रात में ही आ गए थे मगर सुबह हुई नहीं

मकान की तलाश मगर झोपड़ी खड़ी नहीं |

काश, किस क़दर मुंहतकी निगाह से देखता रहूँ

क्यों निर्झर पंखुरियों  में गंदगी तो सनी नहीं |

पुरलुत्फ़ सरगोशियों की टोह में चला था जुगनू

कहीं सायाफ़िगन न हुआ , कहीं रोशनी नहीं |

आ बतलाऊं तुझे वह बात आदम की आज

कभी पोशीदा थी जो शै मगर अनजाने में नहीं |

मैं परवाह नहीं करता इन दुन्दभियों का मगर

वह जांनिसार ‘ अनथक ‘ किसी दीवाने में नहीं |

– राम पाल श्रीवास्तव ‘ अनथक ‘

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जारी है सफ़र सदियों का अनथक

जारी है सफ़र सदियों का अनथक

एक – दो निशां तो छोड़ के चला जा |

– राम पाल श्रीवास्तव ‘ अनथक ‘

[ 29 March 2015 , World Cup Final Day]

 

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