इस देश के राजनीतिं की यह खास बात है कि जिस मुद्दे को लेकर जनमत लामबंद हो जाता है राजनैतिक मतलबी झटपट अपना रूप स्वरूप बदलकर उस मुद्दे के पक्ष में आकर मुद्दा उठाने वाले को अपना अगुआ मान लेते हैं चाहे बाबा टिकैत की किसान यूनियन रही हो चाहे अन्ना बाबा का आंदोलन रहा हो। अभी कुछ साल पहले भ्रष्टाचार के खिलाफ बने जनमत को लेकर पूर्व फौजी अन्ना हजारे की अगुआई में ऐतहासिक कार्यक्रम हुआ था और लाखों लोग उनके साथ धरने पर बैठे थे और पूरे देश में अन्ना के समर्थन में करोड़ों लोगों सड़क पर आकर उनका समर्थन मशाल जलूस आदि निकालकर किया था।अन्ना के आंदोलन की बढ़ती लोकप्रियता के चलते ही नौकरशाही से राजनीति में आने की जुगत में लगे वर्तमान दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल सबसे पहले अन्ना हजारे के दत्तक पुत्र बनकर आ गये | उसके बाद बहुचर्चित महिला पुलिस अधिकारी किरन बेदी फौजी अधिकारी आदि आकर उसमें शामिल हो गये। उस समय लग रहा था इन सभी नौकरशाहों का ह्दय परिवर्तन हो गया और सभी सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र बन गये हैं और रामराज्य लाने के लिए अन्ना बाबा के साथ आ गये हैं। इतना ही नहीं चूंकि कांग्रेस सत्ता में थी इसलिए तमाम भाजपाई भी अन्ना हजारे के आंदोलन को समर्थन देने वहाँ पर पहुंच कर देश एवं राज्य स्तर पर लोकपाल की तैनाती करने पहुंच गए थे।तत्कालीन सरकार ने लोकपाल विधेयक लाने का वायदा करके आंदोलन को समाप्त भी कराया गया था लेकिन जब लोकपाल की तैनाती नहीं हुई तो दोबारा आंदोलन किया था। अन्ना हजारे के साथ उस समय आंदोलन को संचालित करने वाले केजरीवाल एंड कम्पनी ने इसके बाद अपना चोला बदल लिया और आम आदमी पार्टी के नाम से एक राजनीतिक दल का गठन कर लिया गया था। हालांकि यह फैसला केजरीवाल ने अन्ना हजारे से पूंछकर नहीं लिया था बल्कि उनके विरोध के बावजूद कर लिया था और चुनाव में आंदोलन में शामिल होने का पूरा लाभ भी उन्हें मिला और उनकी सरकार ही नहीं बन गयी थी बल्कि मुख्य राजनैतिक दलों का सिरदर्द बढ़ गया था।बाबा अन्ना हजारे एवं उनका आंदोलन का मुद्दा समाप्त भी नहीं हो पाया और उनके सहयोगियों ने अपनी पहचान बनाकर विभिन्न राजनैतिक दलों में अपना हित साध लिया था।जो अन्ना बाबा के साथ जीने मरने की कसमें खाते उन सभी ने उन्हें अकेला छोड़कर अपना राजनीतिक आशियाना बनाकर लिया और लोकपाल का मुद्दा जैसे के तैसे रह गया।अन्ना हजारे ने एक बार फिर लोकपाल विधेयक को लेकर आगामी 30 जनवरी से लोकपाल विधेयक को लेकर भूख हड़ताल करने की घोषणा करके मौजूदा सरकार की नींद हराम कर दी है।उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय से सम्बद्ध राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह को पत्र लिखकर सरकार पर भ्रष्टाचार विरोधी ल़ोकपाल की नियुक्ति न करने का आरोप लगाते हुए अपने गाँव में हड़ताल करने का ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने पहले विपक्ष में सक्षम नेता के अभाव का बहाना बनाकर लोकपाल नही तैनात किया है और बाद में कहा गया कि चयन समिति में प्रतिष्ठित न्यायवादी नहीं है।अन्ना बाबा की भूख हड़ताल ऐसे समय में होने जा रही जबकि आगामी लोकसभा चुनाव सिर पर है और इसका सीधा असर चुनाव पर पड़ सकता है।नोटबंदी, एससी एसटी एक्ट जीएसटी जैसे तमाम मुद्दे पहले से ही सरकार के लिए पहले से ही सिरदर्द बने हुये है और इसके साथ अन्ना बाबा की भूख हड़ताल की धमकी ने एक नयी मुसीबत खड़ी कर दी है।भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाने का दावा करने वाली केन्द्र सरकार के लिए अन्ना हजारे की भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रस्तावित हड़ताल सरकार के लिए शर्म की बात है क्योंकि अन्ना हजारे भी भ्रष्टाचार समाप्त करने की लड़ाई निःस्वार्थ लड़ रहे हैं।
– भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी
रामसनेहीघाट, बाराबंकी, यूपी