यह पहला मौक़ा नहीं है , जब मनुष्य की अपने आराध्य और पालनहार के प्रति भक्ति बरबस प्रकट हुई हो , चाहे वह इसे छिपाने के लिए अनेक जतन करे और नास्तिक होने का दावा करे | यह संबंध ही ऐसा है , जो अपने रंग में आख़िरकर रंग लेता है | वास्तविकता यह है कि इन्सान की अपने पालनहार के प्रति भक्तिभावना अधिक समय तक कभी छिप नहीं सकती | ऐसे में वामपंथी नेता की भक्ति भावना का विरोध तर्क से परे और औचित्यहीनता से परिपूर्ण है | केरल की वामपंथी सरकार के एक मंत्री के मंदिर में पूजा करने से जो वबाल मचाया गया है , उसका कोई अर्थ नहीं है |
वैसे भी हमारे देश का संविधान इस बात की इजाज़त देता है कि कोई भी नागरिक अपने पसंदीदा आस्था की पैरवी करे | इस पर कोई भी व्यक्ति / संगठन रोक नहीं लगा सकता | फिर माकपा के लोग अपने ही पार्टी के ईशभक्त नेता की क्यों आलोचना एवं विरोध पर तुले हैं ? क्या पार्टी की पक्षधरता ईश्वर भक्ति से बड़ी हो गई ?! इन्सान के अपने पालनहार के प्रति भक्तिभाव को किसी बंधन में नहीं बांधना चाहिए | इस नैसर्गिक संबंध को हरहाल में बहाल रखना इन्सान का कर्तव्य और उसका नैसर्गिक अधिकार भी है |
अतः माकपा के लोगों द्वारा अपनी ही पार्टी के नेता के सुरेंद्रन का विरोध करना सर्वथा अनुचित और अनैतिक है | केरल में अभी लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकार है | के. सुरेंद्रन इस समय केरल के देवस्वम [ देवस्थान ] , पर्यटन एवं सहकारिता मंत्री हैं | एक टीवी फुटेज के मुताबिक़ , पिछले दिनों रोहिणी अष्टमी के दिन वे त्रिशूर के गुरुवयूर श्रीकृष्णा मंदिर पहुंचे | उन्होंने यहां पर न सिर्फ मंदिर का दौरा किया, बल्कि पूरे विधि विधान से पूजा भी की | मंदिर से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने यहां पर कुछ दान भी दिया |
जब उनसे इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मंदिर में आना मेरे काम का हिस्सा है , क्योंकि उनके पास मंदिरों की देखभाल करने वाले मंत्रालय का ही प्रभार है | उनके इस जवाब से उनकी ही पार्टी के लोग संतुष्ट नहीं हैं | उनका कहना है कि मंदिर का दौरा उनकी ड्यूटी का हिस्सा हो सकता है, लेकिन पूजा करना उनकी ड्यूटी का हिस्सा नहीं है | विरोध करने वाले ये भी दलील दे रहे हैं कि सुरेंद्रन से पहले वर्ष 2006 से 2011 तक ये मंत्रालय जी सुधाकरन के पास था , लेकिन उन्होंने कभी भी इस तरह की पूजा में हिस्सा नहीं लिया |
इसी तरह 2007 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वी. एस . अच्युतानंदन भी जब सबरीमाला मंदिर के दौरे पर गए थे, तो उन्होंने भी किसी तरह के धार्मिक अनुष्ठान से खुद को दूर रखा था | पार्टी के वरिष्ठ नेता एम .वी . गोविंदन ने कहा कि सुरेंद्रन द्वारा किया गया ये काम हमारे सिद्धांतों के खिलाफ है | उनसे इस बारे में जवाब मांगा जाएगा | वास्तव में इस गंभीर विषय पर दलगत सिद्धांतों से ऊपर उठकर सोचने की ज़रूरत है |
पहले भी इसी पार्टी – माकपा के ही एक नेता बुद्ध देव भट्टाचार्य ने तत्कालीन पश्चिम बंगाल [ अब बंगाल ] की राजधानी कोलकाता के ज़करिया स्ट्रीट में एक मन्दिर का शिलान्यास किया था | उस समय वे ज्योति बसु सरकार में संचार एवं संस्कृति मंत्री थे | इस घटना की भी माकपा के कुछ सदस्यों ने जमकर आलोचना की थी , लेकिन भट्टाचार्य का कुछ नहीं बिगड़ा , अपितु मुख्यमंत्री बन गए | अतः मनुष्य को अपने पालनहार की भक्ति का जो नैसर्गिक अधिकार प्राप्त है , उसे नहीं गंवाना चाहिए | – Dr RP Srivastava