निश्चय ही ‘ प्रकृति के सुकुमार कवि ‘ सुमित्रानंदन पन्त जी आज अगर जीवित होते , तो कल्पनातीत रूप से प्रसन्न होते , फिर भी उनकी अजर – अमर आत्मा को अवश्य ही परम शांति प्राप्त हो रही होगी ….. कौसानी [ अल्मोड़ा – कुमाऊं ] में 1900 ई. में जन्मे इस महान कवि के अरमान जो आज पूरे और साकार होते नज़र आए . वे अपनी रचनाओं में एक नवीन , सुंदर , सुखी समाज की सृष्टि के प्रति काफ़ी आशावान थे . विश्व – बंधुत्व और भ्रातृत्व उनका मौलिक आह्वान था | पर्वतीय सांस्कृतिक संस्था (पंजी ), द्वारा उत्तराखंड द्वितीय महाकौथिग [मेले ] 2012 में परोक्ष रूप से महाकवि के इसी ख़ाब की एक ताबीर नज़र आ रही थी | मैं भी इसका एक प्रत्यक्षदर्शी था | फ़ेसबुक के आदरणीय मित्र एवं उत्तराखंड के पूर्व राज्यमंत्री श्री सच्चिदानंद शर्मा जी के आमंत्रण पर मैं सपरिवार [ 16 दिसम्बर 2012 ] महाकौथिग में उपस्थित हुआ | यह पहला अवसर था , जब मुझे बहुत निकट से उत्तराखंड की सुमधुर लोकधुनों को सुनने और लोककलाओं को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ |
वास्तव में गढ़वाली -कुमाऊंनी युवक – युवती वैवाहिक परिचय सम्मेलन बड़ा ही लाजवाब था | इसमें भी मुझे बड़ी भाव – विश्रब्धता और शालीनता दिखाई पड़ी | विभिन्न जातियों के लोग आते और अपने विवाहयोग्य पुत्र / पुत्री का नाम प्रस्तावित करते | पूरा परिचय कराते …… और इस प्रकार वर्तमान में शादी – विवाह के दुरूह पड़ते सम्बन्ध को सुगम बनाते . इस प्रकार का चलन उत्तराखंड की धरती की विशिष्ट देन ही है | फिर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का गज़ब का दौर चला मानो उत्तराखंड की धरती ही गाज़ियाबाद [ उ . प्र . ] के स्वर्ण जयंतिपुरम पार्क , इंदिरापुरम में उतर आई हो | लोक सुर – सरिता का ऐसा प्रवाह तो देखते बनता था | इसने साफ़ और पुष्ट कर दिया कि उत्तराखण्ड की लोक – संस्कृति एवं कला बहुत समृद्ध है | आयोजकों को बारम्बार बधाई …….
श्री सच्चिदानंद शर्मा जी इस त्रिदिवसीय महाकौथिग [ सम्मेलन ] के अंतिम कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे | आपसे मंच पर ही भेंट हुई | आपने अति अपनत्व का परिचय देते हुए अंकमाल कर वहीं मंच पर लगे सोफ़े पर बैठाया | शर्मा जी मुझे बिलकुल आम्रकल्पी इन्सान लगे ….. बिलकुल सौम्य , भाव – रिध्द …. ज़रा भी अहंकार , घमंड नहीं …. मिलनसार ….. आम्र सदृश ……… ऐसा क्यों ? ….. फलों में अतुल्य फल आम्र है …. सबके लिए आसानी से सुलभ . आम्र पर छिलका तो होता है , किन्तु नाममात्र ! कोई चाहे तो उसे भी चुभला जाए …. और उसमें जो गुठली होती है , वह पामालों के लिए सुखाद्य एवं बच्चों के लिए मनोहर पिपिहरी है , अर्थात आम्र के अंदर – बाहर ऐसा कुछ नही होता ,जो अग्राह्य , त्याज्य या अरम्य हो . इसलिए मैंने शर्माजी को आम्रकल्प व्यक्ति कहा .
अंत में मैं महाकौथिग के आयोजकों को उत्तराखंड की धरा को यहाँ अवतरित करने के लिए एक बार फिर आत्मिक धन्यवाद देता हूँ और यह आशा करता हूँ कि महाकवि पन्त जी के ख़ाब ताबीर के लिए यथेष्ठ प्रयास किया जाता रहेगा | क्या ख़ूब आह्वान है महाकवि का —- धरती को स्वर्ग बनाने का …….
इसमें सच्ची समता के दाने बोने हैं ,
इसमें जन की क्षमता के दाने बोने हैं , ख़ाब
इसमें मानव ममता के दाने बोने हैं —
जिससे उगल सके फिर धुल सुनहली फ़सलें ,
मानवता की – जीवन श्रम से हंसें दिशायें !–
हम जैसा बोयेंगे वैसा ही पायेंगे !
[ ‘ अतिमा ‘ से ]
– Dr RP Srivastava, Editor-in-Chief,”Bharatiya Sanvad”