मनुष्य जब सृष्टि के आयामों – उपादानों एवं उसके सौन्दर्य को देखता है तो उसके मन में कभी यह विचार आता ही है कि यह सब क्या और क्यों है ? मिर्ज़ा ग़ालिब सहज ही कह उठते हैं –
ये परी चेहरा लोग कैसे हैं ?
गमज़ा व इशवा व अदा क्या है ?
शिकने ज़ुल्फे अंबरी क्या है ?
निगहे चश्मे सुरमा- सा क्यों है ?
सब्ज़ा व गुल कहाँ से आये हैं ?
अब्र क्या चीज़ है , हवा क्या है ?
कुछ लोग जीवन के नाना रूपों को देखते हैं , किन्तु उन्हें यथार्थ – बोध नहीं होता . ग़ालिब के शब्दों में –
इक मुअम्मा है समझने का , न समझाने का
ज़िन्दगी काहे को है , ख़ाब है दीवाने का |
कुछ लोग इसे सच्चाइयों का बोलता हुआ साज़ बताने लगने हैं –
महरम नहीं है तू ही नवा -हाए-राज़ का
यां वरना जो हिजाब है पर्दा है साज़ का |
लेकिन कुछ की नज़रें इनके पीछे वास्तविक प्रिय के जलवों की अनुभूति कर लेतीं हैं –
है तजल्ली तेरी सामाने वजूद
ज़र्रा – बे परतवे खुर्शीद नहीं |                                 – ”अनथक ”

– Dr RP Srivastava, Editor – in – Chief , ”Bharatiya Sanvad”

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