महात्मा गांधी ने इस देश में लोकतंत्र की स्थापना करते समय अहिंसा परमो धर्मः एवं धर्मनिरपेक्ष सुशासन का नारा देकर राजनीति को सेवा भाव से जोड़ दिया था। राजतंत्र में भले ही राजा के पास सर्वाधिकार सुरक्षित रहता रहा हो लेकिन प्रजातंत्र में प्रजा द्वारा चुनी गई सरकारों के पास सर्वाधिकार सुरक्षित होते है और हर कार्य लोकतांत्रिक मान मर्यादाओं के साथ अहिंसा परमो धर्मा के आधार पर बहुजन हिताय बहुजन सुखाय के लिए किया जाता है और सारे निर्णय एक व्यक्ति नहीं बल्कि जनप्रतिनिधियों की पंचायत करती है जिसका चुनाव जनता मताधिकार का इस्तेमाल करके करती है। सभी जानते हैं कि देश विभिन्न राज्यों को मिलाकर बनता है और हर राज्य अपनी अलग संस्कृति एवं रीति रिवाज के होते हैं लेकिन सभी भारत मां के सपूत एवं भक्त होते हैं। इधर हमारी राजनीति कुछ ऐसे रास्ते पर चल पड़ी है जो देश को जाति धर्म संप्रदाय क्षेत्रवाद की डगर पर अग्रसर कर राजनैतिक महत्वाकांक्षा को पूरी करने में लगी है। हर राज्य सरकार के मुखिया का दायित्व होता है कि वह अपने यहां रहने वाले सभी जाति धर्म संप्रदाय के लोगों को समान रूप से सुरक्षा एवं न्याय प्रदान कर धर्मनिरपेक्ष एवं संवैधानिक स्वरूप को बनाये रखे। राज्य में हिंसा अराजकता भ्रष्टाचार पर रोक लगाना राज्य सरकार एवं उसकी पुलिस का परम दायित्व होता है और अगर वह अपने दायित्व का निर्वहन न करके राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए खुद इसमें शामिल हो जाती है तो वहीं पर लोकतांत्रिक मर्यादाएं एवं संवैधानिक लोकतांत्रिक सीमाएं टूटने लगती है। यही कारण है कि हमारे संविधान में ऐसी स्थित में ऐसी गैर जिम्मेदार राज्य सरकारों को बर्खास्त कर वहां पर राष्ट्रपति शासन लागू कराने की व्यवस्था है जो समय-समय पर विभिन्न राज्यों में आजादी के बाद से लागू होती आ रही है। अब तक जम्मू कश्मीर राज्य इस मामले में सबसे अग्रणी था लेकिन अब इधर लोकसभा चुनाव के पहले से पश्चिम बंगाल राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते अराजकता राजनीतिक हिंसा वाला राज्य बनकर चर्चा का विषय बना हुआ है। सभी जानते हैं कि पश्चिम बंगाल में आजादी के बाद से करीब चार दशकों तक वामपंथी दलों का राज रहा है और इसके बाद वामपंथियों को परास्त कर ममता बनर्जी की अगुवाई में टीएमसी की सरकार पिछले ढाई दशकों से शासन कर रही है। इस प्रदेश में मुख्य रूप से हिंदू मुस्लिम रहते हैं और यह राज्य बांग्लादेशी घुसपैठियों का चारागाह एवं शरणस्थली बना हुआ है। यहां पर शुरू से ही हिंदू मुस्लिम राजनीति सत्ता तक पहुंचने का रास्ता बनी हुई है और आये दिन हिंसा होती रहती है। हिंदू मुस्लिम हिंसा और पुलिस का एक तरफा रवैया शुरू से ही इस प्रदेश में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा रहा है।आजादी के बाद से वामपंथी एवं तृणमूल कांग्रेस के अलावा किसी भी दल को यहाँ पैर रखने की जगह नहीं मिल सकी है।वामदलों की जिस कार्यशैली का विरोध करके टीएमसी सत्ता में आई थी आज उहने खुद उसी कार्यशैली को अपना लिया है। भाजपा भले ही समय-समय पर केंद्रीय सत्ता में आती रही हो इसके बावजूद पश्चिम बंगाल में वह सेंधमारी करके अपनी स्थापना नहीं कर पा रही थी जिसके कारण हिंदूवादी लोगों का पक्ष लेने वाला वहाँ पर कोई नहीं था। पिछले लोकसभा चुनाव में पहली बार वामदलों एवं टीएमसी के अभेद किले में भाजपा ने सेंधमारी ही नहीं की है बल्कि वहां की राजनीति में तहलका मचा दिया है। चुनाव के दौरान भ्रष्टाचार का पक्ष लेने एवं समर्थन में धरना देने वाली टीएमसी नेता ममता बनर्जी प्रधानमंत्री एवं गृह मंत्री पर तीखे वार ही नही कर चुकी हैं बल्कि प्रधानमंत्री मानने से इनकार कर चुकी हैं।यहाँ पर लोकसभा चुनाव की शुरुआत ही राजनैतिक हिंसा से हुयी और शुरू से अंत तक हिंसा चुनावी वैतरणी पार करने का माध्यम बना रहा।भाजपा राजनेताओं को चुनाव प्रचार में हिस्सा लेने से रोकने की कोशिश की गई तो अंतिम दौर में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की रैली पर जानलेवा हमला भी किया है।