18 जून 2017 को भारतीय सैनिक डोकलाम पहुंचे और चीनी सेना को सड़क बनाने से रोक दिया | इसी के साथ दोनों देशों की सेनाएं आमने – सामने आ गईं | काफ़ी दिनों के बाद 28 अगस्त 17 को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से पूर्व दोनों देशों ने अपनी सेनाएं पीछे हटाने का फ़ैसला किया | यह क्षेत्र सिक्किम-भूटान-तिब्बत सीमा पर है , जो त्रिकोण रूप में है , लेकिन भारत का इस पर दावा नहीं है , अपितु भूटान और चीन इस पर अपने – अपने स्वामित्व के दावे करते रहे हैं | यह क्षेत्र अमलन चीन के क़ब्ज़े में है | 1988 के बाद से चीन भूटान के कुछ क्षेत्रों को अपना बताता रहा है , जिससे विवाद उत्पन्न होता रहा है | भूटान और भारत के बीच 1949 से ही परस्पर विश्वास और स्थायी दोस्ती का करीबी संबंध है। दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग का करार है।

2007 में भारत और भूटान द्वारा हस्ताक्षर किए गये मैत्री संधि के अनुच्छेद 2 में कहा गया है: “भूटान और भारत के बीच घनिष्ठ दोस्ती और सहयोग के संबंधों को ध्यान में रखते हुए भूटान सरकार और भारत गणराज्य की सरकार निकट सहयोग करेगी अपने राष्ट्रीय हितों से संबंधित मुद्दों पर एक दूसरे के साथ है। पिछले दिनों इस क्षेत्र में पुनः तनाव पैदा हो गया , जब 1600-1800 चीनी सैनिक डोकलाम में फिर आ धमके ।

वे यहां हेलीपैड्स, रोड , आश्रय स्थल, भंडार-गृह और शिविरों को बनाने का काम कर रहे हैं। सुरक्षा सूत्रों का कहना है कि भारत को रणनीतिक लक्ष्य मिल गया है और अब चीन को दक्षिण की तरफ किसी भी हालत में सड़क का विस्तार नहीं करने दिया जाएगा। इस क्षेत्र में चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के जवान स्थाई रूप से रहते हैं। चीनी सैनिकों का यह भारी जमावड़ा उस जगह पर नहीं है जहां इस साल जून के मध्य में गतिरोध शुरू हुआ था। फिर भी कई वजहों से चीनी सैनिकों की नई तैनाती भारत के लिए चिंताजनक है। पहले इस इलाक़े में चीनी सैनिक हर साल अप्रैल-मई और अक्तूबर-नवंबर में आते थे, जिसका मकसद इलाके की ताजा स्थिति का जायजा लेना और अपना दावा जताना होता था। भारत ने इस तरह साल में दो बार होने वाली चीनी सैनिकों की गश्त पर कभी आपत्ति नहीं की। भारत ने विरोध की कार्रवाई तब की, जब चीनी सैनिक भूटान के विरोध को नजरअंदाज करते हुए विवादित क्षेत्र में जम गए और उन्होंने वहां सड़क बनानी भी शुरू कर दी थी। 73 दिनों तक दोनों देशों की सेनाएं आमने – सामने रहीं |

दोनों देशों ने अपने सैनिकों को वापस बुला लिया , लेकिन चीन अपनी हेकड़ी दिखाता रहा | चीन ने उस वक्त कहा था कि डोकलाम पर वह अपना दावा जताता रहेगा, पर इसी के साथ यह भरोसा भी दिलाया था कि वहां यथास्थिति बनी रहेगी। लेकिन अब चीन द्वारा जो स्थाई निर्माण किए जाने की कोशिशें की जा रही हैं , वे गंभीर और चिंतनीय हैं | डोकलाम गतिरोध टूटने के कुछ दिन बाद सितंबर में सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने आगाह किया था कि चीन विवादित क्षेत्र को दखल करने की कोशिश फिर से कर सकता है | यही हुआ भी , चीन ने विवादित इलाके में अपने सैनिकों की भारी तैनाती ऐसे वक्त की है, जब उसके विदेशमंत्री रूस, चीन और भारत के विदेशमंत्रियों की बैठक के लिए दिल्ली आने वाले थे। अलबत्ता नई दिल्ली में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने कहा, ‘चीन हमेशा से पड़ोसियों के साथ बेहतर संबंधों को महत्व देता रहा है। दोनों बड़े पड़ोसी देश हैं और प्राचीन सभ्यताएं हैं।’ उन्होंने कहा कि भारत-चीन के संबंधों का रणनीतिक महत्व इतना है कि मामूली टकराव उसमें किसी तरह की बाधा नहीं बनते।’ पिछले सप्ताह एक कार्यक्रम में वांग यी ने कहा, ‘डोकलाम इलाके में दोनों देशों के बीच तनाव को कूटनीतिक तरीके से निपटाने में सफलता हासिल की गई है।’

