केंद्र सरकार ने मंदिर – मस्जिद प्रकरण पर जो नई पहल की है, वह कितनी कारगर होगी ? इस पर बड़ा सवालिया निशान है , लेकिन यह पहल ज़रूर सराहनीय है | सरकार ने अपने को एक पक्षकार की भांति पेश करते हुए सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी देकर करके अपील की है कि अयोध्या में विवादित हिस्से को छोड़कर बाक़ी 67 एकड़ ज़मीन राम जन्मभूमि न्यास को सौंप दे | सरकार ने 1993 में अधिग्रहीत जमीन को गैर-विवादित बताते हुए इसे इसके मालिकों को लौटाने की अपील की है। मुस्लिम पक्षकारों को सरकार के इस क़दम से उन्हें विवाद सुलझने की उम्मीद नहीं दिख रही है | साथ ही हिन्दू पक्षकारों को मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त होता नहीं दिख रहा है | लोकसभा चुनाव से पहले मंदिर निर्माण के मामले को लगातार गरमाया जा रहा है | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद समेत उनके अन्य संगठनों के द्वारा लगातार मोदी सरकार पर मंदिर निर्माण के लिए दबाव बनाया जा रहा है | उल्लेखनीय है कि अयोध्या में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद के आसपास की जमीन केंद्र सरकार के पास है | इसमें से 2.77 एकड़ की जमीन पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था | कहते है कि जिस भूमि पर विवाद है वह जमीन 0.313 एकड़ ही है | 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने इस जमीन पर स्टे लगाया था, और किसी भी तरह की गतिविधि करने पर रोक लगा दी थी | सरकार चाहती है कि अविवादित जमीन को छोड़कर बाकी जमीन भारत सरकार को सौंप दी जाए | भाजपा नेता एवं केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने गत 29 जनवरी को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में केंद्र की पहल को पूरी तरह संवैधानिक क़रार देते हुए कहा कि संवैधानिक बेंच ने ही यह कहा था कि सरकार को निर्णय करना है कि जो आस – पास की जमीन है, उसका क्या किया जाए ? ऐसे में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से यथास्थिति के आदेश को बदलने का अनुरोध किया है | श्री जावड़ेकर के अनुसार, इस बाबत राम जन्मभूमि न्यास ने 2003 में अपील की थी, लेकिन दस साल तक कांग्रेस का राज था और इस पार्टी ने इस पर कुछ नहीं किया | अब मोदी सरकार कर रही है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि चुनावी राजनीति की कोई बात नहीं है। रोज सुनवाई होने को पहले प्राथमिकता में रखा गया था, लेकिन 5-6 महीने ऐसे ही निकल गए | इसलिए सरकार ने यह पहल की है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के नेता कपिल सिब्बल का यह तर्क कि मामले की सुनवाई जुलाई 2019 के बाद हो, इससे यह बात साबित हो जाती है कि कांग्रेस ने मंदिर निर्माण – प्रक्रिया रोकने की कोशिश की | जावड़ेकर ने कहा कि वे (कांग्रेस) तो राम को मानते ही नहीं हैं। राम सेतु पर तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने हलफ़नामा देकर काल्पनिक बताया था | जावड़ेकर ने आगे कहा कि हमें पूरा विश्वास है कि सुप्रीम कोर्ट सरकार की पहल को अनुमति दे देगा। सरकार चाहती है कि 0.313 एकड़ की जो विवादित जमीन है, उस पर यथास्थिति बनी रहे | उसका कानूनी कामकाज और कोर्ट केस पूर्व की तरह चलता रहे। इसके अलावा भूमि के जिस हिस्से पर कोई विवाद नहीं है, सरकार उसे ही मूल मालिकों को वापस देना चाहती है। केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘यह बहुत बड़ी पहल है। भाजपा का शुरू से ही कहना है कि राम जन्मभूमि पर ही मंदिर बने। राम मंदिर बनाने के लिए कानून के द्वारा जो भी मार्ग प्रशस्त करना होगा, वह करने का भाजपा हमेशा प्रयास करेगी।’ उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने इंटरव्यू में कहा था कि लोगों की इच्छा है पर कोर्ट केस चल रहा है, ऐसे में कानूनी प्रक्रिया के बाद जो उचित कदम होंगे, उठाए जाएंगे। उन्होंने कहा कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने भी साफ कहा है कि कानूनी कार्रवाई से ही राम मंदिर बने। जावड़ेकर ने दोहराते हुए कहा कि केंद्र सरकार विवादित ढांचे वाले हिस्से को नहीं छू रही है। हम गैरविवादित भूमि को राम जन्मभूमि न्यास व अन्य को वापस करना चाहते हैं। उनकी जमीनें हैं, जो करना है वही करेंगे। उन्होंने कहा कि सरकार का क़दम असंवैधानिक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी मिलने के बाद राम मंदिर बनाने की दिशा में न्यास आगे बढ़ सकता है। यह सरकार का निर्णय नहीं होगा। 29 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर मामले की सुनवाई होनी थी, लेकिन वह टल गई है | सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई पांच जजों की पीठ कर रही है. जिनमें मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस अब्दुल नजीर, जस्टिस एस. ए. बोबडे और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ शामिल हैं | उल्लेख्य है कि 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अयोध्या विवाद को लेकर फैसला सुनाया था | जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एस यू खान और जस्टिस डी वी शर्मा की बेंच ने अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित जमीन को 3 हिस्सों में बांट दिया था.जिस जमीन पर राम लला विराजमान हैं उसे हिंदू महासभा, दूसरे हिस्से को निर्मोही अखाड़े और तीसरे हिस्से को सुन्नी वक्फ बोर्ड को दे दिया गया था |