राजनैतिक गुंडई पर उतारू टीएमसी के कुछ विधायक लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद भाजपा की पूर्व घोषणा के अनुरूप उनका साथ छोड़ कर मोदी अमित शाह वाली भाजपा में शामिल हो चुके हैं जिसकी वजह से ममता दीदी की नींद हराम हो गई है और वह गुस्से के चलते लोकतांत्रिक मान मर्यादाओं को भूल गई हैं। चुनाव के दौरान जिस भाषा शैली एवं गुस्से का इजहार वहां की मुख्यमंत्री द्वारा अख्तियार करके लोगों को उकसाकर चुनाव को उग्र एवं हिंसक बनाया गया है उसे किसी भी दृष्टि से लोकतांत्रिक मर्यादाओं के अनुरूप नहीं कहा जा सकता है क्योंकि लोकतंत्र में मतदाताओं का वोट पाने के लिए अच्छे कार्यों से उनका दिल जीता जाता है न कि साम्प्रदायिक उन्माद फैलाकर जंगलराज बनाया जाता है। जाति धार्मिक एवं सांप्रदायिक भावनाओं को भड़का कर मतदाताओं का वोट हासिल करना लोकतंत्र की हत्या करने जैसा है। मतगणना के बाद से पश्चिम बंगाल राजनीतिक अति महत्वाकांक्षा एवं भावी राजनैतिक भविष्य को सुरक्षित करने की दृष्टि से बेगुनाहों की जान का दुश्मन बनता जा रहा है और अब तक दर्जनों लोग वहां पर राजनीतिक हिंसा के शिकार होकर अपने रोते बिलखते परिवार को छोड़कर ईस दुनिया से जा चुके हैं। पश्चिम बंगाल में जारी राजनीतिक हिंसा जैसे थमने का नाम ही नहीं ले रही है और रोजाना मारपीट और हिंसा का दौर जारी है।वहाँ की पुलिस संवैधानिक दायरे में नहीं बल्कि सत्ता दल के इशारे पर राजनैतिक पार्टी बन गई है और मूकदर्शक बनी हिंसा एवं हिंसक अराजकतत्वों को पनाह दे रही है। पश्चिम बंगाल के आगामी 2021में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए पश्चिम बंगाल में पहली बार स्थापित होने भाजपा जहां एड़ी से चोटी का जोर लगाए हुए है वही ममता जी की टीएमसी उसके जमते पैरों को ऐनकेन प्रकारेण उखाड़ने में सारी लोकतांत्रिक मान मर्यादाओं को ताख पर रखकर जुटी हुई है। यही कारण है कि वहां पर राजनीतिक खूनी हिंसा सत्ताधारी टीएमसी एवं भाजपा समर्थकों के बीच हो रही है।चुनाव के बाद से लगातार भाजपा समर्थकों पर हमले एवं हत्याएँ हो रही हैं। वहां पर विवाद और उसके बाद खूनी हिंसा राजनीतिक झंडे लगाने उखाड़ने और जय श्री राम बोलने के नाम पर हो रही है। हमारे देश के तमाम मुसलमान भाइयों को भले ही राम के नाम से इतनी नफरत न हो जितनी नफरत राजनीतिक बिपाशा पूरी करने के लिए टीएमसी नेता मुख्यमंत्री ममता जी को जय श्री राम बोलने से पैदा हो गई है। वहां की पुलिस सरकार के इशारे पर कार्य करने के लिए काफी दिनों से बदनाम चल रही है और यह भी सर्वविदित है कि वहां के मुख्यमंत्री अपने पुलिस अधिकारी पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप के मामले में जांच करने आई सीबीआई का प्रबल विरोध कर देश के विभिन्न विपक्षी राजनीतिक दलों के साथ धरना मुख्यमंत्री होते हुए भी दे चुकी हैं। वहां की पुलिस इन परिस्थितियों में अपने सेवा धर्मों का कितना प्रयोग कर पा रही होगी इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। दो राजनैतिक दलों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा वहां पर रहने वाले दो दिलों के बीच नफरत को बढ़ाकर कौमी एकता एवं आपसी सौहार्द को बिगाड़ने में सहायक बन रही है उसे तत्काल रोका जाना लोकतंत्र के लिए बहुत जरूरी है। पश्चिम बंगाल में दो राजनीतिक दलों के बीच हो रही राजनीतिक खूनी हिंसा लोकतांत्रिक मर्यादाओं के अनुरूप नहीं कही जा सकती है अगर राज्य में जनता की चुनी हुई सरकार जनता की सुरक्षा न कर सके और कानून का राज खत्म हो जाए तो वहां पर लोकतांत्रिक मर्यादाओं को स्थापित करने का दायित्व केंद्र सरकार को होता है। पश्चिम बंगाल में हो रही राजनीतिक हिंसा पर तत्काल रोक लगनी चाहिए और अगर राज्य सरकार इस कार्य सफल नहीं होती है तो निश्चित तौर से जनता के हित में केंद्र सरकार का इसमें दखल देना लोकतांत्रिक व्यवस्था के हित में आवश्यक है।
– भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी
रामसनेहीघाट, बाराबंकी, यूपी
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