नेपाल के पास भारत को ‘ जल – प्रलय ‘ और ‘ जल – संकट ‘ में गिरफ्तार करने का रिमोट कंट्रोल है ! अभी कुछ सप्ताह पहले  नेपाल से एकाएक नौ लाख क्यूसेक पानी छोड़े जाने के बाद स्थिति और भी खतरनाक हो गई थी। बाराबंकी सहित एल्गिन चरसरी बांध के निकट बसे गोंडा जिले के भी दर्जनों गांवों के साथ ही राप्ती नदी में पानी छोड़ने से बलरामपुर एवं बहराइच जनपदों के सैकड़ों गाँव जलमग्न हो गए थे और लगातार घाघरा नदी का जलस्तर बढ़ने से अन्य गांव भी बाढ़ की चपेट में आए | यह पहली बार नहीं हुआ , बल्कि नेपाल की ओर से हर साल फालतू पानी छोड़े जाने से उत्तर प्रदेश और बिहार के अनेक भूभाग जलमग्न हो जाते हैं और बड़े पैमाने पर जान – माल का नुकसान होता है | मगर इस गंभीर समस्या पर नेपाल से बात तक नहीं की जाती और न ही बाढ़ और जलप्लावन की स्थितियों से बचने के लिए कोई स्थाई हल तलाश किया जाता है | सभी को पता है कि नेपाल बाढ़ लाकर संहारक की भूमिका निभाता है , लेकिन यह शायद लोगों को पता नहीं कि यही नेपाल अब देश में सूखे की स्थिति लाने के लिए अग्रसर है | मध्य – पश्चिम राज्य के दो जिलों बांके और बर्दिया में चल रही दो बहुद्देशीय सिंचाई योजनाओ से इन दोनो नदियों के प्रवाह में कमी आनी अवश्यंभावी है। बांके जिले के अग्गैया गांव के पास राप्ती नदी पर बन रही सिक्टा सिंचाई परियोजना का काम करीब-करीब पूरा हो चुका है। इस परियोजना के तहत राप्ती नदी की धारा को बांध बनाकर मोड़ा जायेगा जिससे नेपाल के गांवो में तो सिंचाई का पानी पहुंचेगा , वहीं भारत के क्षेत्रो में पानी की कमी हो जाएगी। यह सारी परियोजना चीन सरकार की कम्पनी साइनो हाइड्रो द्वारा नेपाल से प्राप्त ठेके के आधार पर हो रहा है। सिक्टा सिंचाई परियाजना के द्वारा राप्ती नदी की धारा को मोडने का जो उत्तर प्रदेश से होकर बहने वाली उत्तर भारत की कई प्रमुख नदियों का भारत में प्रवेश नेपाल से होकर ही होता है। इन नदियों में घाघरा और राप्ती को काफी अहम स्थान प्राप्त है। नेपाल से होकर भारत की सीमा में प्रवेश करने वाली इन नदियों का भारतीय क्षेत्र में काफी बड़ा जीवनदायी प्रभाव है। घाघरा और राप्ती नदी पर पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिले सीतापुर, लखीमपुर, बाराबंकी बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोण्डा, गोरखपुर, अम्बेडकरनगर आदि काफी र्निभर हैं। यह र्निभरता केवल किसानो की सिंचाई तक ही सीमित नही है। अपितु इन नदियों का जुडाव धार्मिक और सांस्कृतिक नगरो से भी काफी ज्यादा है। इन नदियों का प्रवाह रूकने की दशा में भारत के इन क्षेत्रो में काफी व्यापक प्रभाव पड़ेगा। 317 मी0 लम्बी इस बांध परियोजना में तटबंध बनाने का काम लगभग पूरा हो चुका है। इस बांध में राप्ती नदी के पानी को रेग्यूलेट करने के लिए 13 रेग्यूलेटर गेट बनाये गये हैं।अब अंतिम चरण के दौरान इस बांध से राप्ती के पानी को नेपाल के क्षेत्रो में मोड़ने के लिए 50 कि0मी0 लम्बी नहर बनाई जा रही है जिससे नेपाल के मध्य-पश्चिम राज्य के इलाको में पानी पहँुचाया जा सके। राप्ती पर बनने वाले इस बांध से नदी की धारा इतनी कम हो जायेगी कि कई भारतीय नहरो का प्रवाह ही रूक जायेगा। श्रावस्ती, बलरामपुर और सिद्र्धाथनगर जैसे राप्ती के प्रवेश के निकट के जिलों में नहरो को करीब 95 क्यूसेक प्रति सेकेण्ड की दर पानी चाहिए होता है। इसीलिए जब यह सिक्टा परियोजना पूर्ण हो जायेगी तो पानी का प्रवाह काफी कम हो जायेगा जिससे सारी नहरें निष्प्रयोज्य हो जायेंगीं।