वेद में एकेश्वरवाद की शिक्षा बहुत उभरी हुई है | कहा गया है ” एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति ‘ अर्थात परमात्मा एक है , अद्वितीय है , दूसरा कुछ भी नहीं है | [ GOD is One Otherwise None ] शतपथ ब्राह्मण [ 14 / 4 / 2 / 22 ] का कथन है कि जो एक परमात्मा को छोड़कर अन्य की भक्ति करता है , वह विद्वानों में पशु के समान है | इस्लाम का सूक्त वाक्यांश है – ” अश्हदु अल्ला इला – ह इल्लल्लाह ” अर्थात , ‘मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई उपास्य नहीं | ‘

पवित्र कुरआन में है – ” क़ुल हुवल्लाहु अहद |अल्लाहुस-समद | लम यलिद व लम यूलद | व लम यकुल्लहू कुफ़ुवन अहद | [ 112 : 1 – 4 ] ” | हिंदी में इसका अनुवाद है – ” कहो , वह अल्लाह है यकता | अल्लाह सबसे निरपेक्ष है और सब उसके मुहताज हैं | न उसकी कोई सन्तान है और न वह किसी की सन्तान | और कोई उसका समकक्ष नहीं है | ”

मौलाना रूम कहते हैं –

दुई रा चूं बदर करदम यके दीदम दो आलम रा ,

यके बीनम, यके जोयम, यके ख़ानम, यके दानम |

अर्थात , जब मैंने अपने मन से परायेपन को निकाल बाहर कर दिया , तब दोनों लोकों को एक देखा . अब उसे एक ही देखता हूँ , एक ही ढूंढता हूँ , एक को ही भजता हूँ और एक को ही जानता हूँ |

सिख धर्म की मौलिक शिक्षा एकेश्वरवाद है | गुरु ग्रंथ साहिब का मूल मंत्र है – ”इक्क ओन्कार सत नाम करता पुरख निरभऊ निरवैरअकाल मूरत अजूनी सैभं गुर प्रसाद ” अर्थात , एक परमात्मा, जिसका नाम सत्य है , कृति करने वाला पुरुष , निर्भय, द्वेष-रहित ,अकाल मूर्ति (सनातन छवि) , अजन्मा स्वयंभु (स्वयं से उत्पन्न हुआ) , गुरु-कृपा से प्राप्त |” गुरु नानक जी का उपदेश है , ” अव्वल अल्लाह नूर उपाया, कुदरत दे सब बंदे एक नूर ते सब जग उपज्या, कौन भले कौ मंदे | ”

तुलसीदास जी ‘ रामचरित मानस ‘ में लिखते हैं कि शंकर जी ने पार्वती जी से कहा –

उमा जे चरन रत बिगत काम मद क्रोध ,

निज प्रभुमय देखहिं जगत केहि सन करहिं बिरोध | [ उत्तर कांड 112 ख ] अर्थात .भक्त किसी ने द्वेष नहीं करता या किसी पर क्रोध नहीं करता | किससे करे ? किस पर करे ? सारा जगत तो उसे स्वामी का स्वरुप दीखता है |

इसी भाव को गुरु नानक जी ने इन शब्दों में प्रकट किया है –

मन ते बिनसै सगला भरमु ,

करि पूजै सगल पार ब्रह्मु |

[ अष्टपदी 9 सबद 3- 2 ]

अर्थात , भक्त अपने मन से [ परायेपन के ] सारे भ्रमों को त्याग देता है तथा सम्पूर्ण ब्रह्मांड को [ विभिन्न नामों और रूपों में ] पारब्रह्म [ का स्वरूप ] समझ कर उससे प्रेम करता है |

परायेपन के भाव से ही बहुत से झगड़े , बखेड़े और समस्याएं आती हैं , जैसाकि आज हम देख रहे हैं कि इस भाव के फैलाव से धरती की शांति छिनती जा रही है . लोग दूसरों को दुःख पहुंचा कर सुख का अनुभव करते हैं | यह इंसानियत के विरुद्ध है |

मौलाना रूम कहते हैं –

मयाज़ार कसे व हर चीज़ ख़ाही कुन ,

कि दर तरीकते मन ग़ैर अजीं गुनाहे नेस्त |

अर्थात , किसी को दुःख न दो | इसके अतिरिक्त और तेरे जी में जो कुछ भी आए ,कर , क्योंकि मेरे धर्म में इससे बढ़कर और कोई पाप ही नहीं |

