पिछले हफ़्ते एक साथ दो ख़बरें मीडिया में आईं। पहली ख़बर यह कि पिछले दस वर्षों में सरकारी गोदामों में रखा क़रीब सात लाख अस्सी हज़ार कुंतल अनाज सड़ गया। सड़ने की ख़ास वजह अनाज का बरसाती पानी से भीगना बताया जाता है। यह तथ्य भी सामने आया कि बदइन्तिज़ामी की वजह से हर दिन 43 हज़ार लोगों के हिस्से का अनाज सड़ रहा है। साथ ही दूसरी ख़बर यह आई कि देश से भूख और ग़रीबी दूर करने की भारत की कोशिशें एक बार फिर नाकारा साबित हुई हैं। विकास के बड़े – बड़े दावों के बीच हमारी बदहाली कितनी बढ़ी हुई है, 2018 का ग्लोबल हंगर इंडेक्स बख़ूबी उजागर करता है। यह इंडेक्स बताता है कि देश में ज़ुबानी ‘जमा – खर्च ‘ और ‘ हवा – हवाई ‘ का पुख़्ता माहौल है। तभी तो शानदार , चमकीले – भड़कीले आंकड़ों की सुनहरी छाया में देश में रोज़ाना 821 बच्चे भूख की वजह से दम तोड़ देते हैं ! हमारे बृहत देश में रोज़ाना लगभग बीस करोड़ लोग भूखे रह जाते हैं या अल्प मात्रा के भोजन पर निर्भर हैं ! अब जानिए ग्लोबल हंगर इंडेक्स के आईने में देखें, तो साफ़ पता चलता है कि इस बार भारत की रैंकिंग और गिरी है। हमारे देश को 119 देशों की सूची में 103वां स्थान मिला है। पिछले साल भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 100वें स्थान पर था। फिर एक ही साल में ऐसा क्या हो गया कि केंद्र सरकार द्वारा नोटबंदी और उसके बाद जी एस टी लाने के बाद भूख का संकट घटने के बजाय बढ़ गया। जो आँकड़े सामने हैं , वे सभी को हैरान -परेशान करनेवाले हैं। 2014 में केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद से ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की रैंकिंग में लगातार गिरावट आई है ! 2014 में भारत इस इंडेक्स में 55वें पायदान पर था। 2015 में 80वें, 2016 में 97वें और पिछले साल 100वें पायदान पर आ गया। इस बार रैंकिंग तीन पायदान और नीचे आ गई। उल्लेखनीय है कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स की शुरुआत साल 2006 में इंटरनेशनल फ़ूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट ने की थी | वेल्ट हंगरलाइफ़ नाम के एक जर्मन संस्थान ने 2006 में पहली बार ग्लोबल हंगर इंडेक्स जारी किया था | हमारे देश में खाद्य सुरक्षा क़ानून लागू है , जिसके तहत भुखमरी , कुपोषण और खाद्य असुरक्षा के लिए सरकार को ज़िम्मेदार माना गया है | मगर लगता है कि हमारे यहां इस क़ानून की कोई परवाह नहीं करता ! तभी तो यह संगीन सूरतेहाल हैं , साल – दर – साल बदहाली का ही आलम है। यह क़ानून भी सुविधावादी है ! क्या इसे इच्छानुसार ही अपनाया जाता है और वह भी काग़ज़ों पर ? ! दुनिया में इस समय भूखे लोगों की संख्या लगभग 7,950 लाख से अधिक है, जिनमें से एक चौथाई भारत में रहते हैं। वास्तव में भारत में भूखे लोगों की संख्या में लगातार इज़ाफ़ा बेहद चिंता का विषय है | 2014 में जब ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की स्थिति सुधरी थी और यह 55वें स्थान पर आ गया था , तो उस समय की रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में 1,946 लाख लोग कुपोषण के शिकार हैं, जो भारत की कुल जनसंख्या के 15.2 फीसदी है। आज निश्चित रूप से इस जनसंख्या में भारी इज़ाफ़ा होगा ! 