1984 में जब मैंने वाराणसी में दैनिक ” आज ” ज्वाइन किया, तब सुमंत मिश्र जी को डेस्क पर पाया | दयानन्द जी ने बताया कि कुछ महीने पहले ही ” दैनिक जागरण ” से यहां आए हैं | मुझे उनकी ज़हानत का पता उस दिन चला, जब उन्होंने अंग्रेज़ी के किसी शब्द को लेकर काफ़ी माथापच्ची की | वह शब्द तो मुझे अब याद नहीं | सुमंत जी उसके स्थानापन्न हिंदी का शब्द चाहते थे, जो नहीं मिल रहा था | बुल्के, भार्गव , राम नारायण लाल [ प्रयागराज – इलाहाबाद ] की डिक्शनरियां देख चुके थे, लेकिन संतुष्ट न हुए | कहने लगे, एक डिक्शनरी से दूसरी बनती है | फिर उन्होंने विश्वनाथ जी [ विश्वनाथ सिंह ] से रुजू किया, जो शिफ्ट इंचार्ज थे | विश्वनाथ जी [ दद्दू] की उम्र साठ से अधिक रही होगी | उन्हें पंडित बाबूराव विष्णु पराड़कर के साथ काम करने का अवसर मिला था | उनकी गणना सीनियर पत्रकारों में होती थी | सुमंत जी ने उन्हें अपनी समस्या बताई | यह भी बताया कि सभी डिक्शनरियों में अमुक अंग्रेज़ी शब्द का एक जैसा हिंदी भावार्थ दिया है | मैं जो अनुवाद कर रहा हूँ , वहां के लिए इसका उपयुक्त अनूदित शब्द नहीं मिल रहा है | जो डिक्शनरियां बता रही हैं, मुनासिब नहीं है कि मैं वैसा लिख दूँ | विश्वनाथ जी ने उनकी समस्या का समाधान किया | उस समय ” आज ” अख़बार में बड़ी कड़ाई थी | मजाल क्या कि कोई बेराहरवी में बहकर ख़याली बात या शब्द लिख दे, जैसा कि आज विभिन्न समाचारपत्र संस्थानों में होता है | लोग मेहनत उतनी नहीं करते और भाषा के उन्नयन के प्रति मानो उनका ध्यान ही नहीं है | सुमंत जी बड़े खोजी और शोधी प्रवृत्ति के हैं | जो भी लिखते बहुत ही मनोयोग और प्रामाणिक तौर पर लिखते हैं | मैं भी अपने को लगभग इसी स्वभाव का पाता था | हम लोगों में हल्की बातचीत के बाद कुछ विषयों पर गहन विमर्श भी होने लगा | मैत्रीभाव में प्रगाढ़ता आती गई | सुमंत जी एक दिन मुझे अपने आवास पर ले गए, जिसको देखकर लगा कि यह मैं ही हूँ | पूरे कमरे में किताबें भरी और बिखरी हुईं और उन्हीं के बीच उनका बिस्तर, जिस पर पढ़ने – लिखने से लेकर सोने तक की ज़रूरत पूरी होती थी |
सुमंत भैया अपने नाम के अनुरूप मेधावी तो हैं ही, अपनी मेधा को अमली जामा पहनाना भी बख़ूबी आता है | इसीलिए जिस भी संस्थान से जुड़े, उसे ऊंचाइयों तक ले गए | सब एडीटर के रूप में जब मेरा ट्रांसफर ” आज ” के पटना संस्करण में हो गया, लगभग उसी समय सुमंत भैया चले गए मुंबई ” नवभारत टाइम्स ” में सब एडीटर बनकर, जहां बाद में असिस्टेंट एडीटर बने | 1980 में वाराणसी के ”सन्मार्ग ” से पत्रकारी की शुरुआत करने वाले सुमंत जी 2008 में अमर उजाला के महाराष्ट्र हेड बने | फिर वे ”नई दुनिया ” से जुड़ गए और 2010 तक इस अख़बार के रीजनल एडीटर रहे | फिर ”अमर उजाला ” से जुड़े और उसके एसोसिएट एडीटर बने | 2014 में हिंदी दैनिक ” दक्षिण मुंबई ” के एडीटर बने | इस समय भैया कहां हैं, मुझे पता नहीं | उन्हें प्रणाम !
– Dr RP Srivastava
Editor-in-Chief, ”Bharatiya Sanvad’