आधार कार्ड की अनिवार्यता के मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने विगत 19 जुलाई को कहा कि निजता का अधिकार ऐसा अधिकार नहीं हो सकता जो पूरी तरह मिले। सरकार के पास कुछ शक्ति होनी चाहिए कि वह इस पर तर्कसंगत बंदिश लगा सके।निजता का अधिकार संविधान के तहत मौलिक अधिकार है या नहीं , इस पर सुप्रीमकोर्ट के फ़ैसले से आधार कार्ड का भविष्य तय होगा | फैसला अगले सप्ताह आ जाने की आशा है | प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाले नौ न्यायाधीशों के संविधान पीठ ने केंद्र एवं अन्य से कहा कि वे इसकी ‘बारीकियों’ और उन कसौटियों के बाबत उसकी मदद करें, जिनकी बुनियाद पर निजता के अधिकार और सरकार की ओर से इसके उल्लंघन को कसा जा सके।
इसके बाद पीठ ने समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी में लाने वाले शीर्ष न्यायालय के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि यदि निजता के अधिकार को इसके व्यापक रूप में देखा जाए तो नाज फाउंडेशन के मामले में फैसला ‘कमजोर पड़ जाएगा।’एनजीओ नाज फाउंडेशन समलैंगिकों के बीच सहमति से यौनाचार को अपराध की श्रेणी से हटवाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहा है। पूरे दिन चली सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर, एसए बोबड़े, आरके अग्रवाल, रोहिंटन फली नरीमन, अभय मनोहर सप्रे, डीवाई चंद्रचूड़, संजय किशन कौल और एस अब्दुल नजीर के पीठ ने कहा कि ‘निजता का अधिकार अस्पष्ट तौर पर परिभाषित अधिकार है और यह पूरी तरह नहीं मिल सकता। यह स्वतंत्रता का एक छोटा सा हिस्सा है।’ पीठ ने फिर उदाहरण देकर समझाया कि बच्चे को जन्म देना निजता के अधिकार के दायरे में आ सकता है और माता-पिता यह नहीं कह सकते कि सरकार के पास यह अधिकार नहीं है कि वह हर बच्चे को स्कूल भेजने के निर्देश दे। पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि ‘हम ‘बिग डेटा’ के जमाने में जी रहे हैं और सरकार को डेटा के नियमन का हक है, चाहे यह अपराध, कर या अन्य गतिविधियों के नियमन के उद्देश्य के लिए हो……निजता का अधिकार इतना संपूर्ण नहीं हो सकता कि यह सरकार को इस पर कानून बनाने या इसके नियमन से रोके।’ न्यायालय ने कहा कि यदि किसी बैंक ने लोन देने के लिए निजी ब्योरे मांगे हैं, तो यह नहीं कहा जा सकता कि यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है। अदालत ने कहा कि किसी के यौन रुझान और शयन कक्ष के ब्योरे निजता के अधिकार के दायरे में आते हैं। याचिका की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रह्मण्यम ने बहस की शुरुआत की और कहा कि निजता का अधिकार ‘छीना नहीं जा सकता’ और यह सबसे अहम मौलिक अधिकार – स्वतंत्रता के अधिकार – से अभिन्न ढंग से जुड़ा हुआ है। उल्लेखनीय है कि सुप्रीमकोर्ट 16 मार्च 15 को आधार की अनिवार्यता पर रोक लगा चुकी है , लेकिन मोदी सरकार ने लगातार इसकी अनदेखी की , जिसके लिए सुप्रीमकोर्ट ने उसे फटकारा भी |
सुब्रमण्यम ने कहा कि (संविधान की) प्रस्तावना में कुछ मूल्यों का जिक्र है जिन्हें मौलिक अधिकारों के साथ ही पढ़ा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रस्तावना में कई अभिव्यक्तियां हैं जिनमें से कुछ अमेरिकी संविधान से ली गई हैं और कुछ अन्य महाद्वीपीय देशों से ली गई हैं। सुब्रमण्यम ने कहा, ‘स्वतंत्रता हमारे संविधान का मूलभूत मूल्य है। जीवन और स्वतंत्रता प्राकृतिक रूप से मौजूद अधिकार हैं जो हमारे संविधान में शामिल हैं। क्या निजता के बगैर स्वतंत्रता हो सकती है। क्या संविधान के मूलभूत अधिकारों के संबंध में स्वतंत्रता को निजता के बगैर पाया जा सकता है।’ अन्य वकील श्याम दीवान ने भी कहा कि अनुच्छेद 14, 19 और 21 के ‘ स्वर्ण रश्मि त्रिकोण’ नियम के मुताबिक निजता एक मौलिक अधिकार है। पीठ ने दीवान को आधार से जुड़े मुद्दे उठाने से रोक दिया। दीवान कह रहे थे कि सरकार नागरिकों को बायोमेट्रिक ब्योरे देने के लिए मजबूर नहीं कर सकती। पीठ ने उन्हें कहा कि वह सिर्फ निजता के मुद्दे पर ध्यान दें।