कोरोना आया
210 देशों में एक साथ ;
आगे – पीछे , व्यतिक्रम
किन्तु ——” हम सब साथ – साथ ”
” मिले सुर मेरा तुम्हारा ”
” वसुधैव कुटुंबकम ”
का संकल्प [ ! ? ] लिए
कोरोना आया !
कुछ लोग आज ख़ुश हैं ,
मानो स्वागतमय हों
प्राचीन संस्कृति की दुहाई में लय हों
ऐसा कहते, सुनते , लिखते – पढ़ते देखा , पढ़ा , सुना
कोरोना माहात्म्य !!!???
जिससे प्राचीन भारतीय सभ्यता जगी
फिर कोरोना के हाथों में भारतीय मूल्य ,
संस्कार के लड्डू दिखे ऐसे लड्डू
जिन्हें कोई खा नहीं सकता !
बस दूरी बनाए रखकर उसे ताक सकता है !!
यही तो है कोरोना – सत्य,
जो छुआछूत को जन्मे
उन रूढ़ियों में समाज को डाले
जहां इन्सान श्रेष्ठ होकर भी श्रेष्ठ नहीं रहता —–
बस एहसास जगाता है कोरोना
कि गंदगी से दूर रहा जाए
मगर ‘कोरोनियाई इन्सान ‘ की दूरी
गंदगी से पाक होती है
यह पहले जाना जाए !
—सही है , इन्सान से इन्सान की दूरी
महज़ सावधानी है
वह भी सामयिक
पर समानता है दीर्घकालिक हृदय के मिलन की ,
जिसका श्रेय क्या कोरोना को नहीं मिलना चाहिए —
हर मानुष को सींगवान बनाने के लिए
जो एक दूसरे पर समान अधिकार रखता है
सामाजिक भी और क़ानूनी भी —-
विनाश हो इस दैत्य की
नरपिशाच की
‘ड्रैगन ‘ की
विजय हो
सत्य की , इन्सानियत की
कोरोना मिस्मार , कोरोनियत मुर्दाबाद !
– राम पाल श्रीवास्तव ‘अनथक’