इस देश में किसानों को भगवान कहा जाता है क्योंकि भगवान के बाद किसान पेट भरता है। किसान मनुष्यों ही नहीं बल्कि पशु पक्षियों जीव जन्तुओं तक का पेट भरता है।किसान जब खुशहाल रहता है तो उससे जुड़े सभी खुशहाल रहते हैं और जब वह दुखी रहता है तो सभी दुखी रहते हैं।इस देश में सिर्फ एक किसान ऐसा होता है जिसे अपने उत्पादन का मूल्य निर्धारित करने का अधिकार नहीं होता है और उसके उत्पादन का मूल्य सरकार एवं साहूकार तय करता है। अन्य कोई दूसरा ऐसा व्यवसाय जल्दी नहीं मिलेगा जिसमें जमा पूंजी भी चली जाती हो और भगवान के सहारे होती हो। सिर्फ किसान की खेती ही एकमात्र ऐसी होती है जो भगवान-अल्लामिंया के सहारे होती है और जब वह खुश हो जाते हैं तो अनाज से घर भर जाता है लेकिन जब नाराज हो जाते हैं तो दाने दाने का मोहताज ही नहीं बल्कि कर्ज के बोझ तले दाबकर आत्महत्या करने पर मजबूर कर देते हैं।यहीं कारण है कि सरकार किसानों को खाद बीज पानी दवा सस्ते दामों पर उपलब्ध कराती है और किसानों को उत्पादन का उचित सरकारी मूल्य दिलाने के लिए अनाजों की सरकारी खरीद भी करती है। इधर सरकार ने किसानों की आमदनी दोगुनी करने का बीड़ा उठा रखा है लेकिन जब से बीड़ा उठाया है तबसे आज तक आमदनी का ग्राफ बढ़ा नहीं है बल्कि यूरिया डीएपी जैसी खादों, दवाओं, बीज के मूल्यों में बेतहाशा वृद्धि होने से आमदनी का ग्राफ पहले की अपेक्षा गिर जरूर गया है।धान की कुछ प्रजातियों के बीजों की खराबी से पैदा बेइलाज रोग से चौपट हुयी फसल से तमाम किसानों की लागत वापस नहीं लौटी है और वह बरबाद हो गये हैं। जिन किसानों के धान बीमारी से बच गये थे वह सरकारी खरीद न होने से किसानों की आमदनी को दोगुनी बढ़ाने की जगह दोगुनी घटा रहे हैं क्योंकि सरकारी खरीद न होने से साहूकार मनमाने ढंग व मूल्य पर धान की खरीद कर रहा है। सरकारी घोषणा के अनुरूप धान की सरकारी खरीद पहली नवम्बर से शुरू हो जानी चाहिए क्योंकि दस नवम्बर से गेहूँ की बुआई शुरु हो जाती है और लोगों को खाद बीज पलेवा के लिये तत्काल पैसे की जरूरत होती है। मुख्यमंत्री योगीजी पड़ोसी राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों में पार्टी का प्रचार करने में मस्त हैं तो यहाँ पर उनके मातहत सिर्फ कागजी खाना पूरी करने में मस्त है। इस मस्ती का खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है क्योंकि उसे निर्धारित मूल्य से तीन चार सौ रूपये प्रति कुंटल कम मिल रहे हैं।किसानों की मजबूरी है क्योंकि खेती के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है अगर खेती नहीं करेंगे तो बच्चे क्या खाकर जिंदा रहेंगे? सरकार कहने के लिए किसानों को बीज दवा आदि पर आनलाइन सहायता देती है लेकिन सरकारी बीज गोदामों पर प्राइवेट दूकानों पर बिक रहे विभिन्न कम्पनियों के बीजों की अपेक्षा महंगा होता है और सरकारी सहायता राशि लेने के लिए बीज का पूरा भुगतान एडवांस करना पड़ता है। सभी जानते हैं कि किसानों को तीन वर्गों छोटे मध्यम एवं बड़े में विभक्त किया गया है इसमें लघु सीमांत किसान ऐसा होता है जो चाहकर भी व्यवसायिक खेती नहीं कर पाता है क्योंकि उसके पास सीमित खेती होती है।एक बार फिर सरकारी धान की खरीद मजाक बन गई है और जिन किसानों को रबी की बुआई करने के लिए धान बेचने की जरूरत थी उन्होंने साहूकार अथवा बड़े लोगों के हाथ कम दाम में बेंच दिया है। जब सरकार जानती थी कि धान से चावल बनाकर सरकार को आपूर्ति करने वाले राइस मिलर्स पिछले साल भी सरसठ प्रतिशत रिकवरी न दे पाने की बात को लेकर हड़ताल पर चले गये थे तो इस साल उसका इन्तिज़ाम पहले से क्यों नहीं कर लिया गया।जब किसान को पैसों की जरूरत होती है तब तौल नहीं होती है जब तौल होती है तो उन किसानों के पास बचता है जो या तो बड़े सक्षम सरकारी या गैरसरकारी नौकरी या व्यवसायी पेश वाले होते हैं। यहीं कारण है कि सरकारी खरीद योजना से छोटे मझोले किसान बल्कि सरकारी खरीद योजना से बड़े लोग और बड़े एवं मालामाल हो जाते हैं।सरकारी खरीद शुरू करने की घोषित तिथि से एक महीना पूरा होने जा रहा है लेकिन अबतक सभी केन्द्रों पर पसरा सन्नाटा सरकार की किसानों की आमदनी दोगुनी करने बाधक है और इसे सिर्फ सरकार की लापरवाही एवं किसानों के हितों की अनदेखी करना कहा जा सकता है।
– भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी
रामसनेहीघाट, बाराबंकी, यूपी