सभी जानते हैं कि इस देश से अंग्रेजी सरकार को भगाने में महात्मा गांधी के अहिंसात्मक आंदोलन से अधिक अहम भूमिका नेताजी सुभाषचंद्र बोस और उनकी आजाद हिन्द फौज की थी। बरतानिया सरकार कांग्रेस के धरना प्रदर्शन आंदोलन से उतनी भयभीत नहीं थी जितना नेताजी की फौज से थी। आजादी दिलाने में नेताजी की भूमिका को भुलाया नहीं जा सकता है क्योंकि उन्होंने जो जज्बा दिखाया वह किसी जनूनी शेरेहिन्द से कम नहीं था।नेताजी सुभाषचंद्र बोस आजाद हिन्द सरकार और फौज गठन के पहले कांग्रेस के एक अहम हिस्सा हुआ करते थे इसीलिए एक बार उन्हें सर्वसम्मति से कांग्रेस का अध्यक्ष चुन लिया गया था।बाद में उन्होंने वसूलों सिद्धांतों एवं महात्मा गांधी जी की इच्छा के अनुरूप अध्यक्ष पद को छोड़कर आजाद हिन्द फौज के विंग कमांडर बन गये थे। उन्होंने जिन विपरीत परिस्थितियों में आजाद हिन्द फौज का गठन करके उसे सक्रिय किया था उसकी दुनिया में मिशाल मिलना मुश्किल है। देश को अपनी सरकार भले ही आजादी मिलने के बाद मिली हो लेकिन नेताजी के अगुवाई वाली आजाद हिन्द सरकार को गठन आजादी मिलने के पहले ही कर लिया गया था।सरकार का गठन ही नहीं कर लिया गया था बल्कि सरकार ने काम करना भी शुरू कर दिया था। अंग्रेज तबतक आजादी देने के मूड में नहीं थे जबतक कि आजाद हिन्द फौज ने कूच का ऐलान नहीं किया था। आजाद हिन्द फौज के हमले के बाद अंग्रेजों को लगा कि अब अगर उसने देश छोड़ने में विलंब किया तो आजाद हिन्द फौज से जंग जीत पाना असंभव हो जायेगा और खाली हाथ भी जान बचाकर भाग पाना दुश्वार हो जायेगा।सभी जानते हैं कि आजादी मिलने के पहले ही आजाद हिन्द फौज ने नेताजी की अगुवाई में कई राज्यों को फतह करके आजाद हिन्द सरकार का झंडा फहरा दिया था। तत्कालीन कांग्रेस को भी लगा कि अगर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की फौज की अगुवाई में आजादी मिली तो सत्ता का निष्कंटक सुख नहीं मिल पायेगा और जो नेताजी चाहगें वहीं होगा।यहीं कारण था कि नेताजी को आतंकी बनाकर उनके जिंदा या मुर्दा मिलने पर अंग्रेजों को सौंपने का सौदा कर लिया गया और जो आजादी नेताजी चाहते थे वह हमें नहीं मिल सकी। यह दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि हमें आजादी नहीं दी गई है बल्कि कुछ शर्तों के साथ निश्चित अवधि के लिए हमें सत्ता हस्तांतरित की गई हैं। इलाहाबाद का नाम तो बदलकर प्रयागराज रखा जा सकता है लेकिन विजय स्तंभ मुगल गार्डेन जैसे गुलामी के प्रतीकों का नाम नहीं बदला जा सकता है। रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा अंग्रेजी अफसर के स्वागत में लिखा गया स्वागत गीत आज हमारा राष्ट्रगान बना हुआ है।आजादी मिलने के बाद कल पहली बार राजनैतिक आजाद हिन्द सरकार के गठन की 75वीं वर्षगांठ की पुण्य स्मृति में एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन ही नहीं किया गया बल्कि पहली बार लालकिले की प्राचीर पर राष्ट्रीय तिरंगा भी फहराया गया। सरकार ने भले ही किसी राजनैतिक महत्वाकांक्षा के वशीभूत होकर पहली बार नेताजी सुभाषचंद्र बोस और उनकी आजाद हिन्द सरकार को याद किया हो लेकिन दुख की बात तो यह है कि इसके पहले किसी भी सरकार ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया और आजादी के बाद से अबतक सिर्फ स्वाधीनता दिवस पर ही लालकिले से ध्वज फहराने की परम्परा रही है।परसों आजाद हिन्द सरकार के गठन की पुण्य तिथि पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा लालकिले से राष्ट्रध्वज फहराकर एक नया इतिहास रच दिया गया है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है।आजाद हिन्द फौज का गठन 75 साल पहले 1943 में हुआ था और दुनिया के11 देशों की सरकारों ने उसे मान्यता भी दे दी थी। सिंगापुर में प्रांतीय सरकार की स्थापना भी हो गयी थी तथा आजाद हिन्द फौज लगातार जोरदार ढंग से दुश्मनों से छक्के छुड़ाने में जुटी थी। प्रधानमंत्री मोदी का इस अवसर पर यह कहना शत प्रतिशत सही है कि उनका परम सौभाग्य है जो कि उन्हें इस अवसर पर तिरंगा फहराया रहा हूँ। नेताजी की आजाद हिन्द फौज और आजाद हिन्द सरकार के देश के प्रति बलिदानों को भुलाया नहीं जा सकता है। उनके बहादुर जवानों की वीरता उनके बलिदान एवं उनकी देशभक्ति को देश भूल नहीं सकता है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस के सम्मान में जो कुछ कहा वह सूर्य को चिराग दिखाने जैसा था क्योंकि बोस साधारण व्यक्ति नहीं बल्कि अवतारी अद्भुत क्षमता के त्यागी तपस्वी भारत माता के सच्चे सपूतों में थे। उन्होंने इस देश पर अपना सारा जीवन न्यौछावर कर दिया और उन्हें अपने ही देश भेष बदलकर एक संत फकीर का गुमनामी जीवन व्यतीत करना पड़ा क्योंकि सरकार उन्हें विमान हादसे में मृत घोषित कर चुकी थी। अस्सी के दशक में फैजाबाद रोडवेज स्टेशन के बगल एक गुमनामी बाबा की मौत हुयी थी और उनके पास मिली सामग्री से दावा किया गया था कि वहीं नेताजी सुभाषचंद्र बोस थे। उनके सम्मान में आजाद हिन्द सरकार के गठन की पुण्य स्मृति पर लालकिले से राष्ट्रीय ध्वज फहराने से उनका ही नहीं बल्कि उनके समर्थक करोड़ो देशवासियों एवं भारत माता का का सम्मान है।
– भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी
रामसनेहीघाट, बाराबंकी, यू पी