यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि हर ऐरा – गैरा -नत्थू – खैरा हिन्दू धर्म की आलोचना करने बैठ जाता है | हिन्दू धर्म जो देश की आत्मा है , देश का सबसे बड़ा धर्म है , उस पर कीचड़ उछालते किसी को न तो कोई संकोच होता है और न ही किसी प्रकार का भय , जबकि दूसरे धर्म की सही बात लिखने में उसकी नानी मर जाती है ! डेढ़ दर्जन पुस्तकें लिख चुके अक्खड़ कांग्रेसी शशि थरूर ने अपनी नई तख़लीक़ में कुछ ऐसा ज्ञान बघारा है कि कांग्रेस की पोल खुल गई है | नई पुस्तक ‘ द हिंदू वे- एन इंट्रोडक्शन टू हिंदुइज्म’ में उन्होंने हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण दर्शनों जैसे अद्वैत वेदांत पर रोशनी डाली है और उन प्रारंभिक धारणाओं की ओर ध्यान दिलाया है जो धर्म का आधार है। यह पुस्तक उनकी पूर्व की किताब ‘ वाई आई एम ए हिंदू ’ की श्रृंखला की अगली कड़ी है। थरूर ने किताब में लिखा है हिंदू धर्म अपने खुलेपन, दूसरे विचारों का सम्मान करने और अन्य विश्वासों को स्वीकार करने के लिए जाना जाता है। यह एक ऐसा धर्म है जो अन्य धर्मों के भय के बिना डटा रहा ,लेकिन यह वह हिंदुत्व नहीं है जिसने बाबरी मस्जिद तोड़ी, न ही यह सांप्रदायिक राजनीतिक नेताओं द्वारा घृणा भरे बोलों का वमन है। यहां यह सहज सवाल है कि विभिन्न घरेलू, पारिवारिक और बाह्य आरोपों में सने इस लंपटिया शख़्स ने आख़िर छह दिसंबर 1992 की घटना को हिन्दू और हिंदुत्व से कैसे जोड़ दिया | क्या यह न्याय है ? यह तो नकारात्मकता का प्रदर्शन हुआ | उसी नकारात्मकता का प्रदर्शन, जिसने कांग्रेस को ऐसे रसातल में पहुंचा दिया है, जहां उसकी साँस ही अटकी पड़ी है | थरूर को मालूम होना चाहिए कि अपनी नकारात्मकता के सहारे वे कांग्रेस की दुर्गति कर सकते हैं, लेकिन हिन्दू धर्म पर प्रहार करने का उन्हें किंचित भी हक़ नहीं पहुंचता | मैं नकात्मकता में विश्वास नहीं करता |
धर्मों की अच्छाईयाँ ही मेरे सामने रहती हैं , बाक़ी को मैं क्षेपक मानता हूँ …. जहाँ तक हिन्दू धर्म की शिक्षाओं की बात है ,थरूर जी की ताज़ा किताब की टिप्पणियों के अनुसार, सब नकारात्मक हैं | यह आपका मन्तव्य हो सकता है ….. मगर बहुत कुछ अच्छा नहीं , ऐसा कौन मान लेगा ? आज सदैव सद्भाव की बात होनी चाहिए …. देश से नफ़रत मिटे …. इसका प्रयास होना चाहिए , लेकिन मेरा मानना है कि यह कार्य धर्मों पर प्रहार करके संभव नहीं हो सकता …. मीन – मेख तो मैं भी निकाल सकता हूँ , पर मनुष्य हूँ , जानता हूँ यह सब मनुष्यता के विरुद्ध है | कुछ समय से मैं महसूस कर रहा हूँ कि अधकचरे ज्ञान से कुछ सज्जन बौरा गए हैं | मदान्ध हाथी बन गए हैं | उनमें से कुछ से पिछले दिनों मेरी मुलाक़ात हुई ! अललटप बकनेवाले एक सज्जन से