | इसमे समय अौर रुपया दोनों की बचत होती है |
मैंने जब ई रिक्शा या बैटरी वाले रिक्शा के चालक की कमाई के बारे में जानना चाहा , तो एक ई रिक्शा के चालक नवजवान दिनेश चौधरी ने बताया कि प्रतिदिन तीन-साढ़े तीन सौ रुपये कमा लेते हैं | एक तरह से उनकी मासिक आमदनी होती है कोई दस या ग्यारह हज़ार रुपये की | दिनेश का कहना है कि वे इस रिक्शे को लोन पर ख़रीदे हैं | सरकारी नहीं, प्राइवेट लोन पर | वे प्रतिमाह 10000 रुपये का मासिक क़िस्त चुकाते हैं | क़िस्त चुकाने के बाद कुछ ख़ास बचत नहीं होती है| वो तो कहिए कि उनके दो भाई और हैं कमाने वाले तो परिवार चल जाता है | वर्ना रोटी के लाले पड़ जाते |
दिनेश चौधरी को इस बात से तसल्ली होती है कि कोई डेढ़ साल बाद रिक्शा अपना हो जायेगा , जो कोई एक लाख छियालीस हज़ार का है | इस रिक्शे को लेने के लिए उनको बहुत भागदौड़ और चिरौरी -विनती करनी पड़ी थी | एक पाँड़े जी जब ग्रांटर बने तब जाकर ई रिक्शा मिला उनको | दिनेश चौधरी अपनी जाति नहीं छिपाते हैं | वे कहते हैं कि मैं हरिजन हूँ | मैं पिछड़ी जाति में नहीं हूँ | मैंने जब कहा कि ई रिक्शा आने से कई लोग जो ख़ुद रिक्शा चलाते थे, उनका रोज़गार फीका पड़ गया है तो दिनेश ने कहा कि नहीं साहब, सबका रोज़गार चल जाता है | सब जी -खा लेते हैं | कोई किसी का हक़ नहीं मारता | सब अपना-अपना भाग्य लेकर आते हैं | इतना कहते -कहते दिनेश कुछ गंभीर होने लगते हैं | उनके चेहरे पर दार्शनिक भाव साफ़ पढ़ा जा सकता है |
– डॉ. चन्द्रेश्वर [ एम एल के कालेज , हिंदी विभाग, एसोशिएट प्रोफेसर /कवि-आलोचक , बलरामपुर , उ. प्र. ]