क़लम के जादूगर !
अच्छा है,
आज आप नहीं हो |
अगर होते,
तो, बहुत दुखी होते |
आप ने तो कहा था
कि, खलनायक तभी मरना चाहिए,
जब,
पाठक चीख चीख कर बोले,
मार – मार – मार इस कमीने को |
पर,
आज कल तो,
खलनायक क्या?
नायक-नायिकाओं को भी,
जब चाहे ,
तब,
मार दिया जाता है|
फिर ज़िंदा कर दिया जाता है|
और फिर मार दिया जाता है|
और फिर,
जनता से पूछने का नाटक होता है-
कि अब,
इसे मरा रखा जाए?
या ज़िंदा किया जाए?
सच,
आप की कमी,
सदा खलेगी –
हर उस इंसान को,
जिसे
मुहब्बत है,
साहित्य से,
सपनों से,
स्वप्नद्रष्टाओं,
समाज से,
पर समाज के तथाकथित सुधारकों से नहीं|
हे कलम के सिपाही,
आज के दिन
आपका सबसे छोटा बालक,
आपके चरणों में
अपने श्रद्धा सुमन,
सादर समर्पित करता है |- मुंशी प्रेमचंद