”आधार ” की मार से मौत तक होने की खबरों के बीच सरकार अभी तक नहीं चेती है कि इसके विकल्प पर विचार करे | इस प्रकार की खबरों की अब कमी नहीं रही कि आधार कार्ड की अनिवार्यता से परेशानी बढ़ी है , चाहे यह सीमित स्तर पर हो ,किन्तु इसकी अपरिहार्यता ने जीवन दूभर कर डाला है | मिसाल के तौर पर , अंग्रेज़ी दैनिक ‘ द टाइम्स आफ़ इंडिया ‘ [ नई दिल्ली , 10 नवंबर 2017 ] में छपी एक खबर के अनुसार कोलकाता निवासी 27 वर्षीय सनत मैत्रा मस्तिष्क पक्षाघात [ Cerebral Palsy ] रोग के शिकार हैं | उन्होंने तीन बार आधार कार्ड के लिए स्कैनिंग करवाई , लेकिन आधार बनवाने में नाकाम रहे | उनका आवेदन हर बार अस्वीकृत होता रहा | अब उन्होंने हाईकोर्ट की शरण ली है | कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब तलब किया है | जस्टिस देबांगशू बसाक ने केंद्र सरकार से पूछा है कि यदि केंद्र सरकार कह रही है कि आधार सबके लिए अनिवार्य है , तो फिर नागरिकों को अपना आधार कार्ड लेने के लिए हाईकोर्ट क्यों आना पड़ता है ? फिर इस मामले में कोर्ट क्यों हस्तक्षेप करे ? ” …. ” यह [ आधार कार्ड ] अन्य राज्यों में तो बनवाए जा रहे हैं , किन्तु बंगाल में अभी यह काम शुरू भी नहीं हुआ है | ” कोर्ट ने केंद्र सरकार से विस्तृत जवाब माँगा है | एक और बीमार की कोशिशों के बावजूद उसका आधार कार्ड नहीं बनपा रहा है | बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के मालवीय नगर में रहनेवाला नितिन कोली आटिसटिक नामक बीमारी का शिकार है , जिसकी वजह से वह उँगलियों के निशान नहीं दे पा रहा है , जो आधार कार्ड के लिए ज़रुरी है | उसका आधार कार्ड न बन पाने के कारण उसके हिस्से का राशन न मिलने से उसे भूखा भी सोना पड़ता है | उसकी माँ अनीता आधार कार्ड बनवाने के लिए पिछले लगभग तीन साल से आधार केन्द्रों का चक्कर लगाकर अब थक – हारकर बैठ गई है | बहराइच [ उत्तर प्रदेश ] में कई बृद्ध जनों के आधार कार्ड न बन पाने की खबर कुछ समय पहले मीडिया में आ चुकी है , जिसमें बताया गया था कि वृद्धजनों की उँगलियों की रेखाएं इतनी धूमिल हो चुकी हैं , आधार मशीन उन्हें कैप्चर ही नहीं कर पाती |
अभी पिछले कुछ समय से झारखंड की भाजपा सरकार ने राज्य में सार्वजनिक वितरण प्रणाली समेत सभी कल्याणकारी योजनाओं में लाभुकों के लिए आधार अनिवार्य कर दिया है , जिसके बाद कई लोगों की मौत की खबर आ चुकी है , हालाँकि सरकार मौतों को भूख से नहीं जोड़ रही है | इसी राज्य की जलडेगा (लिमडेगा) की संतोषी कुमारी, झरिया (धनबाद) के बैजनाथ रविदास और मोहनपुर (देवघर) के रूपलाल मरांडी की असामयिक मौत के बाद इनके परिजनों ने दावा किया था कि घर में अनाज न होने के कारण खाना नहीं बन पा रहा था , जिसके चलते उनकी मौत हुई. जबकि मुख्यमंत्री रघुवर दास इससे इनकार करते हैं | मीडिया की खबरों में यह बताया गया कि पी डी एस से मृतकों का आधार लिंक नहीं था , इसलिए उन्हें राशन नहीं मिल पा रहा था | वास्तव में आधार की अनिवार्यता से झारखंड में समस्याएं बढ़ी हैं | यद्यपि सरकार द्वारा मौत की कुछ घटनाओं के बाद पी डी एस में आधार की अनिवार्यता समाप्त करने का ऐलान किया गया था , फिर भी समस्याएं जस की तस हैं | ताज़ा खबर यह है कि झारखंड के सिल्लीडीह के जगदीश हज्जाम को उनके पीडीएस डीलर ने राशन देने से मना कर दिया है , क्योंकि उनका आधार कार्ड उस बायोमिट्रिक मशीन में अपलोड नहीं है, जिसमें अंगूठा लगाकर वह अपना महीने का राशन ले लेते | राशन न मिलने के चलते उनके घर में खाना बनाने में दिक्कतें हो रही हैं | उनका राशन महिलाओं के एक स्वयं सहायता समूह द्वारा संचालित राशन वितरण केंद्र से आता था | जगदीश ने मीडिया को बताया कि ” हमारे पास लाल कार्ड है | हम लोग उसी से राशन लेते थे | अब पिछले दो महीने में कम से कम पांच बार राशन लेने गए , लेकिन डीलर ने राशन देने से मना कर दिया क्योंकि मेरे आधार कार्ड का नंबर उनकी मशीन में नहीं दिख रहा है| काश, यह आधार इतना ज़रूरी नहीं होता |”
पता चला है कि झारखंड में ऐसे बहुत से लोग हैं , जो आधार कार्ड की अनिवार्यता से खासे परेशान हैं | अन्य प्रदेशों से भी ऐसी ही शिकायतें मिल रही है , जिनका निराकरण करना राज्य सरकारों की प्राथमिक ज़िम्मेदारी है | लगता है ,बिना सोचे – विचारे इच्छित क़दम को लागू करने की बीमारी अब देश में वबा की तरह फ़ैल रही है | अक्सर यह देखा गया है कि चीज़ें लागू कर दी जाती हैं और मुनाफ़ाखोर जी भरकर फ़ायदा उठा चुकते हैं , तब उसमें सुधार की बात सोची जाती है | आशा की जानी चाहिए कि आधार से जुड़े सभी प्रश्नों – प्रतिप्रश्नों और जटिलताओं पर सुप्रीमकोर्ट की संविधान पीठ जल्द उचित फ़ैसला सुनाएगी | – Dr RP Srivastava