दहेज प्रथा पूरे समाज के लिए एक अभिशाप है | इसके कारण न जाने कितनी मासूम बहन – बेटियाँ को अपनी जान गंवानी पड़ रही है , लेकिन यह सच है कि इस समस्या पर कोई सार्थक चर्चा तक भी नहीं हो पाती ! सभी जानते हैं कि यह कुप्रथा महिलाओं के लिए बहुत घातक है | दुर्भाग्य से हमारे देश में ऐसी घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं | पिछले सप्ताह संयुक्त राष्ट्र के एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि दहेज रोकथाम के लिये कानून होने एवं ‘ बेटी पढाओ, बेटी बचाओ” अभियान के बावजूद भारत में महिला हत्याओं के मामले बड़ी संख्या में दहेज हत्या से जुड़े हैं | दुनिया भर में महिलाओं के लिये सबसे खतरनाक जगह उनका घर बन गया है | मादक पदार्थ एवं अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (यूएनओडीसी) की ओर से प्रकाशित नये अनुसंधान के मुताबिक़, पिछले साल दुनिया भर में लगभग 87,000 महिलाओं की हत्याएं की गईं और इनमें करीब 50,000 या 58 प्रतिशत की मौत उनके निकट साथी या परिवार के सदस्यों के हाथों हुई | अध्ययन की यह रिपोर्ट महिलाओं के खिलाफ हिंसा ख़त्म करने के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस पर जारी की गई | यूएनओडीसी के कार्यकारी निदेशक यूरी फेदोतोव ने कहा, ‘‘लैंगिक असमानता, भेदभाव और नकारात्मक रूढ़ियों के कारण महिलाएं सबसे बड़ी कीमत चुकाती हैं | यही नहीं उनके अपने बेहद करीबी साथी और परिवार के हाथों मारे जाने की भी आशंका रहती है | ‘ इस अध्ययन के अनुसार हर घंटे करीब छह महिलाएं परिचित के हाथों मारी जाती हैं | 1995 से 2013 के आंकड़े के अनुसार भारत में वर्ष 2016 में महिला हत्या दर 2.8 प्रतिशत थी जो केन्या (2.6 प्रतिशत), तंजानिया (2.5 प्रतिशत), अज़रबैजान (1.8 प्रतिशत), जॉर्डन (0.8 प्रतिशत) और ताजकिस्तान (0.4 प्रतिशत) से अधिक है | संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में यह बात भी कही गई है कि भारत में 15 से 49 वर्ष उम्र की 33.5 प्रतिशत महिलाओं और लड़कियों ने एवं पिछले एक साल में 18.9 प्रतिशत महिलाओं ने अपने जीवन में कम से कम एक बार शारीरिक हिंसा का सामना किया | सच है कि हमारे देश में दहेज से संबंधित मौत के मामले हमेशा से चिंता का विषय बने हुए हैं | क़ानून होने के बाद इस पर रोक का न लग पाना हमारी वीभत्स मानसिकता का परिचायक है | अध्ययन में कहा गया है कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो से प्राप्त आंकड़े से यह पता चलता है कि दहेज से संबंधित हत्या के मामले महिलाओं की हत्या के सभी मामलों के 40 से 50 प्रतिशत हैं, लेकिन इसमें 1999 से 2016 के दौरान एक स्थिर प्रवृत्ति देखी गयी है | रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘भारत सरकार द्वारा 1961 में कानून लागू करने के बावजूद दहेज की प्रवृत्ति रुकी नहीं है | यह चलन पूरे देश में जारी है और महिला हत्या के मामलों में दहेज हत्या के मामलों की बड़ी हिस्सेदारी है |” कहते हैं कि प्रारम्भ में इस प्रथा का विकास उपहार के रूप में हुआ। समाज का हर वर्ग अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुकूल खुशी से अपनी कन्या को कुछ देता था। बाद में धीरे-धीरे सम्पन्न घरों में दी गई वस्तुओं की तरह अन्य लोगों ने भी लड़की पक्ष से मांग करना शुरू कर दिया। कन्या पक्ष गरीब भी हो तो उसको एक बनी हुई कुप्रथा के अनुसार वरपक्ष को इतना दहेज देना पड़ता हैं , जिससे वह जीवन भर कर्ज में फंस जाता है और उसकी आर्थिक स्थिति बहुत कमज़ोर हो जाती है | दुखद और त्रासद स्थिति यह भी होती है कि कभी दहेज का प्रबंध न होने के कारण लड़कियों की शादी नहीं हो पाती | अक्सर देखा गया है कि वर पक्ष की ओर से अपनी लोभ – लिप्सा व कुत्सित स्वार्थ के चलते अधिक से अधिक क़ीमती वस्तुओं, नक़द व ज़ेवर आदि की मांग की जाती है | बहुत से लोग जो समर्थ है अधिक से अधिक दहेज देकर उनकी मांग पूरी कर देते है, परंतु जो लोग वरपक्ष की मांगें पूरी नहीं कर पाते , वे या तो क़र्ज़ के बोझ तले दब जाते हैं या फिर उनकी लड़कियों का विवाह ही नहीं हो पाता।

