आज मेरे जिगरी दोस्त, मशहूर सहाफ़ी [ पत्रकार ] मरहूम शाहिद रामनगरी [ पूर्व चेयरमैन, मदरसा एजूकेशन बोर्ड, बिहार ] की पुण्यतिथि है | आज ही के दिन यानी 30 अक्तूबर 1991 को पटना में उनका निधन हुआ था | उस वक़्त मैं दिल्ली में था | चाहकर भी नहीं जा सका आख़िरी रुसूम में शिरकत के लिए | बड़ी शिद्दत से याद आ रहे हैं शहीद भाई | उनका हँसता, मुस्कराता चेहरा आज भी मेरे सामने है | उनका मूल नाम मुहम्मद सिराजुद्दीन अंसारी था, लेकिन लेखन – कर्म में उन्होंने सदा अपने क़लमी नाम ” शहीद रामनगरी ” का ही इस्तेमाल किया | शाहिद भाई का जन्म रामनगर [ वाराणसी ] में 1927 में हुआ था | वे ‘ रामनगर के गाँधी ‘ हाफ़िज़ अबू मुहम्मद रामनगरी के सबसे बड़े बेटे थे | शाहिद भाई की गणना उर्दू के बड़े पत्रकारों में होती है | लेकिन उन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी बिताई मफ़्लूकुलहाली और निर्धनता में | इसी हाल में उन्होंने उर्दू पत्रकारिता को अपनी ख़ुदादाद प्रतिभा से मालामाल किया | इतनी क़ीमती बौद्धिक पूंजी वे छोड़ गए हैं कि उन्हें कभी फ़रामोश नहीं किया जा सकता |

चेयरमैन बनाये जाने एवं मंत्रिपद का दर्जा मिलने की ख़ुशी में शाहिद भाई इतने भावविभोर हो उठे थे कि उन्हें दिल का दौरा पड़ गया था और अपने वास्तविक प्रभु से जा मिले . बहरहाल वे अध्यक्ष बने …. पदभार ग्रहण किया …. कुछ पल , घंटे के लिए ही सही . असलन शाहिद भाई थे ठेठ पत्रकार ..  जीवट पत्रकार ….. मिशनरी ज़ज़्बे के पत्रकार  … वे मेरे लिए अब भी ज़िन्दा हैं | उनका सांवला रंग, दुबला – पतला शरीर, चेहरे पर ख़शख़शी दाढ़ी  …… इस बाहरी लुक के साथ ही उनके अंदर के लुक का तालमेल सोने पर सुहागा था  …… एक इंसान का इंसान से उनका जो लगाव था , वह ख़ुलूस और मुहब्बत की भी वर्जनाएं पार करता हुआ  ….   उन्हें ” हाज़िर नाज़िर ” मानकर एक स्वरचित शेअर नज्र कर रहा हूँ —

ऐ ख़ुदा , देता तो ऐसा देता क्यों है ?
जो मेरे दिल के दरीचे में न समाए |

शाहिद भाई मुझसे उम्र में तीस साल से अधिक बड़े थे , लेकिन थे दोस्त   … सच्चे दोस्त |  वैसे वे मेरे पटना में मीठापुर स्थित किराये के मकान में आते रहते थे | जब वे मेरी शादी के बाद तशरीफ़ लाए, तो मैंने पत्नी किरन से उनका परिचय कराया | उनके जाने के बाद पत्नी जी ने कहा कि ”ये आपके मित्र कैसे हो सकते हैं ? ये तो उम्रदराज़ हैं ?” मैंने जवाब दिया , ” हाँ , सच है ज़ईफ़ हैं , मगर दोस्त हैं |”

शाहिद भाई इमारते  शरीआ के मुखपत्र ” नक़ीब ” के एडीटर थे लंबे वक़्त तक, जहां से उन्हें एक बंधी सैलरी मिलती थी, जिससे उनके परिवार का सही से गुज़र – बसर भी नहीं हो पाता था |  इसलिए उन्होंने मजबूरन अन्य उर्दू अख़बारों में पार्ट टाइम काम किया | सीनियर होने के नाते  अक्सर वे अख़बारों में लीडर राइटर के तौर पर अपनी भूमिका निभाते ! मुझे याद है , एक बार वे मुझे ” ईसार ” [ उर्दू दैनिक ] के दफ़्तर ले गए | वे मेरी उर्दू – अभिरुचि वे बहुत प्रभावित थे | ”ईसार” दफ़्तर में उन्होंने अपने लिखे कुछ इदारियों [ अग्रलेखों ] को मुझे दिखाया, जिनमें से एक – दो के बारे में बताया कि इसकी नक़ल हैदराबाद और कोलकाता के उर्दू अख़बारों ने की है |

उन्होंने ”अल – कलाम ” [ साप्ताहिक , पटना ], ”अल –  बलाग़ ” [ साप्ताहिक , पटना ], ”इमरोज़े हिन्द” [ साप्ताहिक , पटना ], ”संगम” [ दैनिक , पटना ], ”साथी” [ दैनिक, पटना ], ”क़ौमी तंज़ीम” [ दैनिक , पटना ] और ” मोमिन दुनिया ” [ पटना ] से भी संबद्ध रहे | शाहिद भाई ने इन सबमें इदारिये लिखे, लेकिन कभी भी उन्हें क्रेडिट नहीं दिया गया | उनका नाम सिर्फ़ ” नक़ीब ” के इदारिये में छपता | अतः यह कहने में संकोच नहीं कि शाहिद भाई का सहाफ़त की दुनिया में ज़बरदस्त शोषण हुआ | फिर भी शाहिद भाई ऐसी शहद थे, जिन्हें हर अख़बार पाना चाहता था  … हमारे दफ़्तर यानी उस वक़्त के नंबर वन हिंदी दैनिक ”आज ” में भी वे मुझसे मिलने आते और विविध विषयों पर इज़हारे ख़याल फ़रमाते |

जहां तक मुझे याद है कि उर्दू पत्रकार गुलाम सरवर जब मंत्री थे , तब उनके साथ मैं दो बार मंत्री जी के यहां गया था | ज़ाहिर है, पहले भी मेरी सियासतदानों में कोई ‘ रुचि ‘ नहीं थी और न आज है ! लालू प्रसाद यादव जब बिहार के मुख्यमंत्री बने और ग़ुलाम सरवर विधानसभा के अध्यक्ष, तब भी शाहिद भाई का ग़ुलाम सरवर से मधुर संबंध रहा | ग़ुलाम सरवर की कोशिशों से शाहिद भाई को मदरसा एजूकेशन बोर्ड का चेयरमैन बना दिया गया था और नोटीफिकेशन के दूसरे ही दिन वे दुनिया से रुख़्सत हो गए | मेरा मानना है कि परमात्मा इन्हें भ्रष्टाचार के कीचड़ से दूर रखना चाहता था | अच्छा हुआ , वे पाक दामन रहे |  क्या ही अच्छा हो, उनके लेखन को पुस्तक का रूप मिले, ताकि रहती दुनिया तक उनकी क़द्रो मंज़िलत में कमी न आए | शाहिद भाई को विनम्र नमन  ….. ख़िराजे अक़ीदत !

[ शाहिद भाई की युवावस्था की ही तस्वीर मिल सकी है, क्योंकि वे नामोनुमूद से दूर ही रहना पसंद करते थे | ]

–  Dr RP Srivastava, Editor – in – Chief , ”Bharatiya Sanvad”

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