जब मैंने कहा कि किसी धर्म पर कोई क्यों प्रहार करे ? आप अपना सुधार और उद्धार स्वयं कीजिए | वे बिफर पड़े और फिर नकारात्मकता में मशग़ूल हो गए | ऐसे ही कई साल पहले शाहनवाज़ हुसैन भाई एक आयोजन में अपना विशेष प्रदर्शन दिखला रहे थे, जब मेरी बारी आई, तो मैंने आपत्ति की कि सीमा – रेखा नहीं लांघी जाए , यही सबके लिए हितकारी होगा | पहले लोग मान जाते थे , आज नहीं मानते | इसका मात्र कारण नकारात्मकता का बढ़ता प्रकोप है ! ऐसा नहीं कि इसका अभी विस्तार हो रहा है | यह चन्द्रमा की मानिंद है , जो विविध आकार लेता रहता है | एक समय की और बात भी याद आ रही है | 2013 शुरू हो चुका था | इसी दौरान जयपुर साहित्य महोत्सव से ख़बर आई कि सामाजिक / राजनैतिक चिन्तक के तौर पर जाने जानेवाले आशीष नंदी ने अपने अब तक के ज्ञान की पोल खोल दी है | दलित भाइयों पर अनर्गल एवं गलत आक्षेप कर डाला . कह दिया कि अधिकांश भ्रष्ट लोग ओबीसी / एससी – एसटी के होते हैं | इस पर तुर्रा यह कि बयान के लिए माफ़ी मांगने से साफ़ इन्कार ! बिलकुल मदान्धता वाली बात की सार्थक करते हुए …… अर्थात, मदान्धता दिखाना और अहं की तुष्टि करना | किसी धर्म पर कटाक्ष करने से कुछ प्राप्त नहीं होता | इससे तो समस्या और उलझती और जटिल होती है , सद्भाव बिगड़ता है | निदान तो तब होता है , जब सुधार के सकारात्मक प्रयास किए जाएँ …. कभी धर्मों के हवाले दिए भी जाएँ तो तुलनात्मक , भले ढंग से … ऐसा न लगे कि एक धर्म विशेष पर प्रहार किया जा रहा है ….. हमें यह तथ्य भी ध्यान में रखना चाहिए कि धार्मिक प्रावधानों को तत्कालीन परिप्रेक्ष्य / सन्दर्भ में ही देखा जाए …. सभी धर्मों में ऐसी बहुत सी चीजें हैं , जिन्हें आज का सम्बंधित समाज ठुकरा चुका है | लोग सुधार की ओर बढ़ रहे हैं | उन्हें उधर बढ़ते जाना चाहिए … यह भी एक तथ्य है कि सुधार – कार्य किसी एक के प्रयास से नहीं हो सकता | इसमें सामूहिकता लाने के लिए हम सब प्रयास करेंगे , तभी लक्ष्य की प्राप्ति संभव है | इन दुखद घटनाओं से मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ कि इन मदान्धों के खिलाफ़ कोई पुलिस कार्रवाई न की जानी चाहिए , क्योंकि इससे इनकी सस्ती लोकप्रियता में बृद्धि होती जाएगी | इन दुर्बुद्धों का मनोबल बढ़ेगा , जो इनसे मानव – शत्रुता के और भड़ास निकलवाएगा | अतः इनको नकारात्मक बातों के सहारे इंसानों को नहीं जोड़ा जा सकता , वह भी आक्रान्ताओं , लुटेरों को महिमामंडित करके और किसी तथाकथित लेखक द्वारा बिना हवाले कुछ लिख देने के आधार पर … सारे इन्सान आपस में भाई – भाई हैं ….. इस इंसानी बिरादरी के बीच नफ़रत / अलगाव पैदा करने की कोई भी कोशिश अनुचित है | – Dr RP SrivastavaEditor-in-Chief, ”Bharatiya Sanvad’