महंगाई पर बहुत हो – हल्ला मचता है | सरकार को घेरने की कोशिश की जाती है | लेकिन इसके मौलिक कारणों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है | बढ़ती महंगाई के बहुत से कारण हो सकते हैं और हैं भी | मगर इन सब कारणों में एक बड़ा कारण बढ़ती हुई जनसंख्या है | संसाधन कम हैं और उपभोक्ता अधिक | ऐसे में महंगाई को थम पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है | आश्चर्य की बात तो यह है कि कोई इस प्रमुख कारण पर चर्चा तक नहीं करता | अर्थशास्त्री भी इस खुले तथ्य की खुली अनदेखी करते हैं | अभी पिछले दिनों तेल के बढ़ते दामों की बात सामने आई , क्योंकि पेट्रोल और डीजल के दाम में नया वित्त वर्ष लगते ही बेहद उछाल दर्ज किया गया। मोदी सरकार के 2014 में सत्ता में आने के बाद दोनों पेट्रोलियम उत्पादों में मूल्य – वृद्धि का यह उच्चतम स्तर है। पेट्रोलियम मंत्रालय ने दाम में तेजी को देखते हुए उत्पाद शुल्क में कटौती की मांग की है।
सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों की ईंधन कीमत सूची के अनुसार दिल्ली में पेट्रोल का भाव बढ़कर एक अप्रैल 2018 को 73.83 रुपये प्रति लीटर पहुंच गया , जबकि मुंबई में इसने इस दिन 81 . 69 रुपए प्रति लीटर की छलांग लगाई | हमारे देश में तेल की क़ीमतों से सीधे तौर पर महंगाई जुड़ी हुई है | जब भी तेल के दाम बढ़ते हैं , महंगाई बढ़ जाती है | अब तो ऐसी व्यवस्था है कि हमारे देश में पेट्रोलियम पदार्थों ख़ासकर पेट्रोल और डीज़ल के दाम रोज़ निर्धारित होते हैं | कहा जाता है कि यह निर्धारण तेल की अतर्राष्ट्रीय क़ीमतों के उतार – चढ़ाव के अनुरूप निर्धारित होता है | मगर केंद्र सरकार पर यह आरोप भी लगता रहा है कि अतर्राष्ट्रीय स्तर पर तेल की क़ीमतें जब घटीं , तब उसने जनता को घटी क़ीमत पर तेल की उपलब्धता नहीं कराई | जबकि यह वादा किया गया था कि घटीं क़ीमतों का फ़ायदा जनता तक पहुंचाया जाएगा |
भूमण्डलीय व्यवस्था का अभिशाप पूंजीवाद की शक्ल में हमारे सामने मौजूद है | देश के बाज़ार विदेशी वस्तुओं से पटते जा रहे हैं। हम केवल विदेशी उद्यमों में होने वाली प्रतिस्पर्धा से लाभान्वित हो रहे हैं , लेकिन कुल मिलाकर यह अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने वाली नहीं कही जा सकती। भूमंडलीकरण को स्वीकार करने के सवाल पर लगभग सभी राजनैतिक दल सहमत थे , लेकिन विदेशी वस्तुओं को कम करके उन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए देश के भीतर प्रयत्न करने का साहस न तो किसी के पास था और न आज है । यह आशंका पहले से मौजूद रही है कि भूमंडलीकरण जैसे प्रयोग हमारे लिए मुश्किलों और परेशानियों का कारण बन जायेंगे | वास्तविकता यह है कि आज ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जिसमें हम अपने को आत्मनिर्भर कहकर संतोष जता सकें। हमारा देश कृषि प्रधान है | हमारी अर्थव्यवस्था मूलतः कृषि पर निर्भर है | यह थोड़े संतोष का विषय है कि कृषि – उत्पादनों से विदेशी निर्भरता थोड़ी समाप्त हुई है , लेकिन अभी भी उन्नत बीजों के इस्तेमाल, रासायनिक उर्वरक और कृषि के औज़ारों पर निर्भरता के मामलों में हम आत्मनिर्भर नहीं हुए हैं। आज भी हम विभिन्न प्रकार के उन्नत बीज विदेशों से आयात कर रहे हैं , लेकिन पेटेंट विदेशों के पास होने से हम इसके उत्पादन को बीज में कन्वर्ट नहीं कर सकते |