महान इस्लामी विद्वान एवं फ़ारसी कवि शेख़ सअदी ने अपने मशहूर काव्य – संकलन ” गुलिस्तां ” में कहा है –

बनी आदम आज़ाए – यक दीगरंद ,

कि दर आफरीनद ज़ि जौहर अंद |

अर्थात , आदि उत्पत्ति में क्योंकि एक ही माता – पिता से सभी मनुष्य उत्पन्न हुए हैं , इसलिए सब मनुष्य एक – दूसरे के अंग हैं | हज़रत मुहम्मद [ सल्ल. ] ने फ़रमाया – ” अल् – खल्कु इयालुल्लाह, फअ ह्ब्बुल्खल्कि इलल्लाहि मन अहसन इला इयालिही |”

अर्थात , सब प्राणी परमात्मा के कुटुम्बी हैं | अल्लाह की दृष्टि में सबसे अधिक चहेता है , जो उसके कुटुंब से सद् व्यवहार करता है |

बृहदारण्यक उपनिषद् के एक श्लोक से प्रसूत एक सुभाषित है –

सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् |

अर्थात्‌ , संसार में सब सुखी रहें, सब नीरोग या स्वस्थ रहें, सबका कल्याण हो और विश्व में कोई दुःखी न हो

शेख सअदी कहते हैं –

गमे रोज़ी मख़ुर बरहम मजन ऊ रा कि दफ़्तर रा ,

कि पेश अज़ तिफ़्ल ईजद पुर कुनद पिस्ताने मादर रा |

व्याख्या – हे मनुष्य , तू अपनी आजीविका की चिंता न कर , इसके लिए भाग्य के पन्नों को उलट – पुलट कर परेशान न हो , क्योंकि इसकी चिंता स्वयं परमात्मा को है | इसका एक प्रमाण यह है कि बच्चे के जन्म से पूर्व ही परमात्मा बच्चे के लिए माँ के स्तनों में दूध भर देता है |

आज भौतिकता का युग है | मनुष्य की सारी चीजें धन – केन्द्रित हो गयी हैं , यहाँ तक कि निकटवर्ती सम्बंध धनाधारित हो गये हैं | सबको धन – आजीविका अर्जन में की ही चिंता है | इस चिंता के चक्कर में मनुष्य अपने जीवन का वास्तविक उद्देश्य भूल चुका है | वह परमात्मा पर विश्वास नहीं कर पा रहा है कि जो परमात्मा जन्म लेने से पूर्व ही मनुष्य के आहार का प्रबंध कर देता है , तो क्या उसके बड़ा होने पर उसकी आजीविका का ध्यान न रखेगा …… अवश्य रखेगा | किन्तु आम संसारी मनुष्य इस सच्ची बात पर विश्वास न करके हर समय धन – आजीविका की चिंता में अधीर – परेशान और चिंतित रहता है , यहाँ तक कि उसके जीवन का चैन , सुख – शांति … सब नष्ट हो जाता है | गोस्वामी तुलसीदासजी जी कहते हैं –

प्रारब्ध पहले बना , पाछै बन्यो सरीर ,

तुलसी यह आश्चरज है , मन नहिं बांधे धीर |

अर्थात , ” जीव का शरीर तो बाद में बनता है – उसका जन्म तो बाद में होता है , जबकि परमात्मा उसका प्रारब्ध पहले ही तैयार कर देता है | यह आश्चर्य का विषय है कि मनुष्य का मन इस बात पर विश्वास न करके हर समय आजीविका के लिए अधीर बना रहता है |”

वास्तव में यह व्यर्थ की चिंता है | मनुष्य को कर्म करते रहना चाहिए , चिंता नहीं ….. चिंता तो चिता समान है , जो मनुष्य की मानसिक – शारीरिक क्षमताओं को हर लेती है |

प्रभ का सिमरनु सभ ते ऊचा ,

प्रभ कै सिमरनु उधरे मूचा | [ सुखमणि ]

” प्रभु – स्मरण सबसे उच्च है , यह तमाम कष्टों से मनुष्यों को बचाता है | ”

किनका एक जिसु जीअ बसावे ,

ताकी महिमा गनी न आवे | [ सुखमणि ] , अर्थात , जिस व्यक्ति के हृदय में आध्यात्मिक ज्ञान का एक अणु भी होता है , उसकी महिमा की कोई गिनती नहीं की जा सकती है | – Dr RP Srivastava

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