दुनियाभर में कुपोषित लोगों की तादाद तेजी से बढ़ रही है। हमारे देश में अच्छे स्वास्थ्य के लिए और कुपोषण दूर करने हेतु अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं , मगर नतीजा निराशाजनक ही है | हमारा देश आज भी कुपोषित और भूखा है। ‘ मिड डे मील ‘ की महत्वाकांक्षी योजना के क्रियान्वयन के बावजूद देश के 38.4 फीसदी बच्चों को भरपेट पौष्टिक खाना नहीं मिल पा रहा है।

इसलिए कुपोषण आज भी भारत के लिए अभिशाप बना हुआ है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार 190.7 मिलियन लोगों के पास घर तो है , लेकिन 14.5 फीसदी लोगों को एक समय का खाना नसीब नहीं हैं। जिस तरह से देश में पोलियो पर मिशन चलाया गया , उसी तरह कुपोषण और खून की कमी से जूझ रहे भारत को पोषित किए जाने की जरूरत है। स्टेट फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रीशन 2017 की जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि हर वर्ष कुपोषित लोगों की तादाद लगातार बढ़ रही है। 2015 में जहां 777 मिलियन लोग कुपोषित थे जो 2016 में बढ़ कर 815 मिलियन हो गए हैं। इन आंकड़ों के बीच भूखे, कुपोषित और एनेमिक भारतीयों का आंकड़ा चौंकाता है।

भारत के 38.4 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं जबकि 51.4 फीसदी महिलाओं में खून की कमी पाई गई है। भारत को कुपोषण के लिए युद्धस्तर पर काम करने की जरूरत है। अगर देश के विकासशील देशों की बात करें तो भारत में जहां 38.4 फीसदी कुपोषित हैं तो श्रीलंका में 14.7 फीसदी और चीन में 9.4 फीसदी बच्चे कुपोषित है। ये बात अलग है कि भारत में कुपोषित बच्चों की तादाद कम हो रही है। 2005 में 62 मिलियन बच्चे कुपोषित थे जो 2016 में 47.5 फीसदी कुपोषित हैं। लेकिन अब बड़े लोगों में मोटापा तेजी से बढ़ रहा है। देश अब 70 साल का होने को है। हम देश में चांद और मंगल पर पहुंचने की जुगत मे हैं। देश की बड़ी जनसंख्या भूखी है। कुपोषित है। कुपोषण के शिकार में अधिकतर मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा और बिहार के हैं।

कुपोषण से निपटने के लिए लाख कोशिशें नाकाफी साबित हो रही हैं। नतीजे बिल्कुल सुखद नहीं है। भारत में भले की कुपोषण का प्रतिशत पिछले दस वर्षों में 7-8 फीसदी गिरा है लेकिन सरकार को अभी लंबी दूरी तय करनी है। क्योंकि भूख की वजह से 6 करोड़ बच्चों का विकास नहीं हो पा रहा है जबकि दो करोड़ से अधिक बच्चे जिंदा लाश की तरह जीने को अभिशप्त हैं। सरकारी की रिपोर्ट के अनुसार भारत का हर तीसरा बच्चा कुपोषित है। जबकि चौंकाने वाली खबर ये है कि दुनियाभर में भुखमरी के शिकार लोगों की 25 फीसदी से अधिक आबादी भारत में हैं।

भारत में पांच साल तक की उम्र के 45 फीसदी बच्चे कुपोषित पाए गए हैं। इस उम्र के 48 फीसद बच्चों का विकास उनकी उम्र के हिसाब से बेहद कम पाया गया और 25 फीसद से भी अधिक बच्चों की स्थिति बेहद बुरी पाई गई। एक चिंतनीय बात जो इन आंकड़ों में सामने आई वह यह है कि इन कुपोषित और बेहद कमजोर हालत वाले बच्चों में ज्यादातर संख्या लड़कियों की है। परिवार में लड़कों को अच्छा पौष्टिक खाना देने वाले ज्यादातर परिवार लड़कियों को वही पौष्टिक खाना नहीं देते। मेडिसिन सेंस फ्रंटियर्स इंडिया नाम की संस्था के मेडिकल एक्टिविटी मैनेजर जिया उल हक़ ने बताया कि पांच महीने के एक स्वस्थ बच्चे का आदर्श वजन कम-से-कम पांच किलो होना चाहिए, लेकिन उनके पास ज्यादातर ऐसे बच्चे आते हैं जिनका वजन 2.5 साल की उम्र में भी महज 5 किलो होता है।

उन्होंने बताया कि उनके पास आने वाले कुपोषित बच्चों में लड़कियों की तादाद सबसे ज्यादा होती है। संयुक्त राष्ट्र के एक आंकड़े के अनुसार , कुपोषण से मरने वाले बच्चों की सालाना तादाद 30 लाख है | कुपोषण के कारण इन बच्चों के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहद कम होती है। आंकड़े बताते हैं कि कुपोषण का स्तर लड़कों से कई गुना ज्यादा लड़कियों में पाया जाता है। ज़ाहिर है ,इस गरीबी की विषम और विकट स्थिति से उबरने की दिशा में हमें अभी बहुत कुछ करना है , जिसकी ओर सरकार को पर्याप्त ध्यान देना चाहिए | राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सतही प्रयास सदैव निरर्थक और असफल ही होंगे | ऐसा लगता है कि सरकार का इस गंभीर समस्या की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं है | वह लोगों को आवास उपलब्ध करवाने की ओर जिस प्रकार ध्यान देने का प्रयास कर रही है , उसी प्रकार लोगों की भूख दूर करने और कुपोषण मिटाने की दिशा में प्रयास करना चाहिए | – Dr RP Srivastava

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