‘लव जिहाद’ के आरोपों का लंबे समय तक शिकार रही साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त एवं नोबेल पुरस्कार [ 1984 ] हेतु नामांकित अंग्रेज़ी एवं मलयालम की प्रख्यात लेखिका माधवी कुट्टी अका कमला दास उर्फ़ कमला सुरैया [ जन्म 31 मार्च  1934 -मृत्यु 31 मई 2009 ] के अंग्रेज़ी साहित्य [ ” समर इन कलकत्ता “[ 1965 ] , “अल्फाबेट आफ लस्ट ” [ 1977 ] और कुछ स्फुट रचनाओं ] का अध्ययन करते हुए उनकी एक कविता मुझे काफ़ी पसंद आई | यह कविता दर्शन – बिम्बों और प्रतीकों से जितनी परिपूर्ण है , उतनी ही मार्मिक भी है | कवयित्री की ईश्वर से प्रार्थना भी है | ” अगोनी ” शीर्षक इस कविता का जो हिंदी अनुवाद मैंने किया है , उसे आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ –

व्यथा 

हे ईश्वर ,

क्षमा कर मुझे

मेरी गुज़री मनमानी राहों के लिए –

यदि तुम्हारे होते हाथ

सुरक्षित गोद में रहती तुम्हारी

सदैव

और निर्मला रखती शरीर

हस्त – चिन्ह रहित |

मेरे प्रिय,

अहो, प्रियों में प्रियतम ,

यदि तुम्हारे स्वर होते मानुष के

मेरे कानों में करते सरगोशी

तुम्हारे सुखद शब्द |

मैं सदा नहीं रहूँगी

तूफ़ान में पर्ण सदृश

जो फिरता है

इधर – उधर दिशाओं में ,

चाहता निरापद स्थिरता

सदा चाहता

और रहता सदा दुःख में …!!!

हे ईश्वर,

क्यों आती है निशा

दुखी हृदयों पर

जबकि समुद्र की भांति

विस्तृत एवं संदीप्त

तुम विद्यमान हो ?

मैं नहीं जानती

कहाँ आदि इति होता है

और अनंत अथ ?

मैं नहीं जानती वह क्षण

जब खेलने की वस्तु

खिलाड़ी बनती है

और तब कुछ नहीं बचता

लेकिन खेल ……

मैं नहीं जानती वह क्षण

जब एक अजनबी

उठाता है सुरक्षित परदा

परत दर परत

सुगमता से प्रवेश के लिए

मेरी आत्मा के श्रृंगार – कक्ष में .

असीमित, तेरा दिव्य प्रकाश

ऐसा प्रकाश

जो द्रष्टा है

और सर्वज्ञ है ,

दयामय एवं मृदुल है

तेरा न्याय |

अनुवाद –  राम पाल श्रीवास्तव ‘अनथक ‘

कृपया टिप्पणी करें