यह सभ्यता, देश और समाज हितैषियों के लिए दिल को सकून पहुँचाने वाली खबर ज़रूर है कि इंटरनेट पर बढ़ती अश्लीलता के खिलाफ़ देश के दूर संचार विभाग ने इंटरनेट सेवा मुहैया कराने वाले सभी आपरेटरों को पिछले दिनों निर्देश दिया है कि वे 827 पोर्न साइटों को ब्लाक कर दें | देश भर के पोर्न साइटों को बंद करने के उत्तराखंड हाईकोर्ट की हिदायत के बाद सरकार ने यह सकारात्मक क़दम उठाया है, जिसकी चहुंओर सराहना की जा रही है | भारत में पोर्न साइटों के बढ़ते ‘प्रकोप’ से सरकार का चिंतित होना स्वाभाविक एवं लाज़िम है | पूरी दुनिया में पोर्न सामग्री उपलब्ध करवाने वाली जानी मानी वेबसाइट पॉर्नहब के गत दिनों एक सर्वे में यह बात सामने आई थी कि साल 2017 में भारत में पॉर्न वीडियो देखने में 75 प्रतिशत की वृद्धि हुई है | इसकी सबसे बड़ी वजह मोबाइल डेटा का बहुत ज़्यादा सस्ता होना बताया गया था. दुनियाभर में तुलना करें तो भारत पोर्न देखने के मामले में तीसरा सबसे बड़ा देश है |
2014 तक भारत पांचवे पायदान पर था | इस पर 2015 में सुप्रीमकोर्ट ने कुछ ठोस कार्रवाई शुरू की थी , जिसका अंतिम परिणाम निराशाजनक रहा |15 अप्रैल 2013 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर के निर्देश पर सूचना और प्रसारण मंत्रालय और अन्य विभागों को नोटिस जारी कर कहा गया था कि इंटरनेट पर बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्रियां लगातार परोसी जा रही हैं | सरकार इन पर कार्रवाई करे | नोटिस में कहा गया था कि इन साइटों पर परोसी जा रही अश्लील सामग्रियों से बच्चों के कोमल मन पर बुरा असर हो रहा है | इसमें यह दलील भी दी गई कि इन्हीं सब कारणों से समाज में अपराध में बढोत्तरी होती है | उल्लेखनीय है कि कमलेश वासवानी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए अपील की थी कि इंटरनेट पर चल रही इन अश्लील साइटों पर तुरंत लगाम कसी जाए | अश्लीलता किसी बड़ी बीमारी से कम नहीं |
यह सच है कि पोर्न साइटों से सबसे अधिक बच्चे प्रभावित होते हैं | यह भी सच है किबच्चे किसी भी देश और समाज का भविष्य होते हैं | उनके कंधों पर भविष्य का भार होता है | वे जितने ही संस्कारित और बाकिरदार होंगे , भविष्य उतना ही उज्ज्वल होगा | उन के व्यक्तित्व को निखारना – संवारना हर माँ – बाप की प्राथमिक ज़िम्मेदारी है, मगर देखा जा रहा है कि भौतिकता की आंधी में देश के नौनिहाल भी कुंभहला गये हैं | माँ – बाप की धन कमाने की धुन ने बच्चों की सही परवरिश के प्रति उन्हें गाफ़िल कर दिया है | इसी का नतीजा है कि अभिभावकों की अनुपस्थिति में बच्चे इंटरनेट की अश्लील साईटों [ पोर्न ] के प्रति आकर्षित हो रहे हैं | ये साइटें बच्चे क्या सभी आयु वर्ग के लोगों के जीवन को तबाह – बर्बाद कर डालती है , लेकिन चूँकि बच्चे कोमल मस्तिष्क वाले होते हैं , इसलिए पोर्न साईटों से वे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं | एक सर्वे में यह पाया गया कि हमारे देश में 11 साल की उम्र तक के बच्चे इन साइटों से किसी न किसी रूप में परिचित हो चुके होते हैं |
इंटरनेट पर होने वाले सर्च में से 25 फ़ीसद सामग्री पॉर्न से संबंधित होती हैं और हर सेकंड कम से कम 30,000 लोग इस तरह की साइट देख रहे होते हैं | बच्चों और किशोरों द्वारा इन साईटों को देखने का सबसे ज़्यादा नुक़सान उनकी मानसिक अवरुद्धता और पढ़ाई की तरफ़ से अपेक्षित ध्यान का हटना है | यह माँ – बाप के लिए बड़ी समस्या है | भारत जैसे विकासशील देश में उन बच्चों की संख्या बढ़ रही है जिनके पास निजी कंप्यूटर, इंटरनेट कनेक्शन और स्मार्टफोन मौजूद है और इसीलिए पौर्न साइटों से प्रभावित होने के उनके खतरे भी बढ़ रहे हैं | इस गंभीर स्थिति से बच्चों को उबारने के लिए व्यक्तिगत , सामूहिक एवं सरकारी स्तर पर ठोस और तात्कालिक कोशिश की जानी चाहिए | साइबर विशेषज्ञ पवन दुग्गल कहते हैं कि कुछ क़ानून ऐसे हैं जो पोर्नोग्राफ़ी पर भी लागू हो सकते हैं | सूचना प्रोद्योगिकी क़ानून है वह कहता है कि किसी भी तरह की अश्लील इलेक्ट्रॉनिक सामग्री को प्रकाशित-ट्रांसमीशन या ऐसा करने में सहायता करना ग़ैरक़ानूनी है| इसमें पांच साल की सज़ा और तीन लाख रुपए का ज़ुर्माना है | पवन दुग्गल के अनुसार, यह बताना बहुत मुश्किल है कि किस तरह की सामग्री किसी के मन -मस्तिष्क पर क्या असर करेगी ? अतः अश्लीलता को परिभाषित करना बड़ा कठिन हो जाता है | अश्लील सामग्री में सिर्फ वीडियो ही नहीं है, अपितु इसमें तस्वीरें,स्कैच और टेक्स्ट भी शामिल होता है | चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी पर तो उस सामग्री को देखना भी ग़ैरक़ानूनी है और उसकी सज़ा निर्धारित है | पवन दुग्गल बताते हैं, ” वास्तव में भारत में जो भी पोर्न सामग्री उपलब्ध करवाई जाती है उसमें बहुत बड़ा हिस्सा विदेशी वेबसाइटों का होता है, जो सीधे तौर पर भारतीय क़ानून के अंतर्गत नहीं आते |
अक्सर होता यही है कि जब किसी वेबसाइट पर पाबंदी लगा दी जाती है, तो दोबारा कुछ फ़ेरबदल के साथ उपलब्ध करा दिया जाता है | सन 2015 में जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर केंद्र सरकार ने 850 पोर्न साइटें बंद कर दी थीं, तो थोड़े समय बाद ही सभी प्रतिबंधित साइटें कुछ तब्दीली के साथ पुनः उपलब्ध हो गईं ! इस हक़ीक़त से यह बात आसानी से समझ में आ जाती है कि इस अश्लीलता पर कारगर नकेल कसना आसान नहीं !
– Dr RP Srivastava , Editor – in – Chief, ” Bharatiya Sanvad ”