बलरामपुर [ उत्तर प्रदेश ] पिछले कई वर्षों से जिला तो बन गया , किन्तु विकास के नाम पर यह अब भी फिसड्डी बना हुआ है | यह भ्रष्टाचार के बड़े केंद्र के रूप में अपना नाम रोशन कर रहा है ! यहाँ के मनरेगा भ्रष्टाचार का तो कोई सानी नहीं है | बलरामपुर सहित कई जिलों के मनरेगा भ्रष्टाचार जाँच सीबीआई कर रही है , मगर उसकी सालों की मशक्कत के बाद भी अब तक किसी भ्रष्टाचारी के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई का न हो पाना अपने में अजूबा और आश्चर्यजनक है | साथ ही भ्रष्टाचारियों के काले कारनामों पर रोक भी नहीं लग पाई है | मनरेगा के दर्जन भर मजदूरों को तीन वर्ष से अधिक समय से लंबित है |सोहेलवा वन्य जीव प्रभाग के अधिकारी मजदूरों के मांगों की ओर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं , जबकि मजदूर स्थानीय जिला प्रशासन के अधिकारियों से लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तक से गुहार लगा चुके हैं , मगर उनकी मजदूरी अभी तक नहीं मिल पाई है |अब उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार सत्ता में है और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लोगों को बड़ी आशाएं हैं , अतः मजदूरों ने विगत 11 मई 2017 को मुख्यमंत्री के नाम पंजीकृत अनुरोध पत्र भेज कर अपनी मजदूरी के तत्काल भुगतान की मांग की है | उल्लेखनीय है कि इससे पहले मजदूरों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष भी लिखित रूप अपनी व्यथा प्रस्तुत कर चुके हैं |
मजदूरों ने मुख्यमंत्री को लिखे अपने अनुरोध पत्र में कहा है कि ” हम मजदूर उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले के हर्रय्या थानान्तर्गत ग्राम – मैनडीह और टेंगनवार नामक ग्रामों के निवासी हैं | मेहनत – मजदूरी करके स्वयं और परिवार का किसी प्रकार गुजर – बसर करते हैं | हम लोगों से सोहेलवा वन्य जीव प्रभाग के बनकटवा रेंज के पूर्व फारेस्ट गार्ड श्री नूरुल हुदा , जिनके बारे में पता चला है कि अब उक्त वन प्रभाग के ही जनकपुर [ निकट तुलसीपुर ] रेंज में तैनात हैं और टेंगनवार चौकी के वाचर श्री सिया राम ने बनकटवा रेंज सीमा में मनरेगा के तहत 13 जनवरी से 26 मार्च 2014 के बीच विभिन्न अवधियों में वृक्षारोपण और झाड़ी की सफ़ाई के काम कराये थे | हम मज़दूरों से लगभग दो – ढाई महीने तक काम कराये गये , लेकिन ढाई वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद भी हजारों रुपये मज़दूरी का भुगतान नहीं किया गया है |
पता चला है कि हम लोगों की मजदूरी दूसरों के जॉब कार्ड , फर्ज़ी दस्तखत और अंगूठा लगाकर अर्थात फर्जी कागजात बनाकर हड़प ली गई है | वाचर राम किशुन पुत्र झगरू के द्वारा दूसरों के जॉब कार्ड और बैंक पासबुक इकट्ठा कराए गए और जिन लोगों ने मजदूरी की ही नहीं उनके नाम पर हम लोगों के हज़ारों रुपये उठा लिए गए | इस प्रकार फर्ज़ी तौर पर हम गरीबों के पैसे तत्कालीन फारेस्ट गार्ड नूरुल हुदा जी,वाचर सियाराम और वाचर राम किशुन ने हड़प लिए | इस भ्रष्टाचार कांड में अन्य वनाधिकारियों एवं अन्य की भी संलिप्तता है | पूर्व रेंजर अशोक चन्द्रा जी ने काम के दौरान हम सभी मज़दूरों के फोटो खिंचवाए थे , जो हमारे काम करने का पुष्ट प्रमाण है , जिसको झुठलाने का काम किया तत्कालीन रेंजर पी डी राय ने , जो बाद में इस भ्रष्टाचार – कांड में शामिल हो गये |
