trahimam yuge yuge
इस सप्ताह, पिछले कुछ दिनों से चर्चा में आयी ‘त्राहिमाम युगे युगे’, पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. मेरी रूचि को समझ कर आदरणीय राम पाल श्रीवास्तव जी से डाक द्वारा प्राप्त हई.
‘त्राहिमाम युगे युगे’ वरिष्ट पत्रकार राम पाल श्रीवास्तव जी की एक ऐसी पुस्तक है जिसका नाम आपको चकित कर सकता है. राम पाल जी अनगिनत सम्मानों से अलंकृत पत्रकार और साहित्यकार है. आपके बहुत से शोध, काव्य संग्रह, आलेख और कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके है.
वास्तव में यह पुस्तक एक खोजी पत्रकार की असीम मेहनत का फल है जो आपको शुरू से अंत तक बांधे रखेगी. यह पुस्तक उत्तर प्रदेश के नेपाल से सटे कुछ इलाकों से एकत्रित कहानियों का संग्रह है जिन्हें एक सूत्र में पिरोकर उपन्यास की शक्ल दी गई है. कमाल की बात है की हर कहानी का सूत्रधार कोई अलग व्यक्ति है और वही कहानी का चश्मदीद और मुख्य पात्र भी है.
trahimam yuge
कहानी के मुख्य पात्र एक कंपनी के तीन कार्यकर्ता माधव कान्त सिन्हा ( जो संपादक भी हैं इस प्रकाशन प्रतिष्ठान के ), नवीन कुमार जी (स्वयं की भूमिका में) और अब्दुल्लाह हैं. तीनों में से माधव कान्त जी वरिष्ट होने के कारण ऑफिस का काम देखते हैं और नवीन कुमार और अब्दुल्लाह दुर्गम इलाकों में लोगों से संपर्क साध कर उपेक्षित लीगों की समस्यायों को जानने की कोशिश करते हैं. इन्ही गतिविधियों को पुस्तक में १६ भागों में परोसा गया है और वह भी इस तरह कि वास्तविक घटनाओं से छेड़छाड़ न हो और जिज्ञासा बनी रही. पहले से सोलहवें पायदान तक नए-नए पात्र सामने आते हैं. इन तीनों द्वारा सृजित कथाओं और बयानों में बाकी के सभी पात्र अपनी स्थानीय बोली और चरित्र को साकार करते हुए आगे बढ़ते हैं. स्थानीय बोली समझने में भी कोई विशेष कठिनाई नहीं आती क्योंकि यह आंचलिक हिंदी से मिलती जुलती है. पुस्तक के बारे में संक्षेप में लिखना बहुत कठिन है क्योंकि घटनाएं बहुत ज्यादा हैं. जो कुछ पढ़ा उसका सार लिखने की कोशिश है-
पहला चरण: कीरति, भनिति, भूति भलि सोई….
पहले चरण में तीनों अपनी कंपनी के मालिक डायरेक्टर कल्पेश पटेल जी से पुस्तक ‘त्राहिमाम युगे युगे’ के लिखे जाने के उद्देश्य पर चर्चा करते दिखाई देते हैं जैसा कि इस चरण के शीर्षक में कहा गया है – कीर्ति, कविता या साहित्य और संपत्ति वही श्रेष्ट और उत्तम है जो गंगा जी की तरह सब का हित करने वाली हो. इस वाक्य का स्मरण करते हुए तीनों पुस्तक के उद्देश्य के लिए आगे बढ़ते हैं.
दूसरा चरण: भुलवा की मौत
इस चरण में एक छोटी नदी भुलवा का जिक्र है जो समयचक्र में फंसकर नाले में बदल जाती है और क्रूर इन्सान के हाथों उसका गला घोंट दिया जाता है. भुलवा एक छोटी नदी ही नहीं एक सभ्यता थी जिसके उद्गम से लेकर अंत तक के स्थानों को चिन्हित किया गया. यह चरण लेखक और पाठक को विचलित करने वाला है क्योंकि यह एक नदी की हत्या जैसा है.
तीसरा चरण: खैरमान की जल समाधि
तीसरे चरण में नेपाल से सटे जंगलों में खैरमान गाँव और नहर की खोज को बहुत ही दिलचस्प तरीके से दिखाया गया है. खैरमान गाँव और नहर तो कागजों में दिखाई देते हैं लेकिन वास्तविकता में केवल कुछ अवशेष ही बचे है. बाँध के नाम पर हर साल नहर की सफाई होती दिखती है. बाँध का रेस्ट हाउस जीवित है साहबों के लिए. इसी दौरान लेखन की परियोजना में एक दुखदायी घटना होती है. अब्दुल्ला और नवीन कुमार को खैरमान के इलाकों से पुलिस पूछताछ में गुजरना पड़ता है. अब्दुल्ला क्योंकि अपने नाम के आगे डी लिखता था, पकड़ा गया और असलाह और कुछ कागज पत्र पाए जाने के जुर्म में आतंकवादी घोषित कर जेल भेज दिया गया. जब कि वह निर्दोष था.