पांच न्यायाधीशों के पीठ ने इस मामले को बड़ी पीठ के समक्ष भेज दिया था जिसके बाद शीर्ष अदालत ने संविधान पीठ का गठन किया था। प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता में नौ न्यायाधीशों का संविधान पीठ आधार योजनाओं की वैधता और इससे संबंधित निजता के अधिकार को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार कर रहा है। यह पीठ सुप्रीम कोर्ट के दो पुराने फैसलों की संवैधानिकता पर भी विचार करेगा , जिनमें निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार नहीं माने जाने की व्यवस्था दी गई थी। इनमें एक फैसला 1954 में आठ जजों की खंडपीठ ने एमपी शर्मा व अन्य बनाम सतीश चंद्र और दूसरा फैसला 1962 में छह जजों की खंडपीठ ने खड़क सिंह बनाम उत्तर प्रदेश मामले में दिया था , हालांकि सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओंं ने कहा कि छोटी पीठों ने अपने कई मामलों में निजता को मौलिक अधिकार माना है। 1978 में मेनका गांधी बनाम भारत सरकार के मामले में भी सम्मानजनक जीवन जीने के अधिकार को मौलिक अधिकार माना गया था। ऐसे में निजता का अधिकार भी अनुच्छेद-21 के तहत मौलिक अधिकार माना जाना चाहिए। याचिकाकर्ताओं की दलील है कि प्राइवेसी का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 में निहित है। प्राइवेसी के अधिकार को अनुच्छेद 14, 19 और 21 के परिप्रेक्ष्य में रखकर देखा जाना चाहिए (अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार, अनुच्छेद 19 विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार और अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है | मतलब यह कि प्राइवेसी का अधिकार समानता, विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार में निहित है। सुप्रीम कोर्ट के सामने प्राइवेसी के अधिकार का सवाल इसलिए उठा है क्योंकि आधार एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। ऐसी 22 याचिकाओं के जरिए कहा गया है कि सरकार लोगों से जानकारी मांग कर, उनके प्राइवेसी के अधिकार का उल्लंघन कर रही है। यही नहीं सरकारी योजनाओं, बैंक अकाउंट, पैन इत्यादि में आधार की जानकारी जोड़ने से लोगों की प्राइवेसी को खतरा हो सकता है। इसलिए योजनाओं में आधार अनिवार्य किए जाने पर रोक लगाई जाए। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह तय किया कि पहले इस बात का फैसला किया जाए कि प्राइवेसी का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं?
सुप्रीमकोर्ट ने कहा है कि यह मुद्दा बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि बड़ी पीठों ने भले ही इसे मौलिक अधिकार नहीं माना हो, लेकिन छोटी पीठों ने इसे मौलिक अधिकार माना है। संविधान पीठ के गठन से इस विवादास्पद मुद्दे पर फैसला आने की आस बंधी है। आज केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार है। इस सरकार ने बैंक अकाउंट से लेकर पैन कार्ड तक के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य कर दिया है। एक वक्त ऐसा था जब नरेंद्र मोदी ने खुलकर आधार योजना का विरोध किया था। जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने आधार कार्ड के लिये तत्कालीन यूपीए सरकार पर हमला करते हुए कहा था कि अगर वो लोग इसी तरह से अंधाधुंध आधार बांटते रहेंगे तो हमारे गुजरात में आतंकियों के घुसने का खतरा बढ़ जाएगा। मोदी ने तब कहा था कि आज कांग्रेस वाले जिस आधार कार्ड को लेकर इतना नाच रहे हैं उसे देख कर लगता है कि देश के लोगों को पता नहीं कौन सी जड़ीबूटी बांट रहे हैं। नरेंद्र मोदी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा था कि ये आधार कार्ड से लाभ किसको मिलेगा? आधार कार्ड से क्या बाहरी लोग हमारे देश के नागरिक नहीं बन जाएंगे? तब गुजरात के सीएम के तौर पर मोदी कुछ इसी तरह से तत्कालीन सरकार पर हमले करते थे। आज जब वह प्रधानमंत्री बन गए हैं और केंद्र में उनकी बहुमत की सरकार हे तब वह आधार को कई जरूरी कामों के लिए अनिवार्य कर चुके हैं। – Dr RP Srivastava