यह बात सच है कि भारत – चीन के सम्बंध लंबे समय से तनावपूर्ण रहे हैं | यह भी माना जाने लगा है कि कटुता और तनाव के निकट भविष्य में घटने के कोई आसार नहीं हैं | यद्यपि दोनों पक्षों की ओर से कूटनीतिक तौर पर ही सही , संबंध सुधारने की बाक़ायदा क़वायद की जाती रही है | कुछ समय पहले चीन के वर्तमान राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने भारत से संबंध सुधारने की खातिर पांच सूत्री फार्मूले की घोषणा की थी | इस प्रयास से ऐसा लगा था कि शायद चीन अब ‘ हिंदी – चीनी , भाई – भाई ‘ बनना चाहता है , लेकिन यह उस वक्त एक भ्रम साबित हुआ और एक स्वांग जैसा लगा , जब चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी सेक्टर के बुर्थे में भारतीय सीमा में उन्नीस किमी . अंदर घुसकर बंकर और चौकी बनाने लगी और तनाव को जन्म दिया |

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद पुराना है | दोनों देशों के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा करीब चार हजार किलोमीटर लंबी है, जो 1962 के युद्ध विराम समझौते के तहत तय की गई थी | मगर इसमें से करीब तीन हजार किलोमीटर तक भ्रम की स्थिति वर्षों से बनी हुई है | ‘ ड्रैगन ‘ चीन अनेक बार कह चुका है कि वह इस नियंत्रण रेखा को नहीं मानता | इसके चलते अक्सर उसकी सेनाएं भारतीय सीमा में घुस आती रही हैं | इसकी बड़ी वजह चीन की पुरानी विस्तारवादी नीति और भारत पर अपना दबदबा बनाए रखने की मंशा भी रही है | मगर अब स्थितियां ऐसी नहीं हैं कि युद्ध के जरिए मसले हल किए जा सकें | यह बात दोनों देश अच्छी तरह समझते हैं |

चीन और भारत के बीच विवाद के मुद्दे कई हैं | इनमें से बहुत – से चीन ने पैदा किए हैं – जैसे . उसका लद्दाख इलाके में अक्साई चिन सड़क बनाना, अरुणाचल पर अपना दावा जताते रहना, ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाना, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को भारत का हिस्सा न मानना आदि | इन तमाम मसलों पर से ध्यान हटाए रखने के लिए वह नियंत्रण रेखा का विवाद छेड़ देता है | दरअसल, इस तरह वह अपने को ताकतवर देश साबित करने की कोशिश करता है | भले चीन भारत पर दबदबा बना कर दक्षिण एशिया में अपनी ताकत का लोहा मनवाने की कोशिश करना चाहता हो, मगर वह भी जानता है कि सीमा पर अशांति व्यापारिक दृष्टि से नुकसानदेह साबित होगी | यह भी एक सच है कि चीन की कथनी और करनी में भारी भेद है और उस पर विश्वास करना घातक सिद्ध होगा | आंकड़े बताते हैं कि 2010 से 2011 के बीच वह 750 से अधिक बार अतिक्रमण कर चुका है. जुलाई 2012 में उसके कुछ सैनिकों ने भारतीय सीमा में घुसकर चट्टानों पर चीन-9 लिखा था | कहा जा रहा है कि अर्थव्यवस्था की डांवाडोल स्थिति, बढ़ती बेरोजगारी, घटती क्रयशक्ति और कई प्रांतों में सिर उठाते आतंकवाद जैसे मसले पर वह बुरी तरह परेशान है | व्यवस्था के खिलाफ लोगों का आक्रोश बढ़ता जा रहा है. ऐसे में उसने जनता का ध्यान बंटाने के लिए जानबबूझकर सीमा विवाद को भड़काने की कोशिश करता रहा है |

चीन द्वारा सीमा पर तनाव पैदा करने के कई और भी कारण है | दुनिया में भारत की बढ़ती ताकत से वह खासा परेशान है.| अमेरिका से भारत की नजदीकियां भी उसकी चिंता को दुगुना कर दी है | उसे लग रहा है कि अमेरिका भारत के द्वारा उसकी राह में रोड़े अटका रहा है | दूसरे दक्षिणी चीन सागर में वियतनाम के साथ मिलकर भारत द्वारा तेल और गैस निकालने की योजना भी उसे रास नहीं आ रही है | वह कतई नहीं चाहता है कि दक्षिण चीन सागर में भारत की दखल बढ़े | इसीलिए वह नहीं चाहता कि चीन सीमा विवाद को सुलझाया जाए | कई दौर की बातचीत के बाद भी वह अरुणांचल पर अपना दावा छोड़ने को तैयार नहीं है | 90,000 वर्ग किमी क्षेत्र पर अपना दावा आज भी जताता है | यही नहीं वह अरुणांचल प्रदेश से चुने गये किसी भी जनप्रतिनिधि को चीन जाने का वीजा भी नहीं देता है | सीमा विवाद सुलझाने की बात 1976 से चल रही है |

