क्या नोटबंदी और जी एस टी ने देश की मुश्किलें बढ़ा दी हैं ? हाँ , जी एस टी ने सरकार का राजस्व घटा दिया है | इसलिए अब केंद्र सरकार अपना कामकाज चलाने के लिए पचास हजार करोड़ रूपये कर्ज़ लेने के लिए मजबूर है |अब सरकार ने मान लिया है कि देश की अर्थव्यवस्था मंद पड़ी है और राजकोषीय घाटा बढ़ा है | आर्थिक मंदी के अलग-अलग दावों के बीच सरकार ने माना है कि वित्त वर्ष 2016-2017 में देश की विकास दर धीमी पड़ी है। भारत की जी डी पी 2015-16 में 8 प्रतिशत की विकास दर के मुकाबले 2016-17 में गिरकर 7.1 प्रतिशत पर पहुंच गई। साथ ही आर्थिक रफ्तार सुस्त होने के कारण औद्योगिक क्षेत्र और सर्विस सेक्टर में भी तेजी नहीं आई | विगत 29 दिसंबर 2017 को वित्त अरुण जेटली ने लोकसभा में यह बात कही। वित्त मंत्री के मुताबिक, 2016 में वैश्विक आर्थिक विकास की रफ्तार धीमी रहने के साथ-साथ जीडीपी के मुकाबले तय निवेश में कमी, कारपोरेट सेक्टर पर दबाव वाली बैलेंस शीट, इंडस्ट्री सेक्टर के क्रेडिट ग्रोथ में गिरावट और कई वित्तीय कारणों से 2016-17 की आर्थिक विकास दर में कमी आई। विकास दर में कमी का सीधा अर्थ है कि इंडस्ट्री और सर्विस सेक्टर में सुस्ती , कम विकास कार्य | सरकारी आंकड़ों के अनुसार , राजकोषीय घाटा नवंबर 17 के अंत में ही पूरे साल के लिए तय अनुमान से आगे निकल गया। जी एस टी के तहत पिछले दो महीने के दौरान कम राजस्व और अधिक खर्च से राजकोषीय घाटे का आंकड़ा नवंबर अंत में ही बजट में तय पूरे साल के अनुमान से आगे निकलकर 112 प्रतिशत हो गया। सीजीए के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2017-18 में अप्रैल से नवंबर अवधि के दौरान राजकोषीय घाटा 6.12 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया। जबकि बजट में पूरे वर्ष के दौरान राजकोषीय घाटे के 5.46 लाख करोड़ रुपये रहने का लक्ष्य तय किया गया था। यह घाटा तय वार्षिक अनुमान के 112 प्रतिशत तक पहुंच गया , जबकि इससे पिछले वर्ष इसी अवधि में यह घाटा वार्षिक बजट अनुमान का 85.8 प्रतिशत था। सरकार ने वर्ष 2017-18 के दौरान राजकोषीय घाटे को जी डी पी का 3.2 प्रतिशत पर लाने का लक्ष्य रखा है। इससे पिछले वर्ष सरकार राजकोषीय घाटे को जी डी पी के 3.5 प्रतिशत रखने में सफल रही थी। सीजीए के आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष की अप्रैल से नवंबर की 8 महीने की अवधि में सरकार का कुल रेवन्यू 8.04 लाख करोड़ रुपये रहा है जो कि उसके वार्षिक बजट अनुमान 15.15 लाख करोड़ रुपये का 53.1 प्रतिशत है। एक वर्ष पहले यह अनुपात 57.8 प्रतिशत रहा था। इस दौरान सरकार का कुल खर्च वार्षिक खर्च के अनुमान का 59.5 प्रतिशत रहा जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में यह 57.7 प्रतिशत रहा था। पूरे देश की कर प्रणाली को एकीकृत करने वाले आर्थिक सुधार जी एस टी के लागू होने के बाद राज्यों को बड़ा राजस्व घाटा हुआ है। जुलाई-अक्टूबर तिमाही में राज्यों को हुए राजस्व घाटे को देखते हुए केंद्र सरकार ने 24,500 करोड़ रुपये का मुआवजा जारी किया है।
यह जानकारी विगत 29 दिसंबर 17 को सरकार ने संसद को दी। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय के हाल के आंकड़ों में कहा गया है कि जीडीपी की वृद्धि दर 2014-15, 2015-16 तथा 2016-17 में क्रमश: 7.5 प्रतिशत, 8 प्रतिशत और 7.1 प्रतिशत रही। वित्त वर्ष 2017-18 की पहली और दूसरी तिमाही में जीडीपी क्रमश: 5.7 प्रतिशत और 6.3 प्रतिशत की दर से बढ़ी। वित्त मंत्री के अनुसार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की अनुमानित मंदी के बावजूद, भारत 2016 में सबसे तेजी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था रहा। यह 2017 में भी सबसे तेजी से बढ़ रही दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। उन्होंने कहा कि सरकार ने अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं, जिनमें मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देना, परिवहन एवं ऊर्जा क्षेत्र के साथ-साथ शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र के इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए ठोस उपाय करना, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति में व्यापक सुधार करना और कपड़ा उद्योग को विशेष पैकेज देना शामिल है। वित्त मंत्री ने कहा कि विपक्ष ने यह दावा ‘बढ़ाचढ़ाकर’ किया है कि देश की विकास दर अपने सबसे निचले स्तर पर आ गई है। तीन साल से लगातार भारत विश्व की सबसे तेज गति से प्रगति करने वाली अर्थव्यवस्था बना हुआ है। आईएमएफ और विश्व बैंक ने भी कहा कि भारत दुनिया की सबसे तेज बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था की होड़ में महज 0.1 प्रतिशत से ही दूसरे नंबर पर रहेगा। मोदी सरकार पर यह आरोप भी लग रहा है कि उसके अब तक के कार्यकाल में रोज़गार के अवसर लगातार घट रहे हैं | युवा बेरोज़गारी से त्रस्त हैं | जो सेवारत थे , उनमें से बहुतों की नौकरियां छूट गई हैं और कुछ की नौकरियों पर ख़तरे मंडरा रहे हैं |
जिन 107 कंपनियों के पिछले तीन वित्त वर्षों के आंकड़े हैं उनमें मार्च 2015 तक कुल 684,452 कर्मचारी थे जिनकी संख्या मार्च 2016 में घटकर 677,296 रह गयी और मार्च 2017 तक ये संख्या घटकर 669,784 हो गयी। नौकरी में कमी की संख्या छोटी लग सकती है ,लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार यह एक प्रवृत्ति को दिखाती है जो चिंता का विषय है। देश की सबसे बड़ी कंपनियों के कर्मचारियों में कमी से इन कंपनियों के विस्तार की योजनाओं और निकटवर्ती विकास के निराशा की स्थिति का पता चलता है। कुछ समय पहले पेश किए गए सरकारी आंकड़ों में यह बात उजागर हुई थी कि बेरोज़गार लोगों में पढ़े-लिखे युवाओं की तादाद ही सबसे अधिक है | बेरोजगारों में 25 फीसदी 20 से 24 आयुवर्ग के हैं, जबकि 25 से 29 वर्ष की उम्र वाले युवकों की तादाद 17 फीसदी है | 20 साल से ज्यादा उम्र के 14.30 करोड़ युवाओं को नौकरी की तलाश है | विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार बढ़ता बेरोजगारी का यह आंकड़ा सरकार के लिए गहरी चिंता का विषय है | खबरों के अनुसार वित्त वर्ष 2016-17 में छंटनी के मामले में देश की बड़ी कंपनियों के नाम भी सामने आए हैं | अध्ययन में स्पष्ट रूप से पता चला है कि है कि लगातार दूसरे साल इन कंपनियों के कर्मचारियों की संख्या में कमी दर्ज की गई | खासकर मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों में मानव संसाधन समेत कई तरह के संसाधनों का पूरा उपयोग नहीं हो पा रहा है, इसलिए ये कंपनियां नई नौकरियां देने के बदले अपने कर्मचारियों की संख्या में लगातार कमी कर रही हैं | वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर एक सरकारी अध्ययन में यह बात पाई गई कि महिलाओं में बेरोज़गारी एक गंभीर समस्या बनती जा रही है | भौतिकवाद ने उन्हें इसके लिए विवश किया है कि वे कमाएं भी | अतः हमारे देश में नौकरी की तलाश करने वालों में लगभग आधी महिलाएं शामिल हैं | बेरोजगारों में 10वीं या 12वीं तक पढ़े युवाओं की तादाद 15 फीसदी है | यह तादाद लगभग 2.70 करोड़ है | तकनीकी शिक्षा हासिल करने वाले 16 फीसदी युवा भी बेरोजगारों की कतार में हैं | इससे साफ है कि देश के तकनीकी संस्थानों और उद्योग जगत में और बेहतर तालमेल जरूरी है | पिछले कुछ वर्षों में इंजीनियरिंग के डिग्रीधारी युवा बेरोज़गारी की ओर अग्रसर हैं | यह भी एक चिंताजनक स्थिति है | – Dr RP Srivastava