.” स्पर्शी ” का दूसरा पुष्प हस्तगत हुआ। यह साहित्यिक पत्रिका है, जिसके संपादक हैं अतुल कुमार शर्मा और सह संपादक हैं दिलीप कुमार पांडेय। दोनों प्रतिभावान कवि भी हैं। पत्रिका उत्तर प्रदेश के संभल से प्रकाशित होती है। पत्रिका में इसकी अवधि का उल्लेख नहीं। संभवतः वार्षिक है, लेकिन है बड़ी स्तरीय है, साहित्य जगत में स्वागतयोग्य। अग्रलेख में जो ” संपादकीय ज्वाला ” के अंतर्गत है, संक्षिप्त साहित्य – चर्चा है। कुछ सहयोगी रचनाकारों के योगदान के साथ ही कुछ कर्तव्यों पर है और ” स्पर्शी ” के सहयोग की अपील भी।
सह संपादक ने ” सृजन की ओर बढ़ते क़दम ” में ” सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय ” की जो बात उठाई है, वह श्लाघनीय है। समय की आवश्यकता है।
अजीत रस्तोगी ” सुभाषित ” का गीत ” अच्छा इंसान ” बहुत प्रेरक और प्रबोधक है। ” जो गैरों की पीड़ा का विष, अमृत जैसे पी लेता है, रोज़ अभावों में रहकर भी , सुख से जीवन जी लेता है ” जैसी पंक्तियां अच्छे काव्य की द्योतक हैं। अतुल कुमार शर्मा की ” अधमनी शुभकामनाएं ” मनोद्गार का कामयाब रेखांकन है।
वास्तविकता के निकट है। डॉक्टर अर्चना गुप्ता का गीत बहुत भावप्रद है। अन्य कविताएं भी स्तरीय हैं।
विकेश निझावन की कहानी ” गांठ ” बहुत कुछ कह जाती है। मर्मस्पर्शी है। सच है, कुछ रोग असाध्य हो जाते हैं। कहानी का शिल्प सौंदर्य उम्दा है ही, प्रस्तुति भी धारदार है। ” नेपाल की कविताएं ” अपने प्राकृतिक वैभव के कारण भी बड़ी खूबसूरत हैं। सभी राग – रचनाएं लाजवाब हैं। इनमें बर्दघाट , नेपाल के डॉक्टर घनश्याम परिश्रमी की रचना हृदय को छू गई।
शिवानी शर्मा की रचना ” गांव बनाम शहर ” दरअसल लघुकथा है, जिसे कहानी बताया गया है। सच है, आज के गांव विकास की होड़ और दौड़ में विनाश की ओर अग्रसर हैं।
ज्ञानेंद्र पांडेय की ” अवधी मधुरस ” शीर्षक कविताएं बेजोड़ हैं, लेकिन इनमें अवधी में कुछ नहीं, जैसा शीर्षक से आभास होता है। मेरा विचार है कि पत्रिका में अवधी भाषा में भी रचनाएं होनी चाहिए। कुमार हरीश की कहानी ” संस्कारों की दौलत ” अच्छा संदेश रखने के बावजूद कहानीनुमा नहीं है। परिभाषा से परे है, फिर भी अभिनव प्रयोग है, जिसका स्वागत है।
आदित्य भार्गव की कविताओं में ” भ्रूण हत्या ” गज़ब की है, प्रभावी है। ” समय का खेल ” कहानी के शिल्प में न होने के बावजूद सशक्त है। डॉक्टर यश चोपड़ा की कहानी ” हीरे की अंगूठी ” स्तरीय कहानी है। जीवन में ऐसा भी हो जाता है, जो बनवारी लाल ने किया ! अन्य कहानियां अपने मक़सद में कामयाब हैं।
रमेश कुमार संतोष की लघुकथा ” तृप्त ” काबिले तारीफ़ है। संदेश स्पष्ट है। श्रीकृष्ण शुक्ल और शबनम शर्मा की लघुकथाएं भी दमदार हैं।
पुस्तक – समीक्षा में डॉक्टर मक्खन मुरादाबादी ने ” उम्मीद की लौ ” की उत्कृष्ट समीक्षा की है। यह प्रतिभावान कवि दिलीप कुमार पांडेय की पहली काव्य – कृति है, संकलन है कविताओं का। ऐसा लगता कि ये कविताएं जीवन – संघर्षों से प्रसूत हैं, इसलिए इनका पैनापन और संदेश दोनों प्रकाशमय उम्मीद की लौ बिखेरती हैं। ” कुमुदिनी ” की समीक्षा समीक्षक दिलीप कुमार पांडेय की प्रखर बौद्धिकता का दर्शन कराती है। वैसे यह उपन्यास भी अप्रतिम कथावस्तु पर आधारित है। निःसंतान लोगों के लिए आशा की किरण आई वी एफ पर है। इसके रचनाकार हैं डॉक्टर अजय शर्मा, जो स्वयं डॉक्टर हैं। इसलिए भी यह उपन्यास तथ्यात्मक रूप से पुष्ट है। इस उपन्यास आत्मकथ्यात्मक होने के बावजूद बेहद रवानी और प्रवाह लिए हुए है, जिससे पाठक इसे अंत तक पढ़ने के लिए विवश हो जाता है। समीक्षक ने डाक्टर साहब का बहुत संक्षिप्त परिचय देकर समीक्षा को और बेहतर बना दिया है।
पत्रिका की छपाई बहुत खूबसूरत और आकर्षक है। मुखपृष्ठ दिलकश, मनोहारी और आकर्षक है। 60 पृष्ठों की इस पत्रिका में सहयोग राशि दर्ज नहीं है। संभल जैसे स्थान से इस प्रकार की पत्रिका का प्रकाशन निश्चय ही हिंदी साहित्य जगत की बड़ी उपलब्धि है। इससे जुड़े सभी महानुभावों और रचनाकारों को बधाई, शुभकामनाएं।
– Dr RP Srivastava
Chief Editor, Bharatiya Sanvad