कवि, शोधार्थी, उपन्यासकार राम पाल श्रीवास्तव द्वारा रचित उपन्यास “त्राहिमाम युगे युगे” के शीर्षक से ही पाठक मन में यह प्रभाव पड़ जाता है कि यह कृति हर युग में मनुष्य की मनुष्य के हाथों हो रही प्रताड़ना, क्रूर-खसूट अमानुषिकता से उपजे करने की दर्द गाथा है, क्योंकि यह विनाशकारी प्रक्रिया युग-युगांतर से जारी है। हमारे महान ग्रंथ इस बात के प्रमाणिक दस्तावेज हैं। इस उपन्यास को पाठक कोड दर कोड, पैरा दर पैरा पढ़ता जाता है, तो पता चलता जाता है कि मनुष्य ने न सिर्फ़ अपने हमजमाता मनुष्यों को ही प्रताड़ित किया है, बल्कि उसने प्रकृति के संसाधनों का अवैध दोहन भी किया है। उसने जंगल, पहाड़, नदी-नाले, तालाब, पशु-पक्षियों, खेतों-खलिहानों यहां तक कि अपनी लोक कला-लोक संस्कृति को ही तहस-नहस करके रख दिया है और ये सभी विनाश के कगार पर पहुंच चुके हैं।
उपन्यास का आरंभ “त्राहिमाम युगे युगे” को अमेरिका की एक संस्था द्वारा योकर पुरस्कार प्राप्त होने पर उसके रचयिता माधवकांत तथा उनके सहयोगियों नवीन कुमार और अब्दुल्लाह के साथ हवाई यात्रा द्वारा पुरस्कार प्राप्त करने हेतु जाने के प्रसंग से होता है। यह उपन्यास सीवीसी प्रमुख कल्पेश पटेल द्वारा सुझाए ग्रामीण पृष्ठभूमि के कंसेप्ट पर आधारित है। कुल 16 कांड में उपन्यासकार पाठक को उत्तर प्रदेश के ज़िला बलरामपुर के गांव मैनडीह ले जाता है तथा स्वतंत्रता प्राप्ति की पौनी सदी गुज़रने के बाद भी वहां की सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व राजनैतिक व्यवस्था के निकृष्ट रूप का यथार्थमयी चित्रण करता जाता है। कोड दर कोड पाठक उन समस्याओं से साक्षात्कार करता जाता है, जो प्राकृतिक तौर पर कम, लेकिन मनुष्य जनित अधिक हैं तथा मनुष्य अपनी मूलभूत पाशविक प्रवृत्तियों के चलते इन्हें अंजाम देने में संलिप्त है। “माइट इज राइट”, “गरीब की लुगाई, सबकी भौजाई”, “बड़ी मछली द्वारा छोटी मछली का शिकार” जैसी कहावतें एक-एक करके पृष्ठ दर पृष्ठ घटित होती जाती हैं।
लोभी मानव ने नदी-नाले, तालाब, पेड़-पौधों का अस्तित्व मिटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। ख़ैरमान बांध बनाकर भुलवा नाले का लुप्त हो जाना। आपराधिक क़िस्म के लोगों द्वारा सरकारी संपत्तियों पर अवैध कब्जे करते जाना और प्राकृतिक संसाधनों के मिटते ही कई गावों का बेचिराग़ हो जाना या विलुप्त हो जाना बेहद चिंताजनक स्थिति को उभारता है। वहीं योगेश जैसा लंपट, धोखेबाज देवर है, सीधी-सच्ची भाभी की सारी ज़मीन-जायदाद- दौलत हड़प लेता है और भाभी को दर-दर की ठोकरें खाने के लिए बेघर कर देता है। कहीं अपने यौवन से गैर मर्दों को अपना शिकार बनाकर उसकी ज़मीन-जायदाद पर कब्ज़ा कर लेने का वृत्तांत है।
