वाजिद अली की जान वतन की थी आबरू,
हज़रत महल थी शाने अवध शाने लखनऊ |
दुश्मन को याद आ गया अपनी छटी का दूध,
हिम्मत को इनकी देखके हैरां थे सब उदू |
अहले नज़र ही देखेंगे हज़रत महल का काम,
तारीख़ की जबीं पे नुमायाँ है जिनका नाम |
आज़ादी – ए वतन के लिए ये बहादुरी,
अँग्रेज़ जिनके नाम से डरते रहे मुदाम |
शाने अवध का आँखों में मंज़र लिए हुए,
अँग्रेज़ पहुँचे लखनऊ लश्कर लिए हुए |
ख़ुफ़िया पुलिस ने इसकी ख़बर दी मगर ”चियाँ”’,
हज़रत महल थीं हिम्मते हैदर लिए हुए |
वह सूरमा कि अज़्मे हुसैनी था जिसकी शान,
हज़रत महल की क्या कहें कैसी थी आनोबान |
वाजिद अली नवाब को थीं बेगमें अज़ीज़,
हुब्बे वतन की जिसकी है मशहूर दास्तान |
आज़ादी – ए वतन के लिए सूरमा बनी,
बेख़ौफ़ जांनिसारों की तू रहनुमा बनी,
कश्ती बचाके अपनी गई काठमांडू,
तूफ़ाने हुर्रियत के लिए नाख़ुदा बनी |
कब तक वह लड़ती थोड़े ही थे साथ जांनिसार,
हिम्मत न हारी खाई शिकस्तगी बार – बार |
शर्ते मसालहत में था काफ़ी ज़मीनो ज़र,
ठुकराया उसको और रहा अज़्मे उस्तुवार |
– चियाँ बलरामपुरी
[ ओम प्रकाश सक्सेना ]
[ ”परिवेश”, हिंदी मासिक, अगस्त 1983, प्रधान संपादक / प्रकाशक – राम पाल श्रीवास्तव, बलरामपुर, उत्तर प्रदेश ]
उदू – दुश्मन , जबीं – भाल , मुदाम – हर पल , हुब्बे वतन – देश – प्रेम , हुर्रियत – आज़ादी , नाख़ुदा – कर्णधार , मसालहत – समयानुकूल हित , अज़्मे उस्तुवार – दृढ़ संकल्प |