लबरेज़ है शराबे-हक़ीक़त से जामे-हिन्द ,
सब फ़ल्सफ़ी हैं खित्ता-ए-मग़रिब के रामे हिन्द |
ये हिन्दियों के फिक्रे-फ़लक उसका है असर,
रिफ़अत में आस्माँ से भी ऊँचा है बामे-हिन्द |
इस देश में हुए हैं हज़ारों मलक सरिश्त,
मशहूर जिसके दम से है दुनिया में नामे-हिन्द |
है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़,
अहले-नज़र समझते हैं उसको इमामे-हिन्द |
एजाज़ इस चिराग़े-हिदायत का है यही
रोशन तिराज़ सहर ज़माने में शामे-हिन्द |
तलवार का धनी था, शुजाअत में फ़र्द था,
पाकीज़गी में, जोशे-मुहब्बत में फ़र्द था |
– डॉ. इक़बाल
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बामे हिन्द – भारत – गौरव
मलक सरिश्त – फ़रिश्ता – सदृश
तिराज़ सहर – प्रकाशमय भोर