फिर उसे विदेशों से ही मंगाना पड़ेगा | यह क्षेत्र भी पूजीवाद की मार से त्रस्त है | इसी प्रकार सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी अस्पतालों और उद्यमों में प्रयुक्त होने वाली फिल्म और अन्य कुछ चीज़ें अपनी आवश्यकता भर बनाने में हम सक्षम नहीं हैं। हमने जो प्रयोग किये, उन्हें समुन्नत श्रेणी में नहीं शामिल कर सके , इसलिए उन्नत व्यापार और औद्योगिक आवश्यकताओं में हम पिछड़ी तकनीक से मुकाबला नहीं कर सकते। इस आधुनिक एवं परिवर्तनशील युग में हम कैसे अपने को जीवन योग्य और सक्षम बनायेंगे, यह अभी तय होना बाकी ही है। आज हमारे देश में बेरोज़गारी चरम पर है | आज हमारा देश दुनिया के सबसे अधिक बेरोजगारों का देश बन गया है। अंतर्राष्ट्री[य श्रम संगठन [ आई. एल. ओ. ] ने जो अनुमान लगाया है, वह केंद्र सरकार के लिए खतरे की घंटी है। इसमें कहा गया है कि वर्ष 2018 में भारत में बेरोजगारों की संख्या 1.86 करोड़ रहने का अनुमान है। साथ ही 2019 में यह संख्या 1.89 करोड़ तक बढ़ जाने की आशंका है | रिपोर्ट के मुताबिक, इस समय देश की 11 फीसदी आबादी बेरोजगार है। ये वे लोग हैं जो काम करने लायक हैं, लेकिन उनके पास रोजगार नहीं है। इस प्रतिशत को अगर संख्या में देखें, तो पता चलता है कि देश के लगभग 12 करोड़ लोग बेराजगार हैं। इसके अलावा बीते साढ़े तीन साल में बेरोजगारी की दर में जबरदस्त इजाफा हुआ है। केंद्र सरकार के श्रम मंत्रालय के श्रम ब्यूरो के सर्वे से भी सामने आया है कि बेरोजगारी दर पिछले पांच साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई है। गौरतलब है कि मोदी सरकार की उपलब्धि केवल विदेशी मुद्रा भंडारण में आई वृद्धि है |
वास्तव में यह वृद्धि विदेशी पोर्टफ़ोलियो निवेशकों के कारण हुई है | इसी के चलते भारतीय रुपए में मजबूती आई है | इस प्रकार हम कह सकते हैं कि यह विदेशी मुद्रा की वृद्धि का आधार सेंटीमेंटल है , जिसका भारतीय अर्थव्यस्था से कुछ ख़ास लेना – देना नहीं है | हाँ , अगर निर्यात से विदेशी मुद्रा आती है , तो इससे निश्चय ही अर्थव्यवस्था मज़बूत होगी , बेरोज़गारी घटेगी | लाभकारी विदेशी मुद्रा आने का सर्वमान्य सिद्धांत यही है कि जितना निर्यात बढ़ेगा, उतनी ही विदेशी मुद्रा आयेगी और इससे हमारा आयात कम हो तो यह संतुलन लाभकारी होगा। यदि आमदनी कम और खर्च अधिक होगा, तो हमारी निर्भरता बढ़ती जायेगी और हम कंगाल होते जायेंगे | विदेशी पूंजी को देश में लाने और इसके विनियोजन के लिए मोदी सरकार प्रयासरत है , लेकिन इससे हमारी अर्थव्यवस्था कितनी मज़बूत हुई है , यह गौरतलब है | आज के युग में भी युद्धक अस्त्रों और हथियारों पर सबसे अधिक खर्च होता है | पूंजीवाद ने ऐसी स्थितियां बना दी हैं कि हर देश अपना सबसे अधिक धन इस मद में बहाने के लिए मजबूर है | यदि हमारी विदेशी निर्भरता बढ़ती जायेगी तो अर्थव्यवस्था इससे कमजोर होती जाएगी, इसे रोका नहीं जा सकता। हमारे हस्तकला, गृह और कुटीर उद्योग लोगों को काम देने में सहायक होंगे, इन्हें हमें सुरक्षित करना पड़ेगा , लेकिन यदि मुक्त व्यवसाय इनको समाप्त करने में सहायक हो तो देश में बेरोज़गारों की संख्या और भी बढ़ेगी। गरीबी और अमीरी का अन्तर तथा बेरोजगारी निरंतर बढ़ती ही जा रही है। आज यही हो रहा है , जिन पर तत्काल काबू पाने की ज़रूरत है | – Dr RP Srivastava
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