सरकार का कहना है कि जो जिस ज़मीन पर विवाद नहीं है, सुप्रीम कोर्ट उसे हिंदू पक्षकारों के हवाले कर दे। इसके अलावा कहा कि 2.77 एकड़ जमीन पर निर्माण करने की इजाज़त दी जाए। 1994 में अदालत ने इस्माइल फारूखी मामले में आदेश देते हुए जमीन केंद्र सरकार के पास रखने को कहा था। इसके साथ ही कहा गया था कि फैसला जिसके पक्ष में आए उसे ज़मीन सौंप दी जाएगी। राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में पक्षकार निर्मोही अखाड़ा के महंत दिनेंद्र दास का कहना है कि यह सिर्फ़ राजनीति है, इसके सिवा और कुछ नहीं | सुप्रीम कोर्ट से दिलवाना है तो पूरी ज़मीन निर्मोही अखाड़े को दिलाएं और निर्मोही अखाड़ा दूसरे पक्ष यानी सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड के साथ बातचीत करके मामले को सुलझा लेगा | हम बोर्ड को अखाड़े की ज़मीन देने को तैयार हैं | चुनाव के ठीक पहले सरकार का यह क़दम लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिश है और कुछ नहीं | यह सरकार को भी पता है कि उसके इस क़दम पर सुप्रीम कोर्ट कुछ नहीं करने वाली | प्रमुख मुस्लिम पक्षकार इक़बाल हाशिम अंसारी का कहना है कि उन्हें सिर्फ़ मस्जिद की ज़मीन चाहिए | उन्होंने कहा, “बाबरी मस्जिद के अलावा सरकार ज़मीन का कोई भी दूसरा हिस्सा लेने को आज़ाद है | उस पर हमारा कोई दावा ही नहीं है | उस ज़मीन को तो सरकार ने अधिग्रहित किया था, उसे वापस लेने की अर्जी डाल रखी है तो हमें क्या आपत्ति होगी ? बाबरी मस्जिद के एक अन्य पक्षकार हाजी महबूब को सरकार के इस क़दम पर कड़ी आपत्ति जताई है | उनका कहना है, “अधिग्रहण के मक़सद में साफ़ कहा गया है कि जिसके पक्ष में फ़ैसला आएगा, उसे इसका हिस्सा आवंटित किया जाएगा | ऐसे में सरकार इस ज़मीन को न्यास को देने की बात कैसे कर सकती है ?” राम जन्म भूमि न्यास के वरिष्ठ सदस्य और पूर्व सांसद राम विलास वेदांती ने सरकार के इस क़दम की प्रशंसा की है, लेकिन वेदांती इसे देर से उठाया सही क़दम बताते हैं | उन्होंने कहा कि

“यह याचिका 2014 में ही दायर की जानी चाहिए थी, जब केंद्र में बीजेपी की सरकार बनी थी | ऐसा हो गया होता तो अब तक मंदिर निर्माण शुरू हो गया होता |” आम चुनाव की पूर्व संध्या पर ही सही मतदाताओं को राम मंदिर का तोहफ़ा मिलना ही चाहिए |

– Dr RP Srivastava, Editor-in-Chief, Bharatiya Sanvad

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