हम प्रार्थी गण को न्यूनाधिक एक से ढाई महीने की मजदूरी नहीं मिल पाई है जिसका विवरण निम्नलिखित है –
केशव राम पुत्र राम धीरज [ ग्राम – मैनडीह ] ने 70 दिन काम किया , जबकि इसी गाँव के राम वृक्ष पुत्र पट्टे ने 60 दिन | टेंगनवार गाँव के शंभू यादव पुत्र राम धीरज ने 40 दिन काम किया | इसी गाँव के खेदू यादव पुत्र ननकऊ यादव ने 50 दिन काम किया | टेंगनवार के ही कृपा राम यादव पुत्र खेदू यादव ने 40 दिन , शिव वचन यादव पुत्र श्याम नारायण यादव ने 40 दिन , मझिले यादव पुत्र कल्लू ने 39 दिन , राम प्यारे यादव ने 30 दिन , राम बहादुर यादव पुत्र राम यश यादव ने 25 दिन , संतोष कुमार यादव पुत्र जग नारायण यादव ने 22 दिन और बडकऊ यादव पुत्र भगवती यादव ने 20 दिन काम किया | रामफल पुत्र फेरन ने 20 दिन काम किया |
वन अधिकारी और कर्मचारी अपने भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए तरह – तरह के झूठ ,गलतबयानी का सहारा ले रहे हैं और खुलेआम क़ानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं | वन अधिकारी भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए अब कहते हैं कि मजदूरों ने काम ही नहीं किया , हालाँकि मजदूरों की शिकायत के महीनों बाद दी गई जाँच रिपोर्ट में बहुत की खामियां , अन्तर्विरोध, भ्रामक तथ्य और गलत बयानियाँ पाई जाती है | ये सब हम गरीब मजदूरों की मजदूरी हड़प कर खा गये | बार – बार विभिन्न राजनेताओं एवं अधिकारियों के पास लिखित शिकायत की , लेकिन परिणाम कुछ भी सामने नहीं आया और हम लोगों को मजदूरी अभी तक नहीं मिल पाई है |
बलरामपुर के तत्कालीन प्रभागीय वनाधिकारी एस एस श्रीवास्तव 16 जनवरी 15 को इस बाबत जिला विकास अभिकरण , बलरामपुर , पत्रांक 2045 / मनरेगा / शि . प्रको . / 2014 – 15 / दिनांक 20 – 12 – 2014 का हवाला देते हुए मुख्य विकास अधिकारी , बलरामपुर को लिखते हैं कि ” आपके उक्त संदर्भित पत्र के अनुपालन में संबंधित क्षेत्र के क्षेत्रीय वन अधिकारी से आख्या मांगी गई , जिस पर उनके द्वारा यह अवगत कराया गया है कि शिकायतकर्ता श्रमिकों से वर्णित अवधि में वृक्षारोपण एवं अनुरक्षण हेतु अथवा अन्य न तो कोई कार्य लिया गया है और न ही किसी स्तर पर कोई भुगतान लंबित है | ”
श्री श्रीवास्तव अगर बनकटवा के तत्कालीन क्षेत्रीय वन क्षेत्र अधिकारी [ रेंजर ] पी . डी . राय की आख्या और श्रमिकों की शिकायत को ठीक से पढ़ लेते , तो अपनी टिप्पणी ऐसी न करते , बल्कि आख्या में भ्रामक , गलत , विरोधाभासी और पक्षधरतापूर्ण बातों और विवरणों के मद्देनज़र रेंजर और फारेस्ट गार्ड से जवाब तलब करके हम गरीब , बेसहारा मजदूरों की हजारों रूपये की महीनों से लंबित मजदूरी चुकता करने का तत्काल आदेश देते | मगर उन्होंने ऐसा न करके हम मजदूरों की आर्थिक व मानसिक परेशानी बढ़ाने का ही कार्य किया |
