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क्या है मृत्यु के बाद? एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब आसान नहीं. यह वही बता सकता है जिसने मौत के बाद खुद को जिन्दा पाया है.
एक पुराना सवाल है प्रश्न-मृत्यु के बाद क्या है..? क्या मृत्यु जीवन का पूर्ण-विराम है या फिर किसी रूप में चेतना/आत्मा की जारी यात्रा? इसका सही जवाब वही जान सकता है, जो मौत की उस अज्ञात दुनिया में खो चुका हो, जहां से कोई वापस नहीं आता.
हो सकता है, वह भी इसे न जानता हो… फिर भी, ऐसे कई लोग हैं, जो मौत के बाद की झलक देखने का दावा करते हैं. ये लोग हैं जिन्होंने मौत को (और उसके बाद की स्थितियों को) बेहद करीब से देखा और भोगा. ये वे लोग हैं, जिन्हें क्लीनिकल तौर पर मृत घोषित किया जा चुका गया था या जिनकी ‘ब्रेन डेथ’ हो चुकी होती है लेकिन जिन्हें सघन चिकित्सकीय प्रयासों के बाद बचा लिया जाता है.
मौत के बाद
इन लोगों में बच्चों से लेकर बड़े और आम आदमी से लेकर हॉलीवुड हस्तियां-एलिजाबेथ टेलर, शेरॉन स्टोन और एल्विस प्रेस्ले, विलियम पीटरसन जैसी दर्जनों शख्सियतें शामिल हैं. मौत के मुंह से वापस आये लोगों को अपनी ‘मृत्यु-यात्रा’ या मृत्योपरांत जो अनुभव होते हैं, उन्हें ‘नियर-डेथ एक्सपीरिएंस’ (एनडीई), निकट-मृत्यु या मृत्यु-बाद का अनुभव कहा जाता है.
अनुभवों को माना जाता है ‘मतिभ्रम’
ऐसे अनुभव नई बात नहीं हैं. इनका इतिहास उतना ही पुराना है, जितना खुद मनुष्य की चेतना का. संभव है, ‘मृत्योपरांत’ देखी-सुनी गई ऐसी बातों के आधार पर ही धर्मों और शास्त्रों में परलोक, स्वर्ग-नर्क आदि धारणाएं बनाई गई हों. पहले इस तरह के अनुभवों को ‘मतिभ्रम’ या मनगढ़ंत मान लिया गया था.
बहुत से लोग ऐसे अनुभव बताने में संकोच करते थे या इस बारे में किसी को कुछ नहीं बताते थे. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से, जब से ऐसे अनुभव मनोवैज्ञानिकों, डॉक्टरों, वैज्ञानिकों और मनोचिकित्सकों के शोध और दिलचस्पी के विषय बने हैं, लोग इन्हें खुलकर बताने भी लगे हैं.
क्लीनिकली डेथ की आपबीती
हाल के वर्षों में निकट-मृत्यु या एनडीई की घटनाओं में काफी इजाफा हुआ है. इसकी वजह है, मेडिकल साइंस में हो रही प्रगति. अब बहुत-से ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें मौत के मुंह में पहुंचे मरीजों, जिन्हें क्लीनिकली मृत घोषित कर दिया गया होता है, को बचा लिया जाता है. ऐसे लोग, जब बाद में निकट-मृत्यु अवस्था में देखी-सुनी बातों का खुलासा करते हैं तो उनकी कही बातें जांच में आश्चर्यजनक रूप से सच पाई जाती हैं.
विज्ञान की नजर में निकट-मृत्यु – बहुत से लोग इस तरह के अनुभवों को भ्रांतिपूर्ण या मतिभ्रम मानते हैं लेकिन मेडिकल के अनेक नामचीन डॉक्टर इसे पूरी तरह नकार नहीं पाते. वे इसे रहस्यमय और विज्ञान से परे अबूझ पहेली मानते हैं..
मृत्यु उपरांत जीवन का अस्तित्व
पैरानार्मल विशेषज्ञ, मनोवैज्ञानिक, मुख्यधारा के कई वैज्ञानिक और धार्मिक लोग इसे मृत्यु उपरांत जीवन के अस्तित्व के प्रमाण के रूप में देखते हैं.