1990-1992 में भारत में कुपोषितों की तादाद लगभग 2,101 लाख थी। हमारे देश का यह खुला सच है कि हमारे यहाँ हर साल लाखों टन अनाज सिर्फ भंडारण के उचित प्रबंध के अभाव में बर्बाद हो जाता है | खाद्य सुरक्षा क़ानून में सस्ते रेट पर चावल , गेहूं और मोटे अनाजों को उपलब्ध कराने की व्यवस्था है | इसके बावजूद भूखे लोगों की तादाद घट नहीं पा रही है ! कितनी बड़ी विडंबना है कि सरकार अनाज को तो सड़ने देती है , दूसरी ओर यह कहती है कि अनाज की कमी है , लिहाज़ा वह गरीब जनता को मुफ़्त में अनाज नहीं उपलब्ध करा सकती | भूखे लोगों तक मुफ़्त अनाज आपूर्ति के सुप्रीमकोर्ट की हिदायत पर बार – बार सरकार यही बात कहकर पल्ला झाड़ लेती है | सरकार जो अनाज आयात करती और किसानों से ख़रीदती है , उसे भ्रष्ट अधिकारी और कर्मचारी अमूमन सड़ा ही डालते हैं | फिर शराब कंपनियों को औने = पौने दामों पर देकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। चिंता और हैरानी की बात यह भी है कि उचित भंडारण न हो पाने के कारण अनाज के सड़ने की खबरें पिछले कई वर्षों से आती रही हैं, लेकिन इस दिशा में सरकार को कोई ठोस कदम उठाने की जरूरत महसूस नहीं हुई। खाद्य सुरक्षा क़ानून के आने के बाद यह आशा की जा रही थी कि देश से भुखमरी का खात्मा हो जाएगा , किन्तु व्यवहार में ऐसा नही दीखता | आज भी करोड़ों लोगों को यह सोचना पड़ता है कि आज पूरे दिन पेट भरने की व्यवस्था कैसे होगी ? सुप्रीम कोर्ट की फटकार का भी सरकार पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता | भंडारण में व्यापक खामियों के चलते लाखों टन अनाज सड़ जाने की खबरों के मद्देनजर कुछ साल पहले सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी कि अगर भंडारण का प्रबंध नहीं किया जा पा रहा है तो क्यों नहीं अनाज को गरीबों में मुफ्त बांट दिया जाता। इसके अनुपालन में सरकार मूक – बधिर नज़र आती है | सरकार एक तरफ़ यह दावा करते नहीं थकती कि देश में अनाज प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं , फिर भी देश में भूख से मौतों का सिलसिला बरक़रार है | हैरानी की बात है कि एक ओर भंडारण के क्षेत्र में निजी क्षेत्र को बड़े पैमाने पर प्रोत्साहित किया गया, लेकिन स्थानीय जरूरतों के हिसाब से सरकारी पैमाने पर ऐसे प्रबंध करना या फिर इस व्यवस्था का विकेंद्रीकरण करके सामुदायिक सहयोग से इसे संचालित करना जरूरी नहीं समझा गया। इसके अलावा, जरूरत से अधिक भंडारण को लेकर खुद कृषि मंत्रालय से संबद्ध संसदीय समिति की आलोचना के बावजूद यह सिलसिला रुका नहीं है। सरकार की लापरवाही से स्थिति दिन – प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है | ऐसे में खाद्य सुरक्षा क़ानून के क्रियान्वयन पर सवालिया निशान लग गया है | सरकार को चाहिए कि इस गंभीर समस्या पर संजीदगी के साथ ध्यान दे और भुखमरी से हो रही मौतों को रोककर देश पर लगे इस बदनुमा दाग़ को मिटाए। अदम गोंडवी [ रामनाथ सिंह ] ने क्या ख़ूब आह्वान किया है –

छेड़िए इक जंग, मिल-जुल कर ग़रीबी के ख़िलाफ़

दोस्त, मेरे मज़हबी नग़मात को मत छेड़िए ……
– Dr RP Srivastava , Editor – in – Chief, ” Bharatiya Sanvad ”

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