क्या कुछ न कहा रोकर नादारों के शेवन ने ,
कुछ भी न सुना लेकिन सरकार की ऐंठन ने |
बांधा है ‘ चियाँ ‘ सेहरा जब से किसी रहज़न ने ,
क्या रूप सँवारा है शासन तेरी दुल्हन ने |
क़ानून हुआ उनका ऐसी मिली आज़ादी ,
नफ़रत का दिया तोहफ़ा मौजूदा इलेक्शन ने |
हर एक महकमे में किस दर्जा घोटाला है ,
बरबाद किया सबको आज़ादी – ए गुलशन ने |
महंगाई ख़िज़ाँ – सी है सब फूल हैं मुरझाए ,
ये बात कही रोकर बरबाद – ए गुलशन ने |
अब कैसे डिनर होगा होगा बुधुआ तेरी शादी का ,
मजबूर किया हमको पाबंदी – ए राशन ने |
रिश्वत के ‘ चियाँ ‘ डिब्बे बेख़ौफ़ हैं पटरी पर ,
स्पीड बढ़ा दी है सरकार के इंजन ने |
– चियाँ बलरामपुरी [ ओम प्रकाश सक्सेना ]
[ ‘परिवेश’, हिंदी मासिक, जुलाई 1983, पृष्ठ 9 ]
[ शेवन – रुदन , विलाप
ख़िज़ाँ – पतझड़ ]