मृत्यु-शैय्या पर या मस्तिष्कीय दृष्टि से मर चुके लोगों को इस तरह के अनुभव क्यों होते हैं, इस बारे में कई वैज्ञानिक सिद्धांत हैं, जिनमें ‘डाइंग-ब्रेन हाइपोथीसिस’ यानी मरते मस्तिष्क की परिकल्पना भी एक है.
इसमें माना जाता है कि जब मस्तिष्क तनाव, दबाव या कष्ट महसूस करता है, तब वह न्यूरो-कैमिकल धारा का रिसाव करता है, जिससे प्रकाश की कौंध, शांति की अनुभूति जैसी स्थितियां पैदा होती हैं. वर्ष 2010 में स्लोवेनिया में शोधकर्ताओं ने पाया कि हृदयाघात झेलने वाले मरीज, जिन्हें निकट-मृत्यु का अनुभव हुआ था, उनमें उन मरीजों की तुलना में कार्बन डाईऑक्साइड का उच्च स्तर मौजूद था, जिन्हें निकट-मृत्यु का अनुभव नहीं हुआ.
निकट-मृत्यु अनुभव की वजह
इससे पहले वर्ष 2009 में केंटुकी यूनिवर्सिटी में इस बारे में हुए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने निकट-मृत्यु अनुभव की वजह ऐसे मरीजों में ‘सोने-जागने’ तथा दवा सेवन से पैदा हालात को बताया.
कुछ वैज्ञानिक मरीज के मस्तिष्क को इस दौरान पर्याप्त ऑक्सीजन न मिलना इसकी वजह मानते हैं. बावजूद इसके, इससे जुड़े कई सवाल ऐसे हैं, जिनका उत्तर किसी के पास नहीं, जैसे कि इस दौरान लोग चीजों को देखने की बात करते हैं, जबकि वे एक तरह से ‘मृत’ होते हैं, उनकी आंखें पूरी बंद होती हैं.
बाद में, उनकी कही बातें सही पाई जाती हैं. इसी तरह, यदि ऐसे अनुभव ज्यादा रासायनिक असर के कारण होते हैं तो इसके बाद लोगों की जिंदगी में आमूलचूल बदलाव क्यों आ जाता है? ऐसे कई लोग अध्यात्म की ओर मुड़ जाते हैं और उनका मृत्यु से डर खत्म हो जाता है. ऐसे लोगों का कहना होता है कि उनके अनुभवों को वैज्ञानिक तर्क से समझाया नहीं जा सकता.
तर्क से परे:
ब्रिटेन के प्रसिद्ध न्यूरो-साइकिएट्रिस्ट डॉ. पीटर फेनविक मानते हैं कि वैज्ञानिक सिद्धांतों की मदद से तथ्यों तक पूरी तरह नहीं पहुंचा जा सकता.
क्या है नियर डेथ एक्सपीरिएंस
ऐसे अनुभव में लोग अपनी देह से अलग होने, हवा में उठने, आकाश गमन करने, परम शांति और अलौकिक प्रकाश की मौजूदगी महसूस करते हैं. कुछ को अंधेरी सुरंग में प्रवेश करने, प्रकाश की चकाचौंध देखने, काफी पहले मर चुके संबंधियों को देखने, जीवन का पुनरावलोकन करने और मृत्यु के भय से पूरी तरह मुक्त होने का अनुभव होता है.
कई लोग अपने उन रिश्तेदारों या मित्रों को भी देखते हैं जो मर चुके हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो उन लोगों को देखते हैं, जिन्हें वे अब तक जिंदा समझते थे और जिनकी मौत की खबर उन तक नहीं पहुंची. हाल के वर्षों में आधुनिक चिकित्सा तकनीक की बदौलत हार्ट अटैक या कार्डिएक अरेस्ट के बाद बहुत से मरीज बचा लिये जाते हैं.
उनमें से कई निकट-मृत्यु के अनुभवों का दावा करते हैं. अध्ययन बताता है कि हार्ट अटैक झेलने वाले 10 में से 1 मरीज को निकट-मृत्यु का अनुभव होता है