आज के डिजिटल युग में ‘ मस्टर रोल ‘ और ‘ फीडिंग सिस्टम ‘ ने भ्रष्टाचार को बहुत आसान बना दिया है | इससे भ्रष्ट अधिकारी भ्रष्टाचार के आरोपों से भी कुछ बचे रहते हैं, मगर उनकी आमदनी अधिक होती है , क्योंकि पारदर्शिता बनी रहती है , वह भी ऑनलाइन ! अब हर सरकारी विभाग में यही हो रहा है कि ग्राम प्रधान , ग्राम विकास अधिकारी से लेकर अन्य विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से ऐसे नामवाले मज़दूरों का मस्टर रोल तैयार होता है , बल्कि तैयार रहता है , जिनसे फीड कराई गई रक़म बहुत आसानी से हासिल की जा सके | लेकिन सुहेलवा वन्य जीव प्रभाग , बलरामपुर का भ्रष्टाचार में कोई सानी नहीं है | यहाँ के बनकटवा रेंज में मनरेगा के तहत दो – दो , ढाई – ढाई महीनों तक काम लेने के पांच वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद लगभग दर्जन भर मजदूरों को अभी तक मज़दूरी नहीं दी गई है | मज़दूर उच्चधिकारियों से बार – बार गुहार लगा चुके हैं , जिसका कोई नतीजा नहीं निकल सका है | बलरामपुर के तत्कालीन प्रभागीय वनाधिकारी डॉ . राजीव मिश्रा ने केशव राम एवं अन्य मजदूरों को साक्ष्यों के साथ विगत 20 नवंबर 2017 को बलरामपुर स्थित प्रभागीय कार्यालय में बुलाया था , लेकिन इस पत्र को 23 नवंबर 17 की रात लगभग नौ बजे को मजदूरों को दिया गया | वन विभाग के बनकटवा रेंज के तिर्री नामक वाचर ने इस पत्र को केशव राम को सौंपा और बिना उनका दस्तखत कराए चला गया | केशव राम ने बताया कि इस स्थिति में हम लोग कैसे हाज़िर हो सकते थे , अतः हम लोगों ने डी एफ ओ महोदय को रजिस्टर्ड पत्र लिखा, जिसका कोई जवाब नहीं मिला |
मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्य नाथ के पास शिकायती पत्र लिखने के बाद तत्कालीन उप श्रमायुक्त बाल गोविन्द के बाद डी एफ ओ ने मज़दूरों को बुलाने की औपचारिकता की थी | उल्लेखनीय है कि वर्ष 2015 के अक्टूबर में बनकटवा वन क्षेत्र के तत्कालीन रेंजर पी डी राय ने भी इसी तरह जाँच की थी और समय निकल जाने के बाद नोटिस भेजा था | फिर मीडिया में मामला उछला , तो उन्होंने मजदूरों को बुलाया , उनसे दस्तखत अथवा अंगूठे की छाप ली और आश्वासन दिया कि ‘मैंने लिख दिया है | आप सभी को मजदूरी अवश्य मिलेगी | ‘ लेकिन मजदूरों को मजदूरी नहीं मिल पाई | तत्कालीन उप श्रमायुक्त बाल गोविन्द ने सभी मज़दूरों को बुलाया था और उनके बयान सुने थे | जिस वाचर [ सिया राम ] ने उनसे तत्कालीन फारेस्ट गार्ड नूरुल हुदा के आदेश पर काम लिया था , उसने भी शपथपत्र देकर मजदूरों के काम करने की बात पुष्ट की | ग्राम मैनडीह और टेंगनवार के दर्जन भर से अधिक मजदूरों ने बनकटवा वन क्षेत्र में 13 जनवरी से 26 मार्च 20 14 के बीच विभिन्न अवधियों में झाड़ी की सफाई और वृक्षारोपण का कार्य किया था , लेकिन उन्हें आज तक मजदूरी नहीं दी गई | आरोप है कि फर्जी दस्तावेजों के सहारे अपने लोगों को भुगतान करवा दिया गया , जिन्होंने कोई काम किया ही नहीं था | फिर बैंक से धनराशि निकलवाकर वनाधिकारी व कर्मचारी डकार गए | इस बाबत सामाजिक कार्यकर्ताओं के कई वक्तव्य मीडिया में आ चुके हैं |
