ललित मोदी , विजय माल्या , मेहुल चौकसी , नीरव मोदी आदि के बाद गुजरात की फार्मा कंपनी स्टर्लिंग बायोटेक का मालिक नितिन जयंतीलाल संदेसरा और उसका परिवार पिछले दिनों भारतीय बैंकों का 5,383 करोड़ रुपए क़र्ज़ लेकर देश से भाग चुका है। बताया जाता है कि भारत से दुबई और फिर वहाँ से नाइजीरिया या ब्रिटेन चला गया। नाइजीरिया उसके लिए सुरक्षित देश माना जाता है , क्योंकि नाइजीरिया के साथ भारत की प्रत्यर्पण संधि नहीं है। यह भी बताया जाता है कि गत 15 अगस्त को दुबई में जाँच एजेंसियों ने संदेसरा को हिरासत में लिया था। अब दुबई के अधिकारी कहते हैं कि संदेसरा उनके पास नहीं है। वहाँ संदेसरा को किसी स्थानीय मामले में हिरासत में लिया गया था। भारत से जुड़े मामले में कार्रवाई नहीं की गयी , जो एक विचारणीय विषय है। संदेसरा और उसके परिवार की भ्रष्टता अन्य बड़े उन आर्थिक भ्रष्टाचारियों से भिन्न नहीं है। गुजरात के नितिन और उसके भाई चेतन जयंतीलाल संदेसरा वडोदरा की कंपनी स्टर्लिंग बायोटेक के डायरेक्टर हैं। कंपनी ने बैंकों से 5,383 करोड़ रुपए का लोन लिया। इन्होंने बैंकों को यह कर्ज चुकता नहीं किया, जिसके कारण वह एनपीए में बदल गया। आंध्रा बैंक के नेतृत्व वाले बैंकों के कंसोर्शियम ने स्टर्लिंग बायोटेक को लोन दिया था। इस मामले में नेताओं और बड़े अफसरों की मिलीभगत की बात भी सामने आई थी। सीबीआई ने पिछले वर्ष के इसी माह में संदेसरा ब्रदर्स के खिलाफ केस दर्ज किया था। उसी समय ये दोनों भी फरार हैं, मगर मीडिया में इस कांड की चर्चा तक नहीं हुई। स्टर्लिंग बायोटेक के डायरेक्टर राजभूषण ओमप्रकाश दीक्षित, विलास जोशी, चार्टर्ड अकाउंटेंट हेमंत और आंध्रा बैंक के पूर्व निदेशक अनूप गर्ग के ख़िलाफ़ भी मामले दर्ज हैं। दीक्षित और गर्ग को प्रवर्तन निदेशालय ने जून 2018 में गिरफ्तार कर लिया।
इसके बाद इसी मामले में दिल्ली के कारोबारी गगन धवन की भी गिरफ्तारी हुई। स्टर्लिंग बायोटेक की 4,700 करोड़ रुपए से ज्यादा की संपत्ति भी अटैच कर दी गई। सीबीआई की एफआईआर में यह बात भी कही गई है कि ज्यादा से ज्यादा लोन लेने के लिए स्टर्लिंग बायोटेक के निदेशकों ने कंपनी के रिकॉर्ड में बदलाव किया। फर्जी दस्तावेज तैयार कर बैलेंस शीट में गड़बड़ियां कीं। कंपनी का मार्केट कैप भी गलत बताया गया। टर्नओवर और टैक्स भुगतान के आंकड़े बढ़ा चढ़ाकर पेश किए। संदेसरा भाइयों ने दुबई और भारत में 300 से ज्यादा बेनामी कंपनियों के जरिए रकम का हेर-फेर किया। 31 मार्च 2008 को खत्म वित्त वर्ष में 50 करोड़ रुपए की खरीद की, लेकिन खाते में 405 करोड़ रुपए दिखाए। वित्त वर्ष 2007-08 में टर्नओवर 304.8 करोड़ रुपए रहा। लेकिन, आयकर रिटर्न और बैलेंस शीट में 918.3 करोड़ के टर्नओवर की जानकारी दी। इस प्रकार इस ‘ पार्टी ‘ की तरफ से भी भारत से काफी काला धन विदेश में गया। मोदी सरकार ने विदेशों से काला धन वापस लाने के लिए एस आई टी की एक समिति बनायी थी | उस समय इस क़दम को ऐतिहासिक बताकर स्वागत किया गया था ,लेकिन चार साल से अधिक समय बीत जाने के बाद इस दिशा में कोई उल्लेखनीय प्रगति न होना वाक़ई तशवीशनाक और चिंताजनक है | इसके विपरीत ललित मोदी, नीरव मोदी और विजय माल्या के आर्थिक अपराधों से संबंधित दस्तावेज़ जो आयकर विभाग ने नई दिल्ली के सिंधिया हाउस में रखे थे, वे दो जून 2018 को ही जलकर ख़ाक हो चुके हैं। भाजपा के लोग ख़ुद भी विदेश से काले धन की वापसी पर पहले ही सवालिया निशान लगा चुके थे। उनकी भविष्यवाणी अब सच साबित हो रही है। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने कहा था कि सरकार विदेशों में जमा काला धन वापस नहीं ला पाएगी | दूसरी ओर केन्द्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली भी झूठे साबित हो चुके हैं ! उन्होंने कहा था कि काले धन की वापसी में लंबी प्रतीक्षा की ज़रूरत नहीं है | इन बयानों के बीच यह सच भी सामने रहे कि केंद्र सरकार में एस आई टी गठित करने की घोषणा के बाद इस विषय पर कोई गंभीर चर्चा नहीं हुई ! एसोचैम के अनुसार , विदेशों में भारतीयों के दो हज़ार अरब डालर जमा हैं | आये दिन विदेशी बैंकों से रक़म निकाले जाने की सूचनाएं भी आती रहती हैं | कुछ समय पहले एसोचैम की कानूनी मामलों की समिति के तत्कालीन अध्यक्ष ने कालेधन पर एसोचैम की अध्ययन रिपोर्ट जारी करते हुए कहा था कि विदेशों में पड़े कालेधन को वापस लाने के लिए ‘माफी योजना एक बेहतर और व्यावहारिक योजना है। ‘सरकार ने 1997 में इस प्रकार की ‘आय की स्वैच्छिक घोषणा योजना (वीडीआईएस)’ के जरिए 10,000 करोड़ रुपये जुटाए थे , हालांकि इस योजना को लेकर विरोध के स्वर उठे और कहा गया कि यह योजना ईमानदार करदाताओं को दंडित करने कर चोरी करने वालों को प्रोत्साहन देने के समान है। सरकार ने बाद में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया, जिसमें कहा गया कि वीडीआईएस इस तरह की आखिरी योजना है और वह भविष्य में ऐसी कोई योजना नहीं लाएगी। | बताया जाता है कि ओईसीडी टैक्स फोरम जो कि विभिन्न देशों के बीच पारदर्शिता के लिए सूचनाओं के आदान-प्रदान पर एक मिशन के तहत काम कर रहा है, सितंबर 2017से 2018 के अंत तक यह अपनी प्रतिबद्धता को पूरी कर सकेगा , लेकिन यह काले धन को वापस लाने में कितना कारगर होगा , यक़ीनी तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता | इस मामले में वर्तमान केंद्र सरकार पूर्व सरकारों से भिन्न नहीं दिखती | पूर्व सरकारों की तरह यह भी दिखावे पर यक़ीन रखती है | पूर्व की कांग्रेस नीत यूपीए सरकार ने 21 मई 2012 को काले धन पर श्वेतपत्र जारी किया था , जिससे यह लगा था कि वह काले धन की समस्या से निबटने के प्रति गंभीर है , लेकिन आगे चलकर यह दिखावे का क़दम साबित हुआ | तत्कालीन वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी द्वारा पेश इस दस्तावेज़ में भ्रष्टाचार के मामलों की तेज़ी से जाँच और दोषियों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई के लिए जल्द से जल्द लोकपाल और लोकायुक्त जैसी संस्थाओं का गठन किए जाने की बात कही गयी थी | तत्कालीन वित्तमंत्री ने आयकर विभाग में अभियोजन पक्ष को मज़बूत बनाने और प्रत्यक्ष कर क़ानूनों व नियमों को युक्तिसंगत बनाने की ओर इशारा करते हुए त्वरित अदालतों के गठन एवं अपराधियों को कड़ी सज़ा के प्रावधानों का समर्थन किया था | कुल 97 पेज के इस श्वेत पत्र में किसी आर्थिक अपराधी का नाम नहीं लिया गया था और न ही इस बारे में कोई जानकारी दी गयी थी कि दरअसल कितना काला धन विदेशों में है | सरकार ने इस सिलसिले में अन्य एजेंसियों के आकलन शामिल किए थे | अफ़सोस की बात यह है कि कांग्रेस ने श्वेतपत्र तो पेश कर दिया , मगर कभी इस दिशा में कोई गंभीर क़दम नहीं उठाया | अब मोदी सरकार भी पूर्व सरकार की ही पैरवी करती नज़र आती है | न तो लोकपाल की नियुक्ति हुई न ही लोकायुक्त बने ! सरकार को चाहिए कि वह काला धन स्वदेश लाने के लिए ठोस प्रयास करे , ताकि देश की चरमराती अर्थव्यवस्था पर रोक लग सके | – Dr RP Srivastava , Editor – in- Chief, ” Bharatiya Sanvad ”
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