क्या यह भ्रष्टाचारियों को बचाने का प्रयास नहीं है ? यह आख्या नियमानुसार भी नहीं है | इसमें न तो शिकायत के बिन्दुओं का समावेश है और न ही हम श्रमिकों से कोई बात ही की गई | उक्त आख्या स्पष्ट रूप से उत्तर प्रदेश ग्रामीण रोज़गार गारंटी शिकायत निवारण तंत्र नियमावली , 2009 के विरुद्ध है | इस मामले में वनाधिकारी -कर्मचारियों ने हमारे जॉब कार्ड और बैंक पासबुक मजदूरी देने के नाम पर जमा कराए गए , फिर उन्हें वापस कर मजदूरी देने से इन्कार कर दिया गया | कहा गया कि तुम लोगों की मजदूरी जाँच करने वाले अधिकारी को रिश्वत के रूप में दे देंगे |
इस मामले में तत्कालीन रेंजर अशोक चंद्रा का कोई बयान नहीं है , जबकि उनके द्वारा कार्यरत मजदूरों की फोटोग्राफी कराई गई थी , जो मजदूरों के काम करने का बड़ा सबूत है | इस भ्रष्टाचार कांड में मुख्य भूमिका निभाने वालों में से वाचर सिया राम और राम किशुन के भी किसी बयान का उल्लेख नहीं है , जबकि शिकायत पत्र में साफ़ कहा गया है कि तत्कालीन फारेस्ट गार्ड नूरुल हुदा और टेंगनवार चौकी के वाचर सिया राम ने काम लिए थे | यह भी कहा गया है कि ” एक अन्य वाचर राम किशुन पुत्र झगरू के द्वारा दूसरों के जॉब कार्ड और बैंक पासबुक इकट्ठा कराए गए और जिन लोगों ने मजदूरी की ही नहीं उनके नाम पर हम लोगों के हज़ारों रुपये उठा लिए गए | ”
पूर्व प्रभागीय वनाधिकारी , बलरामपुर श्री एस एस श्रीवास्तव ने पोर्टल ‘ मनरेगा हेल्पलाइन – संवेदन ‘ पर अपने जवाब में लिखा है कि शिकायतकर्ता श्रमिकों से काम नहीं लिया गया , जो पूर्णतः गलत और भ्रामक है | तत्कालीन क्षेत्रीय वनाधिकारी , बनकटवा श्री पी डी राय यह लिखते हैं कि ” कृपा राम , राम बहादुर , बड़कऊ , राम फल ने काम किया था , जिनका भुगतान हो चुका है | ” इस कथन से इस बात की पुष्टि हो जाती है कि हम श्रमिकों में से चार लोगों ने काम किया था | मस्टर रोल में हममें से किसी भी मजदूर का नाम नहीं है | फिर कैसे चार को मजदूरी का भुगतान किया गया ? सही बात तो यह है कि किसी मजदूर को मजदूरी का भुगतान नहीं किया गया है | तत्कालीन क्षेत्रीय वनअधिकारी , बनकटवा अपने बचाव में ऐसी बातें कहीं | अधिकारियों की लिखित तहरीरों में बड़ा विरोधाभास और एक – दूसरे के विरुद्ध बातें हैं |
ऐसे में तत्कालीन प्रभागीय वनाधिकारी एस एस श्रीवास्तव और फारेस्ट गार्ड नूरुल हुदा की बात पूर्णतः गलत साबित हो जाती कि मजदूरों से काम नहीं लिया गया और उन्हें जानते – पहचानते तक नहीं | मगर अफ़सोस की बात यह है कि हम लोगों के साथ ही उन चार मजदूरों को भी मजदूरी भुगतान नहीं की गई है , जिनके भुगतान की बात पूर्व क्षेत्रीय वनाधिकारी , बनकटवा श्री पी डी राय लिखी है| श्री राय किस प्रकार भ्रष्टाचार को प्रश्रय देते नज़र आते हैं , जब वे जोड़ – घटाव का मामूली हिसाब भी न लगा पाकर अपनी पदेन अक्षमता सिद्ध करते हैं और गलत आंकड़े देकर उच्चाधिकारियों की आँखों में धूल झोंकते हैं ! वे लिखते हैं –