यह भी देखा गया है कि कम दहेज लाने वाली लड़कियो को कई प्रकार के शारीरिक व मानसिक कष्ट उठाने पड़ते हैं यहाँ तक कि बहुओं को जला दिया जाता हैं या अन्य प्रकार से उनकी हत्या कर दी जाती है। विडंबना यह कि वधू पक्ष वर पक्ष को भरपूर दहेज भी दे, अपनी बेटी को अघोषित रूप से स्थाई सेविका बनाकर दे, फिर भी रौब और अकड़ वर पक्ष दिखाए और कन्या पक्ष उसके आगे झुका रहे ! शादी से पहले मां बाप के कंधो का बोझ होने की बात लड़कियों के मन बैठा दी जाती है और शादी के बाद कम दहेज लाने को लेकर ससुराल मे मिलने वाली मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना को परिवार की मान मर्यादा बनाए रखने के लिए लड़की पर ही हर ओर से दबाव डाला जाता है | यह स्थिति केवल गांव कस्बों की कम पढ़ी लिखी लड़कियों की ही नहीं बल्कि बड़े शहरो की उच्च शिक्षित और माडर्न लड़कियों की भी है | आम तौर पर दोनों जगहों पर बात सिर्फ़ थोड़ी शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना तक सीमित नहीं रहती , अक्सर देश के ग्रामीण क्षेत्रों से दहेज हत्या – बहू को जलाकर मार डालने के मामले सामने आते रहते है , जबकि शहरी क्षेत्रों में दहेज प्रताड़ना के बेशुमार मामले अदालतों मे लम्बित रहते हैं | राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की एक पुरानी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पिछले वर्ष दहेज हत्या के 8,083 मामले प्रकाश में आए. इनमें क़रीब एक चौथाई मामले (2,335) सिर्फ उत्तर प्रदेश से हैं | बिहार और मध्य प्रदेश 1,182 और 7,76 दहेज हत्या के मामलों के साथ क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं | दहेज हत्या की दर के मामले में राष्ट्रीय औसत 1.36 है जबकि उत्तर प्रदेश में यह दर 2.36 है | उत्तर प्रदेश की महिला आबादी क़रीब नौ करोड़ 88 लाख है और बिहार में महिला आबादी चार करोड़ 85 लाख है | आँकड़ों के अनुसार, बिहार में दहेज हत्या की दर सबसे अधिक 2.43 है | राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में दहेज हत्या के 144 मामले दर्ज हुए | सिक्किम, मिज़ोरम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, गोवा, लक्षदीप और दमन दीव में दहेज हत्या का एक भी मामला दर्ज नहीं हुआ | वर्ष 2013 में पूरे देश में जितने मामले दर्ज हुए उनमें 28.89 प्रतिशत अकेले उत्तर प्रदेश से थे | ये आंकड़े वे हैं जो पुलिस थानों में दर्ज हुए जबकि देश में बहुत से मामले थानों तक पहुंच ही नहीं पाते | वर्ष 2012 में देश भर में दहेज हत्या के 8,233 मामले दर्ज हुए थे | इस हिसाब से 2013 में बहुत मामूली सुधार हुआ था | वर्ष 2012 में दहेज हत्या के सबसे अधिक 2,511 मामले आंध्र प्रदेश से दर्ज किए गए थे | उस वर्ष ओडिशा से 1,487 मामले दर्ज हुए थे और अपराध दर के लिहाज से राष्ट्रीय औसत 1.5 के मुकाबले ओडिशा की दर 7.3 थी | सरकार ने दहेज प्रथा पर रोक लगाने के लिए दहेज प्रतिबन्ध अधिनियम 1961 लागू किया , परन्तु वह समाज में वयवहारिक रूप से लागू नहीं हो पा रहा हैं , क्योंकि समाज अभी इस कुप्रथा को अपनाने में मशगूल है। जब तक समाज स्वयं इसको समाप्त नहीं करेगा तब तक कानून भी कुछ नहीं कर सकता। इसके दुरूपयोग की समस्या भी विचारणीय और शोचनीय है | हर साल दहेज उत्पीड़न के औसतन 10,000 झूठे मामले दर्ज होते हैं। यही वजह है कि सरकार ने आपराधिक कानून में संशोधन किया है | विधि आयोग और न्यामूर्ति मलिमथ समिति की सिफारिशों के तहत अदालतों की अनुमति से भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए को ऐसे अपराध की श्रेणी में रखा गया है , जिसमें सुलह-समाधान की गुंजाइश हो। यह भी एक तथ्य है कि इस कुप्रथा के भय से भी हमारे देश मे लाखों लड़कियों को गर्भ मे ही मार डाला जाता है ! जो बच जाती हैं , वे नारकीय जीवन जीने के लिए अभिशप्त होती हैं ! दहेज – दानव से निबटने में जन – जागरूकता का सहारा प्राथमिक रूप से लेना बहुत आवश्यक है | युवकों को भी दहेज नहीं स्वीकार करनी चाहिए।

Dr RP Srivastava, Editor – in – Chief , ”Bharatiya Sanvad”

कृपया टिप्पणी करें