इस देश का दुर्भाग्य है कि यह आज़ादी के समय से ही संकीर्ण राजनैतिक शतरंज का मोहरा बना हुआ है और जब जिसका दिल चाहता है वह इसे राजनैतिक दाँव पर लगा देता है। संक्रीण राजनीति ही थी जिसके चलते आजाद हिन्द सरकार और आजाद हिन्द सेना के विंग कमांडर आजादी के मतवाले भारतमाता से सच्चे सपूत नेताजी सुभाषचंद्र बोस को गुमनामी जिन्दगी व्यतीत करनी पड़ी। इ़धर राज्यों एवं जिलों के नाम बदलने का राजनैतिक दौर पिछले दो तीन दशकों से चल रहा है और नाम बदलने के नाम पर राजनीति होने लगी है। हर जिले की पहचान वहाँ के विशेष व्यक्तियों एवं विशेष ऐतिहासिक पौराणिक महत्व से होती है।जैसे वाराणसी जिले का नाम आते ही काशी और काशी नरेश के साथ भगवान भोलेनाथ गौरीशंकर भवानीशंकर की याद आ जाती है। इसी तरह फैजाबाद की मूल पहचान भगवान राम की प्रिय नगरी अयोध्या से होती है और मथुरा की पहचान मथुरा के साथ ही वृंदावन से होती है। इलाहाबाद की पहचान तीर्थराज प्रयागराज से होती है, जिससे दुनिया परिचित हैं और हर बारहवें साल महाकुम्भ का मेला यहाँ पर लगता है। दशकों पहले भाजपा के कल्याण सिंह सरकार में इलाहाबाद एवं फैजाबाद का नाम बदलने की पहल हुई थी, जिसे बसपा सरकार के जमाने में रद्द कर पुर्नबहाली कर दी गई थी। इस बार भी भाजपा की प्रदेश सरकार के अगुआ योगीजी ने पहले महामहिम राज्यपाल महोदय की मौजूदगी एवं उनकी सहमति से एक कार्यक्रम के दौरान पुनः जिले का नाम बदलकर इलाहाबाद की जगह प्रयागराज रख दिया गया है, जिसकी औपचारिकता भी पूरी कर ली गई है। वैसे फैजाबाद की जगह अयोध्या तथा इलाहाबाद की जगह जिले का नाम प्रयागराज रखने की माँग एक लम्बे अरसे से हो रही है, लेकिन रामसनेहीघाट दरियाबाद को जिला तथा रूदौली तहसील की तरह यह मामला राजनैतिक पिच पर फुटबाल बना हुआ है। इलाहाबाद जिले का नाम बदलकर का तीर्थराज प्रयाग के नाम रखने का फैसला भारतीय धर्म संस्कृति की पहचान को स्थायित्व देने वाला है जिसका प्रमाण धर्मग्रंथों में मौजूद हैं।सरकार ने इलाहाबाद का नाम तो बदल दिया है लेकिन अभी भगवान विष्णु के रामावतार से जुड़ी राम नगरी अयोध्या की तरफ धर्मानुरागी सरकार ने ध्यान नहीं दिया है, जबकि अयोध्या आज भी विश्व के मानचित्र पर सर्वोच्च स्थान बनाये हुये है।प्रयागराज की तरह अयोध्या के नाम पर जिले का नाम न होना संकीर्ण राजनैतिक सोच एवं गुलामी मानसिकता का परिणाम ही कहा जा सकता है।यह सही है कि मुग़ल शासकों एवं अग्रेजों ने हमारी मूल संस्कृति एवं इतिहास को बदलने में अपनी जान लगा दी और जाते- जाते आजादी के नाम पर हमकों बेवकूफ बना कर हमें सोने की चिड़िया से लोहे की चिड़िया बना गये। इस समय आज़ादी और अंग्रेजों को लेकर तरह की चर्चाएं शंकाएँ व्यक्त की रही हैं और पूर्ण आज़ादी पर प्रश्न चिन्ह लगाकर राष्ट्रगान पर टीका – टिप्पणी होने लगी हैं। जिले की धरोहरों एवं पहचान के साथ राजनीति उचित नहीं लगती है, क्योंकि हमारे देश की संस्कृति देवी – देवताओं एवं पीर – पैगम्बरों से जुड़ी हुई है।

– भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी
रामसनेहीघाट, बाराबंकी, उत्तर प्रदेश

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