आत्महत्या की बढ़ती घटनाएं अति चिंताजनक
कर्ज न चुका पाने पर साहूकारों ने कहा कि पत्नी और बेटी को हमें सौंप दो। इससे अनिल अग्रवाल को गहरा सदमा लगा और उनके पूरे परिवार ने ज़हर खाकर मौत को गले लगा लिया। यह मामला जालंधर [पंजाब] के भोगपुर थाने का कुछ समय पहले का है। इस घटना से साफ पता चलता है कि पंजाब में गरीब लोगों का किस तरह साहूकार शोषण कर रहे हैं। सुसाइट नोट में 55 वर्षीय अनिल अग्रवाल ने लिखा है कि उनसे कुछ लोगों से ब्याज पर आधारित क़र्ज़ लिया था। मगर मूलधन पर ब्याज बढ़ता ही गया। पैसा देने वाले लोग कहते हैं कि वह पत्नी और बेटी को उठा ले जाएंगे, जिससे आहत होकर वह परिवार सहित जान दे रहा है। पुलिस ने घर से अनिल, पत्नी रजनी और 18 वर्षीय राशि और 23 वर्षीय बेटे अभिषेक का शव बरामद किया। सभी ने सल्फास का सेवन कर आत्महत्या की। मौके से सल्फास की शीशी और पानी की बोतल मिली। हाल के दिनों में आत्महत्या की एक अन्य घटना सेना के पूर्व सूबेदार राम किशन ग्रेवाल की है , जिन्होंने सेना में ओआरएस लागू न होने के प्रति विरोध प्रकट करते हुए गत दो नवंबर 16 को नई दिल्ली के जन्तर – मन्तर पर आत्महत्या कर ली | इसी बीच मैनपुरी में किसान गिरीश चन्द्र ने बढ़ते ब्याज के चलते कर्ज को अदा न कर पाने के कारण आत्महत्या कर ली | हमारे देश में ब्याजमुक्त क़र्ज़ एक सपने की तरह है | हम आयेदिन ब्याज से विभिन्न प्रकार की हानियों को देख रहे हैं | ब्याज ने हमारे देश समेत दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं को आहत कर रखा है , फिर भी इसके विरुद्ध कारगर आवाज़ का न उठ पाना बेहद अफ़सोसनाक है | मानसिक तनाव और दबाव आत्महत्या के प्रमुख कारण हैं। सत्य है कि किसान अक्सर बैंकों से ऋण लेते हैं और उसकी अदायगी नहीं कर पाते , चक्र वृद्धि ब्याज इसमें अति घातक भूमिका निभाता है | उनके लिए सरकार की भी ‘ कल्याणकारी राज्य ‘ की परिकल्पना साकार नहीं हो पाती | सरकार का अनुदारवादी चेहरा ही उन्हें अक्सर देखना पड़ता है | वे इस विषम परिस्थिति का मुक़ाबला नहीं कर पाते और कायरतापूर्ण क़दम उठा लेते हैं | निःसंदेह आज चहुंओर विकट स्थिति है | इतनी विकट कि कहा जाता है कि आज के दौर में शायद दुनिया में कोई ऐसा आदमी न होगा , जिसने अपने जीवन में कभी आत्महत्या करने के बारे में न सोचा हो। ऐसा भी होता है कि अनायास या सप्रयास वह बुरा वक्त गुजर जाता है और जिन्दगी फिर अपनी रफ्तार से चल पड़ती है । सच यही है कि यदि वह समय गुजर जाये जिस समय व्यक्ति आत्मघात की ओर प्रवृत्त होता है , तो फिर वह आत्महत्या नहीं करेगा | कुछ कहते हैं कि आत्महती लम्बे समय से तनाव में था। महीने? दो महीने? छः महीने? मगर यह मुद्दत तो गुज़ारी जा सकती है | क्या बरसात के बाद सर्दी और सर्दी के बाद गर्मी की ऋतु नहीं आती ? क्या पतझड़ के बाद वसंत नहीं आता ? फिर जिन्दगी में हॅंसी खुशी के दिन क्यो नहीं आ सकते हैं ?
जिन्दगी हजार नेमत है | वास्तव में जिन्दगी को जीना चाहिए | उसे जीना इन शब्दों में चाहिए कि उसे स्वाभाविक ज़िन्दगी मिले | ज़िन्दगी को निराशा से परे रखना चाहिए |. ठहरा हुआ तो पानी भी सड़ जाता है | अतः ज़िन्दगी में ठहराव अर्थात स्वांत नहीं आना चाहिए . ज़िन्दगी तो है ही चलने का नाम | ये जो गमों की स्याह रात है कितनी भी लंबी हो कट ही जायेगी . फिर सुबह होगी, सूरज निकलेगा,फूल खिलेंगें, भौंरे गुनगुनायेंगें, पंछी चहचहायेंगें. फिर जिन्दगी में कैसे अन्धकार कायम रह सकता है ? हमेशा सुबह की आशा रखनी चाहिए | हर सुबह नवजीवन का पैगाम देती है | आत्महत्या से बचने और नवजीवन के लिए धार्मिकता को अपनाना ज़रूरी है | वह भी सच्ची धार्मिकता | जब कार्य ईश्वर के इच्छानुसार किये जाएंगे और उसे ही कार्यसाधक भी माना जाएगा , तो ज़िन्दगी मे निराशा , चिंता . कुंठा और हतोत्साह का आना असंभव है | दिल में सरलता और निर्मलता आ जाएगी . चिन्तन सकारात्मक होगा | – Dr RP Srivastava