चौथा चरण: कुरअअन्दाज़ी
इस चरण में अब्दुल्ला ने सलाखों के पीछे रह कर भी एक कहानी को अंजाम दिया है और अपनी जिजीविषा का परिचय भी. इसमें दिखाया गया है कि किस तरह अब्दुल्ला की माँ ने हज में लगातार तीन साल तक अपना नाम न आने के बाद मुस्लिम नियमों के अनुसार अपना सारा पैसा एक हिन्दू लड़की के विवाह में खर्च करने का फैसला लिया.
पांचवाँ चरण: विरासत की दौड़
इस भाग में बलरामपुर रियासत में किस प्रकार सामाजिक और राजनितिक सरोकार बदले इसका चित्रण किया गया है. इसमें जनधन, उज्जवला, स्वच्छ भारत में सौचालय निर्माण और सरकारी अस्पतालों की निम्नस्तरीय हालत पर दिलचस्प कहानियां लिखी गई है. किसानों को अपनी फसल का सही मूल्य न मिलने की बात भी कही गई है. इस खंड में नवीन कुमार यानी लेखक का योगदान है जिन्होनें गाँव गाँव घूमकर पुराने लोगों से बात की.
छठवां चरण: दो पाटों के बीच में
इस चरण में अब्दुल्लाह की जमानत न होने की चर्चा है साथ ही भुलवा नाले की खोज के शेष भाग पर प्रकाश डालने का प्रयास भी. जिसमें दिखाया गया है कि किस तरह भुलवा के पेट पर लोगों ने मिट्टी डालकर भर दिया है. जो थोड़ा बहुत पानी कहीं इकट्ठा होता है वह दबंग पट्टेदार इस्तेमाल करते है.
सातवाँ चरण: जिन्दगी का जंगनामा
इस चरण में घुमंतू नटों और भीख मांगने वालों की दशा का उल्लेख है. जिनपर समाज के पैसे वाले लोगों के जुल्म को रघुवीर की कहानी के साथ दिखाया गया है. वह दृश्य जिसमें रघुवीर अपने मृत पिता का धर्म बताने में असफल रहता है बहुत ही हृदयस्पर्शी है. अंत में उसके नटों की रवायत के अनुसार ही दफ़न करती है पुलिस.
आठवां चरण: ये कहानी फिर सही
इसमें एक देवर धन की चाहत में अपनी पत्नी के साथ मिलकर सगी भाभी की हत्या कर देता है. पूरा प्रकरण सत्य से भरा हुआ लगता है. ये कहानी पढ़ने पर पाठक गम में डूब जाएगा. धन की लोलुपता में इन्सान कितना अँधा भी हो सकता है.
नवां चरण: किताब चोर
एक किताब चोर की दास्तान है जिसमें एक राजकीय अधिकारी की बहुमूल्य किताबों और दस्तावेजों को चुराकर बाज़ार में बेच देता है और उसके जीवन के मकसद में खुशियों की जगह दुःख भर देता है.
दसवां चरण: किंचा का विकास
इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों में जमा पूँजी की बंदरबाट का विस्तारपूर्वक वर्णन है. किस तरह सीधे सादे ग्रामीणों का पैसा जमा कराने के नाम पर गायब कर दिया जाता है. लिए हुए कर्ज को चुकाने में भी बहुत से लोग अपनी जमीनें बेच खाली हो जाते हैं.
ग्यारह से पन्द्रहवां चरण: इन चरणों में ‘अभी पसंगा है’, ‘चार्वाक जिन्दा है’, ‘जमाने से पंगा’, ‘सदियों ने सजा पाई’, ‘जात ही पूछो साधू की’ ये पाँच कहानियां पुस्तक के उद्देश्य को सार्थक करती है. सामजिक बुराईयों को लिखा गया है. शराब नोशी और मांसाहार के बारे में विस्तार से कहानियां लिखी हुई हैं.
सोलहवां चरण: त्राहिमाम युगे युगे
पुस्तक का शीर्षक चरण है. इसमें इस पुस्तक को प्रथम जॉन योकर पुरस्कार की घोषणा के बाद, तीनो की टीम जब जहाज से अमेरिका जा रही थी जहाज क्रैश हो जाता है. दुर्घटना में जहाज के सारे यात्री और क्रू मेंबर भी ख़त्म हो जाते है. सम्मान बाद में सीवीसी कंपनी को दिया जाता है.
अंत में कहना चाहूँगा कि मैं एक समीक्षक नहीं हूँ. मैनें पुस्तक को दिल से पढ़ा है. बहुत ही उद्देश्यपूर्ण कृति है ‘त्राहिमाम युगे युगे’. भाषा में कुछ उर्दू के शब्द हैं जो परेशान कर सकते है. लेखक और वरिष्ठ साहित्यकार राम पाल श्रीवास्तव जी को गंगा जमुनी तहजीब पर एक अच्छा दस्तावेज देने पर बहुत बहुत शुभकामनाएं .
पब्लिशर: न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन
कुल पृष्ठ: २३२
पुस्तक अमेज़न पर उपलब्ध है।
तेजबीर सिंह सधर
पुणे, महाराष्ट्र

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