मिटा दे अपनी हस्ती को , अगर कुछ मर्तबा चाहे |
कि दाना खाक में मिलकर गुले गुलज़ार होता है ||
– अल्लामा इक़बाल
व्याख्या – ऐ जीव , यदि तू कुछ प्राप्त करने का इच्छुक है , तो अपने अस्तित्व को अर्थात अपनी अहंता को पूरी तरह मिटा दे , क्योंकि दाना [ बीज ] जब मिट्टी में पूर्ण रूप से मिल जाता अर्थात अपने आपको मिटा देता है |

तभी वह पौधा बनके फलता – फूलता है | इसलिए यदि कुछ बनने की अभिलाषा है , तो स्वयं को मिटा दो अर्थात अहंता – अहंकार का त्याग कर दो | अहंकार की भावना जीव के उपार्जन को पलभर में नष्ट कर देती है |
श्रीमद भगवद गीता [ 3 / 27 ] में है – अहंकार विमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते || – अर्थात जिसका अन्तःकरण अहंकार से मोहित हो रहा है , वह अज्ञानी ऐसा मानता है कि मैं ही कर्ता हूँ | वह अपना ही सर्वनाश करता है | अतः अहंता – अहंकार के त्याग से ही मानव – जीवन पल्लवित होता है | – Dr RP Srivastava

कृपया टिप्पणी करें