हमारे देश की गणना बड़े लोकतांत्रिक देशों में होती है , लेकिन यह भी सच है कि जनसमस्याओं को हल करने में हमने बड़ी कोताही बरती है | ऐसी अनेक गंभीर समस्याएं हैं जो देश की आज़ादी के बाद पिछले सात दशकों से अनसुलझी अवस्था में हैं | इसका मुख्य कारण यह रहा है कि जिन राजनीतिक पार्टियों के हाथों में देश की सत्ता रही है , उनके स्वार्थ संविधान के आड़े आते रहे और वे अपने स्वार्थों की भरपाई के लिए संविधान में तोड़ – फोड़ तथा संशोधन करते रहे | यह काम सबसे अधिक कांग्रेस ने किया , क्योकि इसे ही सबसे अधिक सत्ता में बने रहने का मौक़ा मिला | इसके बाद भाजपा को अवसर प्राप्त हुआ | फिर भी यह कहना पड़ेगा कि संविधान के साथ घातक छेड़छाड़ के बाद जनता पार्टी के कार्यकाल में 44 वें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान के लोकतांत्रिक स्वरुप की रक्षा का जो प्रबंध किया गया , उसे सराहनीय ज़रूर कहा जाएगा | इसके द्वारा अन्य प्रावधानों के साथ संविधान के अनुच्छेद 352 में संशोधन करके यह उपबंध किया गया कि देश में आपातकाल की घोषणा के लिए एक ही कारण ” सशस्त्र विद्रोह ” होगा | आंतरिक गड़बड़ी , यदि सशस्त्र विद्रोह ” नहीं है , तो आपातकाल की घोषणा के लिए आधार नहीं होगा | साथ ही व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को जैसा की अनुच्छेद 21 और 22 में उल्लेख है , इस उपबंध द्वारा उनको और अधिक शक्तिशाली बनाया गया | अनुच्छेद 21 में शिक्षा – अधिकार के साथ अनुच्छेद 22 में नागरिक सुरक्षा पर पर्याप्त बल दिया गया | अगर किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से हिरासत में ले लिया गया हो, तो उसे तीन प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान की गई है: (1) हिरासत में लेने का कारण बताना होगा | (2) 24 घंटे के अंदर (आने जाने के समय को छोड़कर) उसे दंडाधिकारी के समक्ष पेश किया जाएगा | (3) उसे अपने पसंद के वकील से सलाह लेने का अधिकार होगा | ज़ाहिर है ये प्रावधान संविधान के मौलिक स्वरुप को बचानेवाले हैं | इसी प्रकार संविधान को समतामूलक बनाने और जातीय व्यवस्था को तोड़ने के लिए संविधान में कई संशोधन किए गए | शोषित , अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के पहले 22 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई , फिर जब इसे बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया गया , तो सवर्ण जातियों ने इसका ज़ोरदार विरोध किया | पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण की सिफ़ारिश को पंडित नेहरू से लेकर अटल बिहारी वाजपेई और डॉ . मनमोहन सिंह तक पचा न सके | वीपी सिंह सरकार के द्वारा जब ये आरक्षण लागू किए गए , तो भाजपा और कांग्रेस के समर्थकों ने आसमान सर पर उठा लिया | यहाँ तक कि सुप्रीमकोर्ट द्वारा पिछड़ों के आरक्षण का अनुमोदन किए जाने के बाद भी इसे लागू करने में बार – बार रुकावट आती रही | गौरतलब बात यह भी है कि स्वार्थ सिद्धि की राजनीति के क्रम में जाति पर आधारित जनगणना का विरोध किया जाता रहा | जब देवगौड़ा सरकार इस बाबत फ़ैसला किया कांग्रेस ने उनकी सरकार को तत्काल गिरा दिया ! भाजपा ने वोट ध्रुवीकरण की खातिर कांग्रेस से उलट अपनी नीति पर चली और बहुसंख्यकों का वोट बैंक तैयार किया | इन दोनों पार्टियों की ये दोनों बातें संविधान की मूल आत्मा से मेल नहीं खातीं | इसके बावजूद कांग्रेस ने भी इस खेल को भरपूर खेला | ताला खोलवाकर , राम मन्दिर का शिलान्यास करवाकर और बाबरी मस्जिद विध्वंस के वक्त आँखें बंदकर कांग्रेस ने हिन्दू वोट बैंक मज़बूत करने की कोशिश की | इसी कुटिल नीति के चलते अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों पर कांग्रेस या भाजपा का क़ब्ज़ा रहा | यहाँ भाजपा के अंतर्गत उसके सभी पुराने रूप भी हैं | इन दोनों पार्टियों की इस कुटिल नीति को डॉ . भीम राव अम्बेडकर ने ‘ राजनैतिक डकैती ‘ कहा था | अनुसूचित जातियों और जनजातियों को वोट बैंक की शक्ल में पूरी तरह कन्वर्ट करने के लिए यह ज़रुरी था कि उन्हें पिछड़े वर्गों के ख़िलाफ़ खड़ा किया जाए | लिहाज़ा कांग्रेस ने यह ‘ प्रिय काम ‘ संविधान बनते ही शुरू कर दिया था | संविधान में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई और पिछड़ों को नजरअंदाज किया गया | जब संविधान सभा के एक सदस्य ने इस ओर ध्यान दिलाया , तो अनुच्छेद 340 जोड़ा गया , जिसमें पिछड़ों के लिए विशेष अवसर देने का प्रावधान किया गया | इसी अनुच्छेद के तहत काका कालेलकर की अध्यक्षता में पिछड़ा वर्ग आयोग बना | बताया जाता है कि इस आयोग की रिपोर्ट पर पंडित नेहरू खफ़ा हो गए और और उन्हें रिपोर्ट बदलने के लिए बाध्य किया | उल्लेखनीय है कि मुसलमानों और अन्य कमज़ोर वर्गों की आर्थिक – सामाजिक स्थिति का अध्ययन करने के लिए 10 मई 1980 को गोपाल सिंह पैनल का गठन किया गया था , जिसने 14 जून 1983 को अपनी रिपोर्ट सौंपी | कहा जाता है कि इस रिपोर्ट मुसलमानों की स्थिति को दलितों से बदतर बताया गया था , लेकिन इस बात को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने रिपोर्ट से निकलवा दिया था | वीपी सिंह के सत्ता में आने के पूर्व तक यह फ़ाइलों में रिपोर्ट दबी रही | कांग्रेस को अपने स्वार्थ साधने की खातिर रिपोर्टों को दबाने का बड़ा अनुभव रहा है | कालेलकर आयोग की रिपोर्ट बीस साल तक दबी रही | कांग्रेस ने मंडल आयोग की रिपोर्ट को भी दस साल तक दबाए रखा | इस प्रकार हम देखते है कि देश की आज़ादी के सत्तर सालों में भारतीय जनता को जातीय , वर्गीय संघर्षों में पीसा जाता रहा और संविधान के साथ अनावश्यक रूप से भी छेड़छाड़ कर लोकतंत्र को आहत किया जाता रहा | आज ज़रूरत इस बात की है कि संविधान को मज़बूत करने और नागरिक अधिकारों को पूरी तरह सुरक्षित रखने के लिए अनवरत प्रयास हों | इसके लिए राजनीतिक दल अपने स्वार्थों से ऊपर उठकर कार्य करें , जनता भी जागरूकता दिखाए और संविधान – क़ानून विरोधी शक्तियों पर अपने संवैधानिक अधिकारों के तहत रोक लगाए , ताकि देश में शांति और सद्भाव पर आए खतरों से निबटा जा सके | – Dr RP Srivastava

 

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