चीन भारत पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए दस्तावेजों के आदान-प्रदान में कभी भी अपने दावे के नक़्शे को उपलब्ध नहीं कराता है | इसके लिए भारत भी कम जिम्मेदार नहीं है | वास्तव में चीन के संदर्भ में भारत की विदेश नीति पंडित नेहरू के समय से ही भटकाव की शिकार रही है | चीन के जवाब में भारत के पास सौदेबाजी की नेहरू काल की बची हुई सीमित ताकत यानी तिब्बत का मसला परवर्ती शासकों ने मुफ्त में गंवा दी | भारत कई दशक पूर्व ही तिब्बत को चीन का हिस्सा मान चुका है | यह भारत की बड़ी अदूरदर्शिता थी | भारत को यह गुमान था कि इससे चीन भारत के प्रति आक्रामक नहीं होगा | इंदिरा गांधी से लेकर नरेंद्र मोदी तक सभी ने तिब्बत को चीन का हिस्सा माना है | अगर भारत तिब्बत के मसले को जिंदा बनाए रखता तो आज चीन बार-बार आंख दिखाने की हिम्मत नहीं करता | चीन की कूटनीतिक सफलता ही कही जाएगी कि वह जब भी भारत से वार्ता को तैयार होता है |

सबसे पहले भारतीय नेताओं से कबुलवा लेता है कि तिब्बत चीन का हिस्सा है, लेकिन भारतीय रणनीतिकार कभी भी चीन से यह कहलवाने में सफल नहीं हुए कि कश्मीर भी भारत का अविभाज्य अंग है | भारत सरकार की कूटनीतिक असफलता का ही नतीजा है कि चीन भारत के अन्य पड़ोसी देशों – नेपाल, बंगलादेश और म्यांमार में अपना दखल बढ़ा रहा है और भारत सरकार हाथ पर हाथ धरी बैठी हुई है | यह सच है चीन श्रीलंका में बंदरगाह बना रहा है | अफगानिस्तान में वह अरबों डालर का निवेश कर तांबे की खदानें चला रहा है | म्यांमार की गैस संसाधनों पर कब्जा करने की कोशिश में है | खबर तो यह भी है कि वह कोको द्वीप में नौ सैनिक बंदरगाह बना रहा है | चीन भारत को घेरने के लिए नेपाल पर अपना प्रभाव बहुत बढ़ा चुका है | नेपाल की सत्ता में वामपंथ के बढ़ते दखल से चीन के लिए आसानियाँ पैदा हुई हैं | वह पाक अधिकृत कश्मीर में मिसाइल स्टोर करने के लिए 22 सुरंगें बनाने की ताक में है | ‘ न्यूयार्क टाइम्स ‘ द्वारा खुलासा किया गया था कि वहां सामरिक रुप से महत्वपूर्ण गिलगित-बल्तिस्तान क्षेत्र पर चीन अपना वर्चस्व बढ़ा रहा है | तकरीबन 10000 से अधिक चीनी सैनिकों की मौजूदगी की बात कही गयी थी | इन क्षेत्रों में वह निर्बाध रुप से हाईस्पीड सड़कें और रेल संपर्कों का जाल बिछा रहा है | सिर्फ इसलिए कि भारत तक उसकी पहुंच आसान हो सके | दरअसल उसकी मंशा अरबों रुपये खर्च करके कराकोरम पहाड़ को दो फाड़ करते हुए गवादर के बंदरगाह तक अपनी रेल पहुंच बनानी है, ताकि युद्धकाल में जरुरत पड़ने पर वह अपने सैनिकों तक आसानी से रसद सामग्री पहुंचा सके | भारत सरकार इस ओर अपनी आंख बंद किए हुए है | यह सही है कि चीन भारत पर हमला करने का दुस्साहस नहीं करेगा. उसे पता है कि भारत साठ के दशक का भारत नहीं है | वह मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है. लेकिन जिस तरह वह अपनी सामरिक क्षमता को विस्तार दे रहा है वह भारत के लिए इन्तिहाई खतरनाकं है | – Dr RP Srivastava

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