आजादी के बाद से देश की कौमी एकता अखंडता के लिये सिरदर्द बना रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद का विवाद लगातार राजनैतिक महत्वाकांक्षा का शिकार बना विकास में बाधक बना हुआ है और करोड़ों रुपये सरकारी खजाने का सिर्फ इसकी सुरक्षा के नाम पर हर महीने बरबाद हो रहा है।बीच – बीच में हुए घटनाक्रमों ने इस विवाद को राजनैतिक रूप देकर इसे अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दा बनाकर कट्टरता के नाम बेगुनाहों का खून बहाने का मौका दे दिया गया है। इस विवाद का मुकदमा निचली अदालत से देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुंच गया है और हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब यह मामला पिछले कई वर्षों से सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन चल रहा है।सुप्रीम कोर्ट इस मामले को जल्दी निपटाने के मूड में नहीं लगता है इसे लगातार टाला जा रहा है क्योंकि अगर वह चाहता तो इस मामले को अबतक समाप्त करके अपना फैसला सुना सकता था लेकिन ऐसा नहीं कर सका है। दो महीने पहले तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्र ने इस विवाद के रोजाना निपटारे के लिये अपनी अध्यक्षता में एक विशेष खंडपीठ का गठन करके रोजाना सुनवाई करके यथाशीघ्र मामले को निपटाने की दिशा में महत्वपूर्ण फैसला करके सुनवाई करने की तारीख सुनिश्चित की गई थी। लेकिन गठित खंडपीठ रोजाना कौन कहे मासिक सुनवाई भी नहीं कर पा रही है और सभी इस अति संवेदनशील मामले से बचने की कोशिश कर रहे है। इस विवाद के बाद कुछ लोगों ने बाबर को पीर पैगम्बर जैसा महत्वपूर्ण बना दिया है और उसके समर्थकों की एक फौज खड़ी हो गई है तथा इस विवाद में अनेकों पक्षकार बन गये हैं। दोनों पक्ष अदालती फैसले को मानने के लिए तैयार हैं इसके बावजूद इस विवाद को लगातार लटकाने का क्रम जारी है। पूर्व प्रधान न्यायाधीश वाली खंडपीठ ने रोजाना सुनवाई करने की तारीख की घोषणा की गई थी। इस फैसले के पूरे देश को राहत मिली थी और लगा था कि लगातार सुनवाई करके आगामी 2019 के शुरुआती महीनों में ही फैसला हो जायेगा। खंडपीठ की दूसरी बैठक दो दिन पहले नये प्रधान न्यायाधीश की अगुवाई में मामले की सुनवाई की औपचारिकता मात्र दो मिनट में पूरी करके पुनः सुनवाई तीन महीने के लिए टाल देने से दोनो पक्षों ही नहीं बल्कि देशवासियों को निराशा हुयी है।  तीन महीने बाद सुनवाई नहीं बल्कि खंडपीठ यह तय करेगी कि कौन सी खंडपीठ इसकी सुनवाई करेगी तथा वहीं पीठ अगली तारीख का निर्धारण भी करेगी हालांकि सरकारी वकील इस मामले की जल्द सुनवाई के पक्षधर थे लेकिन अदालत इस पर राजी नहीं हुई। दूसरी तरफ आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए विहिप समेत विभिन्न हिन्दू संगठनों ने सरकार पर कानून बनाने का दबाव बढ़ा दिया है जबकि शुरूआती मूल पक्षकार अयोध्या निवासी इसे अदालती फैसले के जरिये सुलझाने के पक्षधर हैं।भाजपा दशकों से इस विवाद में किसी भी दशा में राममंदिर बनाने की पक्षधर रही है और बराबर इसे मुद्दा बनाकर चुनावी फायदा भी लेती रही है लेकिन आज जबकि वह इसी मुद्दे के सहारे प्रचंड बहुमत से जीतकर सत्ता में पहुंची है तब भी यह मुद्दा ज्यों का त्यों खटाई में पड़ा हुआ है।इस मामले को मिल बैठकर सुलझाने के अबतक तमाम प्रयास हो चुके हैं लेकिन कोई सफलता नहीं मिल सकी है क्योंकि अब इसके कई पक्षकार हो गये हैं और जो इस मुद्दे के नाम पर दूकान चलाकर कमाई कर देश को कमजोर कर रहे हैं वह कमाई बंद हो जाने की डर से इस मामले का अंत नहीं होने देना चाहते हैं।कुछ राजनैतिक लोग वकील बनकर विशेष खंडपीठ का गठन होते समय आगामी लोकसभा चुनाव के बाद इसकी सुनवाई की मांग करके इसे राजनैतिक जामा पहनाने की कोशिश कर चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट की विशेष खंडपीठ द्वारा मामले की सुनवाई न करके तीन महीने तक के लिये टाल देने के पीछे लोग तरह की चर्चाएं कर तरह की टीका – टिप्पणी करने लगे हैं जो देश की सबसे बड़ी अदालत के भविष्य के लिए उचित नहीं कही जा सकती है।

– भोलानाथ मिश्र

वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी

रामसनेहीघाट, बाराबंकी, यूपी

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