यह है बलरामपुर ज़िले का बरदौलिया, जहां तिराहा है शिवपुरा, तुलसीपुर और सिरसिया का। चुनाव के माहौल में यहां आम तौर पर चुनाव आयोग द्वारा नामित मजिस्ट्रेट को कुछ पुलिसकर्मियों के साथ बैठा देखा जा सकता है, जो मुस्तैदी और तत्परता की निशानी भी है। मगर इसकी आड़ में जनता को अनावश्यक परेशानी हो और चुनाव कार्य में बाधा हो यह कतई उचित नहीं। यहां उस भिश्ती जैसा कार्य होता है, जो बहुत ही अल्पकाल के लिए शासक बनते ही चमड़े का सिक्का चला दिया था।
समाचारों के अनुसार, बरदौलिया में चेकिंग के नाम पर नियम – कानून को ताक पर रखकर आने जाने वालों को अनावश्यक रूप से परेशान किया जाता है। बड़े वाहनों की नहीं सिर्फ कार वालों की तलाशी ली जाती है, उनका फोटो खींचा जाता है, कारवालों का नाम पूछा जाता है और एक रजिस्टर में दर्ज किया जाता है, मानों वे अपराधी हों।
मजिस्ट्रेट महोदय पुलिस की सहायता से यह कार्य करते हैं। और तो और लोकल जनता अगर दिन में तीन चार बार इस छोटे से बाज़ार में अपने किसी काम से कार से आए तो हर बार उसके साथ यही सलूक होता है।
मज़े की बात तो यह है कि जिस वाहन पर किसी पार्टी का पोस्टर आदि लगा होता है, उसे नहीं रोका जाता। जबकि चुनाव में सबसे अधिक गड़बड़ी इनसे ही संभावित है। एक वरिष्ठ पत्रकार ने जो बरदौलिया के पास ही रहते हैं, बताया कि एक दिन उनका दिन में तीन बार से आना जाना हुआ। तीनों बार चेकिंग के नाम पर मनमानी , अनियमितता की गई, जबकि अन्य वाहनों को आने जाने दिया जा रहा था। ऐसे ही अफसरों की फूहड़ और नियम विरुद्ध कार्यशैली के कारण मत प्रतिशत और घटता है। पत्रकारों की प्रताड़ना से भी लोकतंत्र आहत होता है, जो कदापि उचित नहीं। अन्य लोगों की भी कुछ ऐसी ही शिकायत है। अक्सर देखा गया है कि चुनाव आयोग द्वारा जो नामित किए जाते हैं और उन्हें बैठे बैठते वे अधिकार मिल जाते हैं, जिनकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। फिर यही होता है नागरिक अधिकारों की पामाली। ऐसा भी देखा जाता है कि अक्षमता के चलते चुनाव को प्रभावित करनेवाले संसाधन उन तक पहुंच जाते हैं, जहां उन्हें पहुंचना होता है। इधर सड़क पर चेकिंग की नौटंकी चलती रहती है और उचित पगडंडियों और संपर्क मार्गों से सामान पहुंचा दिया जाता है। विरले ही कोई खेप पकड़ी जाती है, वह भी जब मुखबिरी हो जाती है। ( हमारे संवाददाता से )

कृपया टिप्पणी करें