डॉ .राम प्रसाद मिश्र की रचनाओं में गजब की बौद्धिकता पाई जाती है | “कल्पान्त ” तो बौद्धिक रस से सराबोर है ,जैसा कि उनका “मुहम्मद ” खंड काव्य है | वैसे उनके ये दोनों ग्रन्थ वास्तविक और यथार्थवादी शैली के जीवंत उदाहरण हैं | “कल्पान्त” भी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रखता है और “मुहम्मद” भी |.”कल्पान्त” महाकाव्य है ,जो महाभारत पर आधारित है , जिसमें शांतनु से जनमेजय तक का प्रक्षेप रहित वर्णन कलात्मक ढंग से कसावट और प्रवाह के साथ प्रस्तुत किया गया है ,जिसमें अतिरंजन से परे रहने के प्रयास के साथ यादवों का गृह युद्ध और विनाश समाविष्ट है | महाभारत में पात्रों कि बहुत बड़ी संख्या है | डॉ. मिश्रजी उनको अपनी विशिष्ट काव्यमयी पंक्तियों में जीवंत कर दिया है | .महाभारत युद्ध का पर्याय है | डॉ.मिश्रजी ने कई वर्ष पहले अपने नई दिल्ली में विकासपुरी स्थित आवास पर एक लंबी बातचीत में कहा था कि यह युद्ध अवांछित और उद्देश्यहीन नहीं था |एक अन्य भेंट में डॉ० मिश्र ने ”कल्पांत ” मुझे भेंट की | जब पुस्तक के आरंभ में मेरा नामादि लिखने के बाद ” न्यायार्थ ” लिखकर इस महाकाव्य की प्रति मेरे हवाले की, तभी मैंने मन ही मन तय कर लिया था कि इस पर मुझे कुछ ज़रूर लिखना है |

 

 

” कल्पांत ” में वे लिखते हैं –

रुद्ध अधिकार हो तो क्रुद्ध होकर प्रखर

युद्ध करे पुरुष यही उसका पुरुषार्थ है

इसी से काम ,अर्थ ,धर्म क़ी रक्षा होती

इसी से मोक्ष का खुल जाता द्वार है

मिश्रजी कहते हैं कि युद्ध परम धर्म बन जाता है ,किन्तु कब ? कवि के शब्दों में——-

अन्याय के विरुद्ध युद्ध परम धर्म है

युद्ध परम निर्णायक तत्व है सत्व है

सभ्यता-संस्कृति के विकास का नियामक है –

मानवता युद्ध के डगोंसे आगे बढती

नाश -निर्माण पूर्णतः अन्योन्याश्रित हैं

महाभारत इस शाश्वत सत्य का आख्याता

और व्याख्याता है ,अतयव,चिरंतन .

‘ पुरुषोत्तम ‘ (38 सर्ग), ‘ दृष्‍ट‌ि ‘ ( 22 सर्ग), ‘ कल्पांत ‘ ( 15 सर्ग), ‘ मुहम्मद ‘ ( 7 सर्ग), ‘ स्वर्गता ‘ ( 7 सर्ग), ‘ सार्वभौम ‘ ( संग्रह) इत्यादि के कवि; ‘ हिंदी साहित्य का वस्तुपरक इतिहास ‘, ‘ तुलसी-सर्वेक्षण ‘, ‘ विश्‍वकवि होमर और उनके काव्य ‘, ‘ प्रसाद : आलोचनात्मक सर्वेक्षण ‘ इत्यादि के आलोचक; ‘ कुछ खोता कुछ पाता गाँव ‘ ( आंचलिक) ,’ ‘ बीसवीं सदी ‘ इत्यादि के उपन्यासकार; ‘ विश्‍व के सर्वश्रेष्‍ठ महाकाव्य ‘, ‘ दलित साहित्य ‘ इत्यादि के निबंधकार डॉ. रामप्रसाद मिश्र ने व्यंग्य, बाल साहित्य, संस्मरण, आत्मकथा, जीवनी, दैनंदिनी, धर्म, राजनीति इत्यादि विधाओं में स्फीत और मौलिक सर्जन किया है । हिंदू धर्म, हिंदी साहित्येतिहास और भारतीय संस्कृति पर उन्होंने चार ग्रंथों की रचना की है । उन्हें उ. प्र. हिंदी संस्थान, लखनऊ का ‘ साहित्यभूषण पुरस्कार ‘, हिंदी अकादमी, दिल्ली का ‘ बाल साहित्य पुरस्कार ‘, ‘ कुंती गोयल इंटरनेशनल अवार्ड ‘ ( जोधपुर), ‘ मानस संगम साहित्य पुरस्कार ‘ ( कानपुर) इत्यादि तथा बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन, पटना का ‘ साहित्य-तपस्वी ‘ आदि अनेक सम्मान प्राप्‍त हो चुके हैं । मराठी भाषा में भी ”कल्पांत ” नामक एक अन्य पुस्तक है , जिसे सुहास शिरवळकर ने लिखी है |- Dr RP Srivastava, Editor – in – Chief , ”Bharatiya Sanvad”

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