” स्पष्ट है कि जब दि. 28-1-14 से काम प्रारंभ हुआ तो दिनांक 26-3-14 जैसा कि शिकायतकर्ता ने अपने शिकायत में लिखा है | शिकायतकर्ता द्वारा कैसे 70 दिन काम किया गया | ” यह जाँच अधिकारी की बड़ी पक्षधरता है कि शिकायतकर्ता पर ही सवालिया निशान लगा दिया गया ! जबकि शिकायत पत्र स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि – ” हम लोगों से सोहेलवा वन्य जीव प्रभाग के बनकटवा रेंज के पूर्व फारेस्ट गार्ड श्री नूरुल हुदा , जो अब उक्त वन प्रभाग के जनकपुर [ निकट तुलसीपुर ] रेंज में तैनात हैं और टेंगनवार चौकी के वाचर श्री सिया राम ने बनकटवा रेंज सीमा में मनरेगा के तहत इसी वर्ष [ 2014 ] 13 जनवरी से 26 मार्च के बीच विभिन्न अवधियों में वृक्षारोपण और झाड़ी की सफ़ाई के काम कराये थे | हम मज़दूरों से दो – ढाई महीने तक काम कराये गये , लेकिन कई महीने बीत जाने के बाद भी हजारों रुपये मज़दूरी का भुगतान नहीं किया गया है|”
कोई भी जाँच अधिकारी इस प्रकार की गलतबयानी नहीं कर सकता | शिकायत पत्र में जो अवधि उल्लिखित है , उसके अनुसार 73 दिन का अन्तराल हुआ | तत्कालीन फारेस्ट गार्ड नूरुल हुदा ने जवाब में [ जो मनरेगा हेल्पलाइन पर मौजूद है ] हम श्रमिकों के बारे में लिखा है कि ‘ मैं इन्हें जानता – पहचानता नहीं हूँ | मैंने इनसे कभी काम नहीं लिया है | मुझे बदनाम व परेशान करने की नीयत से इन लोगों द्वारा मेरी शिकायत की गई है | ‘अगर इनकी बात सच होती , तो रेंजर श्री राय चार श्रमिकों को भुगतान की बात नहीं लिखते | दोनों की बातों में बड़ा विरोधाभास और अन्तर्विरोध मौजूद है , जिसकी भीं उच्च स्तरीय जाँच कराए जाने का अनुरोध है |
उल्लेखनीय है कि हम श्रमिकों को नुरुल हुदा जी ने मजदूरी मांगने पर बार – बार डराया – धमकाया , जिसकी जाँच नहीं की गई | हमने अपनी लिखित शिकायत में इस बात की जानकारी अधिकारियों को दी है – ” जब हम लोग फारेस्ट गार्ड महोदय से पैसे मांगने जाते हैं , तो देने से इन्कार कर देते हैं और कहते हैं कि नहीं दूंगा , क्या कर लोगे ? यह धमकी भी देते हैं कि बार – बार मांगने आओगे , तो जेल भेजवा दूंगा | ” ऐसी भी शिकायतें मिलती रही है कि वन विभाग के लोग अपने विरोधियों को फर्जी मामलों में फंसाकर परेशान करते रहते हैं |
हम श्रमिकों ने पूर्व ज़िलाधिकारी [ बलरामपुर ] श्रीमती प्रीति शुक्ला को गत 20 फरवरी 15 को पंजीकृत पत्र [ A RD343725606IN ] भेजकर एक बार फिर लगभग साल भर से लंबित मजदूरी दिलाने की गुहार लगाई , लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई | तहसील दिवस में भी फरियाद की गयी थी , जो परिणामहीन रही | ज्ञातव्य है कि निवर्तमान जिलाधिकारी श्री मुकेश चन्द्र से भी हम कई बार लिखित अनुरोध कर चुके हैं , किन्तु हमारी समस्याओं का निदान नहीं हो सका | अतः आपसे अनुरोध है कि हम मजदूरों को तीन वर्ष से अधिक समय से लंबित मजदूरी का तत्काल भुगतान कराने की कृपा करें | हम लोगों को आपसे बड़ी आशाएं हैं |”
मजदूरों ने मांग की है कि इस मामले की उच्चस्तरीय जाँच कराने की कृपा करें एवं दोषी – भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करें | – Dr RP Srivastava