फाइनेंशियल रिजोल्यूशन एंड डिपॉजिट इंश्योरेंस [ एफआरडीआई ] बिल को लेकर अभी तस्वीर साफ़ नहीं हो पाई है , हालाँकि इस बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बैंकों के खाताधारकों का पैसा हरहाल में सुरक्षित एहने का आश्वासन दिया है | इस बिल को सरकार ने पिछले दिनों संसद की संयुक्त समिति को अपनी सिफारिशों के लिए दे दिया | उम्मीद है , संसद के चालू सत्र में सरकार इसे पास कराने का प्रयास करेगी | उल्लेखनीय है कि अभी तक बैंकिंग कंपनी के दिवालिया होने की स्थिति में मामले को संभालने के लिए कोई कानून देश में नहीं है |.भारत में अब तक भारतीय रिज़र्व बैंक लगाकर फेल होते बैंक को किसी अन्य बड़े बैंक में विलय का निर्देश देता रहा है | बेल आउट पैकेज तो एक सामान्य बात है |
एन पी ए संकट से निबटने के लिए सरकार की ओर से जो आर्थिक मदद की जाती है , वही बेल आउट पैकेज कहलाता है | केंद्र सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को अक्सर करोड़ों रुपए एक तरह से खैरात के तौर पर देती है | इसकी वजह से भी देश की अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है | अक्सर बड़े पूंजीपति बैंकों से बड़ी रक़म कर्ज़ की शक्ल में ले लेते हैं , और उसे अदा नहीं करते | ऐसा भी देखा गया है कि जब उन पर क़ानूनी शिकंजा कसता है , तो विदेश में शरण ले लेते हैं | विजय माल्या का मामला ऐसा ही है | इस विषम परिस्थिति और बैंकों के दीवालिया होने की स्थिति में एक क़ानून की ज़रूरत महसूस की जा रही थी | बताया जा रहा है कि यह बिल इस ज़रूरत को पूरा करेगा और व्यस्थित ढंग से स्थिति पर काबू पाएगा | दूसरी ओर इस बिल के बारे में ख़ासकर सोशल मीडिया में पिछले दिनों जो बातें आईं , उनमें दीवालिए की हालत में बैंकों के जमाकर्ताओं का पैसा डूबने की आशंका जताई गई थी | लोगों की इन चिंताओं के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों आश्वस्त किया है कि बैंकों में जमा लोगों का पैसा सुरक्षित है।
उद्योग संगठन ‘ फिक्की ‘ की वार्षिक आम बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा कि इस विधेयक को लेकर अफवाहें फैलाई जा रही हैं। सरकार ग्राहक हित सुरक्षित करने के लिए लगातार काम कर रही है, लेकिन खबरें ठीक इसके उलट फैलाई जा रही हैं। उन्होंने कहा कि जागरूकता के लिए ‘ फिक्की ‘ जैसे संगठनों को आगे आना चाहिए। प्रधानमंत्री के इस बयान से पहले ही वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बैंकों में लोगों की जमा धनराशि के सुरक्षित रहने का आश्वासन दिया था | अतः इस सिलसिले में प्रधानमन्त्री और वित्तमंत्री दोनों के बयान स्वागतयोग्य एवं सराहनीय हैं | इस बिल को अगस्त 2017 में लोकसभा में प्रस्तुत किया गया था और अब यह संसद की एक स्थायी समिति के पास है। पहले माना जा रहा था कि इसे
शीतकालीन सत्र में प्रस्तुत कर दिया जाएगा। अब ऐसा नहीं लगता कि जल्द ही यह पारित होगा | वैसे उक्त बिल में जमाकर्ताओं के धन की सुरक्षा की बात नहीं है और न ही इसकी यक़ीनदिहानी कराई गई है | केवल प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री के मौखिक बयान ही सामने आए हैं | इसलिए इस मामले में और स्पष्टता की ज़रूरत है | क्या बैंक डूबने की स्थिति में जमाकर्ताओं का एक लाख रुपए तक ही सुरक्षित रहेगा या सारी धनराशि सुरक्षित रहे इस बाबत भी कोई क़दम उठाया जाएगा ? मौजूदा बिल बैंकों, बीमा कंपनियों और अन्य वित्तीय संस्थाओं की दिवालिया प्रक्रिया को हल करने के लिए एक नया ढांचा तैयार करने से संबंधित है। इसके लिए एक निस्तारण निगम गठित किया जाएगा जो यह निर्धारित करेगा कि बैंकों के विफल होने का खतरा तो नहीं है और अगर है तो इसके लिए सही क़दम क्या होगा? 1961 में गठित जमा बीमा एवं ऋण गारंटी निगम के अधीन उसका जमा कम से कम एक लाख रुपये तक तो सुरक्षित है। अलबत्ता यह बिल निस्तारण निगम को यह अधिकार देता है कि वह हर जमाकर्ता की सुरक्षित जमा का निर्धारण करे। इससे इस राशि की सीमा को लेकर संदेह और संशय पैदा हो रहा है। इस बिल में ‘बेल इन ’ प्रावधान है , जिसकी वजह से यह आशंका पैदा होती है कि नया कानून बैंकों को यह अधिकार दे देगा कि वे अपने ग्राहकों की जमा का मूल्य कम कर सकें या उसे घटा सकें। हालांकि विधेयक में साफ़ तौर पर उन श्रेणियों का जिक्र है जिनको ‘ बेल इन ‘ में शामिल नहीं किया जाएगा। इसमें बीमित जमा का उल्लेख ज़रूर है , लेकिन सुनिश्चित धनराशि का उल्लेख न होने से भ्रम हो रहा है , जिसे दूर किया जाना चाहिए | गौर तलब है कि 2008 में अमेरिका में आए आर्थिक संकट से अमेरिकी सरकार ने ‘बेल-आउट’ पैकेज के माध्यम से उबारा था , जिसका भारी विरोध हुआ था , क्योंकि इसमें करदाताओं की कर की रक़म लगाई गई थी | विरोध के चलते अमेरिका में पांच जनवरी, 2010 को ‘डॉड-फ्रैंक वॉल स्ट्रीट रिफॉर्म्स एंड कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट’ पारित किया।
इस क़ानून को महामंदी के बाद सबसे व्यापक वित्तीय सुधार के रूप में देखा गया। इसके ‘टाइटल 2’ में ‘ बेल इन ‘ का प्रावधान किया गया है। भारतीय लोकसभा में 10 अगस्त, 2017 को वित्त मंत्री द्वारा पेश किए गए एफआरडीआई बिल की जड़ें अमेरिका के इस कानून में खोजी जा सकती हैं। बेल-इन का सीधा मतलब है, संकट के समय बैंक और वित्तीय संस्थाएं अपने अंदर ही समाधान ढूंढे | इसलिए भी आशंकाएं पाई जाती हैं , क्योंकि बैंक का अपने स्तर पर हल की दिशा में जमाकर्ताओं का धन प्रमुख रूप से सामने रह सकता है | अतः आवश्यकता इस बात की सख्त ज़रूरत है कि सभी भ्रमों और आशंकाओं का निवारण किया जाए | – Dr RP Srivastava