अब मुझे क़ुरबां अपनी ही फ़िक्र है ,

मैं भला किसी को कैसे बुरा कहूँ |

मगर नहीं वजूद मेरा झुका हुआ ,

मैं भला उसको कैसे बेसुरा कहूँ |

अब नहीं मुझे किसी का ख़ौफ़ रहा ,

क्या कहूँ , किसको यूँ आमिरा कहूँ |

तेरी पारसाई क्यों न चली जाए ,

अपने आपको यूँ न , अनवरा कहूँ |

सकूने दामन् अब थाम ले ‘ अनथक ‘

जब जाऊं जहाँ से सरवरा कहूँ |

– राम पाल श्रीवास्तव ‘ अनथक ‘

 

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