एक हज़ार से अधिक केंद्रीय विद्यालयों में प्रार्थना के जरिए खास धर्म को बढ़ावा देने की जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और केन्द्रीय विद्यालय संगठन को नोटिस जारी किया है और चार सप्ताह के भीतर जवाब दाख़िल करने को कहा है | विगत 10 जनवरी 2018 को जारी इस नोटिस के बाद सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ गई है। याचिका दायर करने वाले वकील विनायक शाह का कहना है कि सरकारी विद्यालयों में ऐसी प्रार्थना नहीं होनी चाहिए, जिससे किसी विशेष धर्म – हिंदुत्व को बढ़ावा मिलता हो। याची ने आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा कि चूंकि स्कूल सरकारी हैं, इस कारण इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती।
केन्द्रीय विद्यालयों में 1964 से हिंदी-संस्कृत में सुबह की प्रार्थना हो रही है | ऐसा नहीं है कि अब तक इस पर आपत्ति इसलिए नहीं की गयी कि किसी का ध्यान इस ओर नहीं गया , बल्कि इसमें आपत्ति की कोई बात ही नहीं है | सभी धर्मों में कुछ ‘ कामन ‘ बातें होती हैं , जैसे – चोरी न करो , झूठ न बोलो आदि – आदि | इन चीज़ों को किसी धर्म विशेष का बताना नितांत अनुचित है | याचिकाकर्ता ने इसे संविधान के अनुच्छेद 25 और 28 के खिलाफ बताते हुए कहा है कि इसकी इजाज़त नहीं दी जा सकती है। सरकारी वित्तपोषित स्कूलों में धर्म विशेष को बढ़ावा देने वाला कोई आयोजन नहीं हो सकता। उनकी दलील है कि सरकारी स्कूलों में धार्मिक मान्यताओं और ज्ञान को प्रचारित करने के बजाय वैज्ञानिक तथ्यों को प्रोत्साहन मिलना चाहिए।
जनहित याचिका को गंभीरता से लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह संवैधानिक मामला है। सुप्रीम कोर्ट इस पर विचार करेगा कि क्या देश के सभी केंद्रीय विद्यालयों की प्रार्थनाएं धर्म विशेष को बढ़ावा दे रही हैं ? क्या हिंदी की संबंधित प्रार्थना संविधान के मूल्यों के खिलाफ है ? सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और केन्द्रीय विद्यालय संगठन से पूछा है कि क्या हिंदी और संस्कृत में होने वाली प्रार्थना से किसी धार्मिक मान्यता को बढ़ावा मिल रहा है। स्कूलों में सर्वधर्म प्रार्थना क्यों नहीं कराई जा सकती ? बताया जा रहा है कि याचिकाकर्ता विनायक शाह खुद केंद्रीय विद्यालय में पढ़े हुए हैं। उनकी याचिका के मुताबिक, जब स्कूल में हर धर्म के बच्चे पढ़ने आते हैं तो किसी एक धर्म से जुड़ी प्रार्थना क्यों कराई जाती है। केंद्रीय विद्यालयों में सुबह की जाने वाली प्रार्थनाएं इस प्रकार हैं –
असतो मा सद्गमय
तमसो मा ज्योतिर्गमय
मृत्योर्मामृतं गमय
अर्थात , (हे ईश्वर ,हमको) असत्य से सत्य की ओर ले चलो । अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो । मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो |
यह बृहदारण्यक उपनिषद का श्लोक [ 1 . 3 . 28 {1}] है | यह शुक्ल यजुर्वेद में भी विद्यमान है | इन स्कूलों में हिंदी में यह भी प्रार्थना होती है –
हमारे ध्यान में आओ प्रभु आंखों में बस जाओ
अंधेरे दिल में आकर के प्रभु ज्योति जगा देना
बहा दो प्रेम की गंगा दिलों में प्रेम का सागर
हमें आपस में मिल-जुल कर प्रभु रहना सिखा देना
हमारा धर्म हो सेवा हमारा कर्म हो सेवा
सदा ईमान हो सेवा व सेवक जन बना देना
वतन के वास्ते जीना वतन के वास्ते मरना
वतन पर जां फिदा करना प्रभु हमको सिखा देना
दया कर दान विद्या का हमें परमात्मा देना |
इनके साथ ही संस्कृत में यह प्रार्थना होती है –
ओ३म् सह नाववतु
सह नौ भुनक्तु
सह वीर्यं करवावहै
तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै
ओ३म् शान्तिः शान्तिः शान्तिः |
अर्थात , परमेश्वर हम शिष्य और आचार्य दोनों की साथ-साथ रक्षा करें, हम दोनों को साथ-साथ विद्या के फल का भोग कराए, हम दोनों एकसाथ मिलकर विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें, हम दोनों का पढ़ा हुआ तेजस्वी हो, हम दोनों परस्पर द्वेष न करें।
यह कठोपनिषद का श्लोक 19 है , जो कृष्ण यजुर्वेद में भी विद्यमान है | अतः प्रार्थनाओं के उक्त विवरणों से साफ़ हुआ कि ये धर्म विशेष की प्रार्थनाएं नहीं हैं , अपितु वे धार्मिक शिक्षाएं हैं , जो सभी बड़े धर्मों में विद्यमान हैं | हाँ , यह अवश्य है कि इन सभी के आदि – स्रोत ग्रन्थ यही हैं , जिनके उद्धरण ऊपर दिए गए हैं | अतः इनके पठन – पाठन और गायन पर रोक नहीं लगनी चाहिए , क्योंकि ये किसी धर्म विशेष के नहीं हैं | – Dr RP Srivastava