इसी प्रकार की एक और परियोजना नेपाल के बर्दिया जिले में बड़राई कतरनिया गांव विकास संख्या के बड़ी गांव में शुरू हो रही है। जिससे घाघरा नदी की बड़ी धारा खत्म होने का खतरा मड़रा रहा है। भारत में प्रवेश करने से पूर्व घाघरा नदी कर्णाली के नाम से नेपाल में करीब 500 कि0मी0 का लम्बा मार्ग तय करती है। घाघरा के भारत में प्रवेश से पहले नेपाल की कई सहायक नदीयां भी घाघरा नदी को बहने में सहायता प्रदान करती हैं। इन्ही सहायक नदीयो में से सबसे प्रमुख है नेपाल की भेरी नदी जो कर्णाली या घाघरा को गति प्रदान करती है। नेपाल में एक बहुउद्वेशीय पनबिजली परियोजना के लिए इसी भेरी नदी की धारा को अब घाघरा में मिलने से रोकने की तैयारी हो रही है। बहराइच जनपद से सटे नेपाल के वर्दिया जिले के बडराई कतरनिया गांव विकास में बबई सिंचाई परियोजना चल रही है। इसी बबई सिंचाई परियोजना में भेरी नदी का पाानी ड़ाईवर्जन करके बबई नदी में गिराने की तैयारी की जा रही है। भेरी नदी का पानी नेपाल में बबई सिंचाई परियोजना के लिए प्रयोग किये जाने तथा यहां पर पनबिजली बनाने की भी तैयारी है। इस योजना के तहत भेरी नदी का पानी 121 कि0मी0 लम्बी सुरंग बनाकर करीब 40 घन मी0 प्रति सेकेण्ड की दर से बबई नदी में गिराया जायेगा जिससे पनबिजली बनाने वाले टरबाइनो को चलाया जा सकेगा। इसी के साथ ही बबई नदी से होकर बनने वाली नहरों के जाल को भी अतिरिक्त पानी मिल सकेगा और यह सिंचाई परियोजना विस्तृत हो सकेगी। पहले से चल रही बबई सिंचाई परियोजना में भेरी नदी के इस डाइवर्जंन कार्य के लिए 14 अरब रूपये की योजना मंजूर की गई है तथा इसके लिए 6 वर्ष की समय सीमा र्निधारित की गई है। इन दोनो परियोजनाओ के पूरा हो जाने की स्थिति में उत्तर प्रदेश में कई वर्षो से चल रही सरयू नहर परियोजना पूरी तरह ध्वस्त हो जायेगी। इसी के साथ भारतीय क्षेत्रो की नहरें भी सूख जायेंगीं। इसी के साथ ही भारतीय क्षेत्र में पानी आने और न आने के लिए नेपाल पर निर्भरता हो जायेगी। साथ नेपाल द्वारा कभी अचानक ज्यादा पानी छोडने से अप्रत्यासित बाढ़ की सिथति का डर बना रहेगा। जो नेपाल के वर्तमान राजनैतिक हालात में व्याप्त भारत विरोध और चीन से लगाव को देखते हुए अच्छी बात नही है। जहां घाघरा की धारा कम होने का सीधा असर सरयू नदी के प्रवाह पर पडेगा , जिससे अयोध्या और अन्य सरयू तट पर बसे धार्मिक नगरो में काफी विकट स्थिति भी ला देगा। इसी प्रकार राप्ती और घाघरा दोनो का मिलन गंगा में भी होता है। ऐसे में इन दोनो बडी नदियों की धारा कम होने का काफी दूरगामी प्रभाव भी पडेगा। भारत सरकार द्वारा सिक्टा परियोजना को लेकर नर्म रूख रखने के कारण अब नेपाल में नये कार्य के तहत घाघरा की धारा को मोडने का भी कार्य सामने आ रहा है। भारत सरकार को अब जागना होगा तथा दोनो परियोजनाओ को लकर नेपाल सरकार से बात करनी चाहिए।

  – Dr RP Srivastava

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