उपन्यासकार ने विशेषकर ग्रामीण अंचल में ज़मीनी स्तर पर जड़ें जमा चुकी छोटी से छोटी, खतरनाक से खतरनाक, दृश्य-अदृश्य सभी बुराइयों-कुरीतियों, सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन के नाम पर भ्रष्टाचार की नंगी तस्वीर प्रस्तुत की है। खस्ताहाल शिक्षा प्रणाली जैसे गंभीर मसले पर भी चिंता व्यक्त की गई है।
उपन्यासकार ने विभिन्न नशों में ग्रस्त-पस्त नई पीढ़ी की भी असलियत उजागर की है। उपन्यास में लोगों में बढ़ती तंगहाली, बदहाली का यथार्थमयी चित्रण किया गया है। पुलिस तथा न्यायिक व्यवस्था का पतन अब्दुल्लाह के प्रकरण से समझा जा सकता है। अब्दुल्लाह तो एक उदाहरण है, ऐसा नहीं है कि केवल मुसलमानों के साथ शक के आधार पर ऐसा कुकर्म होता है। भगवा आतंकवाद के नाम पर कई हिंदू युवाओं-युवतियों को भी इसी प्रकार शक के आधार पर जघन्य अपराधों के नाम तले जेलों में रखा गया। ( बेशक इसका ज़िक्र उपन्यास में नहीं है। ) यह भी देश की पूर्व सरकारों द्वारा “काउंटर अटैक” वाली नीति के अंतर्गत चलाया गया।
समीक्ष्य उपन्यास में ऐसे कई प्रकरणों, घटनाओं को कहीं किस्सागोई, तो कहीं वार्तालाप, कहीं फ्लैश बैक, कहीं फंतासी शैली में पाठकों के सम्मुख रखा गया है। उपन्यास में असंख्य पात्र हैं, लेकिन उपन्यासकार उनका चरित्र-चित्रण और वातावरण निर्माण करने में सफल हुआ है। भाषा-बोली की दृष्टि से भी यह उपन्यास विशेष रूप से ध्यानाकर्षित करता है।
गांव में विभिन्न समुदायों की विभिन्न स्थानीय बोलियों का पात्रों तथा स्थान के अनुसार इस्तेमाल किया गया है। वहीं नरेटर द्वारा आवश्यकता से अधिक उर्दू के कठिन शब्दों का प्रयोग उपन्यास के अर्थ संचार में बाधा बन सकता है। इससे विचार प्रवाह बाधित होता है। उपन्यास जैसी बृहताकार रचना के सृजन हेतु इस ओर विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है।
उपन्यास का अंत हवाई जहाज़ के समुद्र में डूब जाने और लेखक व उसके सहयोगी साथियों की मृत्यु के रूप में किया गया है। इस ट्रैजिक उपन्यास का अंत सुखांत भी लिया जा सकता था। एयर क्रैश द्वारा अंत पाठक मन में अतिरिक्त संवेदना पैदा नहीं करता। यह उपन्यासकार की अपनी इच्छा या कल्पना हो सकती है, लेकिन निज यथार्थ-लोक यथार्थ बन सके, यह आवश्यक नहीं।
कुल मिलाकर “त्राहिमाम युगे युगे” भारत और उसके ग्रामीण अंचल की मौजूदा यथार्थमयी प्रस्तुति के चलते एक महत्वपूर्ण कृति है। उपन्यासकार की भाषा, ज़मीन, ग्रामीण लोकाचार, सामाजिक, राजनैतिक, प्राकृतिक व्यवस्थाओं में गहन रुचि, विशाल ज्ञान भंडार व विस्तृत अनुभव, अपनी संस्कृति के प्रति समर्पण की भावना झलकती दिखाई देती है, जो एक शुभ लक्षण है।
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कृति : ‘त्राहिमाम युगे-युगे’
विधा : उपन्यास
उपन्यासकार : राम पाल श्रीवास्तव
प्रकाशक : न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन, दिल्ली
मूल्य : 425 रुपए
पृष्ठ : 232
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समीक्षक : डॉ. धर्मपाल साहिल
होशियारपुर ( पंजाब )
मोबाइल : 9876156964