इस मामले में जब आर टी आई क़ानून का सहारा लिया गया, तो वन विभाग के अधिकारी अपने जवाबों से अधिकारी अपने ही बुने भ्रष्टाचार के जाल में फंसते नज़र आए | इस मामले में सोहेलवा वन्य जीव प्रभाग के तत्कालीन प्रभागीय वनाधिकारी एस . एस . श्रीवास्तव ने भ्रष्टाचार को परवान पर चढाते हुए आर . टी . आई . के जवाब में जो लिखित तथ्य पेश किये, वे एक – दूसरे के बिलकुल प्रतिकूल और ख़िलाफ़ हैं | ऐसे में सच उनकी कौन – सी बात है , यह तो वही बता सकते हैं या फिर वे बता सकते हैं , जो भुक्तभोगी हैं और भ्रष्टाचारियों के बुरी तरह शिकार हैं और जिन्हें पांच वर्ष बीत जाने पर भी हज़ारों रुपयों की मज़दूरी नहीं मिल सकी है | अब आइए जानें , इस मामले के चंद काले कारनामों को – तत्कालीन प्रभागीय अधिकारी श्री श्रीवास्तव ने आर . टी . आई . के प्रत्युत्तर में 23 जुलाई 15 को लिखे पत्र में सूचित किया था कि मज़दूरों – केशव राम , राम वृक्ष , मझिले यादव , राम बहादुर , बड़कऊ यादव , कृपा राम , खेदू यादव , राम प्यारे , शिव वचन , शंभू यादव , संतोष कुमार यादव और रामफल – में से सिर्फ़ चार ने काम किये और उनका भुगतान किया गया | आर .टी .आई . में यह पूछा गया था कि बनकटवा रेंज में मनरेगा के तहत जनवरी 2014 से मार्च 14 के बीच किन मज़दूरों से काम कराए गए ? जवाब में यह विवरण दिया गया – राम फल ने 21 जनवरी से 1 फरवरी 14 और 1 मार्च 14 से 11 मार्च 14 के बीच कुल 23 दिनों तक काम किया , जिन्हें 25 मार्च और 31 मार्च 14 को क्रमशः 1704 रुपए व 1562 रुपए भुगतान किए गए | इस प्रकार उनके खाते में कुल 3266 रूपये डाले गए | रामफल ने बताया कि उन्हें एक पैसा भी नहीं मिला | उनके बैंक खाते में जनवरी – मार्च 14 के बीच के काम का कोई भुगतान नहीं आया ! यह पैसा कहाँ गया , इसका जवाब वन विभाग के अधिकारी ही दे सकते हैं | प्रभागीय वनाधिकारी ने लिखित रूप में बताया है कि कृपा राम ने उक्त अवधि में 35 दिन काम किया , जिसके उन्हें 4970 रूपये भुगतान किये गए | कृपा राम ने बताया कि उन्हें कोई भुगतान नहीं प्राप्त हुआ है | उनके अनुसार , पासबुक में इस रक़म की कोई इंट्री नहीं है | कृपा राम कहते हैं कि ” तत्कालीन फारेस्ट गार्ड , वाचर सिया राम और राम किशुन के कहने पर 40 दिन काम किया , लेकिन एक भी दिन की मज़दूरी नहीं मिली |
प्रभागीय वनाधिकारी ने यह भी विवरण दिया कि बडकऊ ने 35 दिन काम किया , जबकि राम बहादुर ने 23 दिन जिन्हें क्रमशः 4970 और 3266 रुपए भुगतान किये गए | इन दोनों ने भी यही बात कही कि उन्हें कोई भुगतान नहीं मिला है | फिर यह झूठी जानकारी क्यों दी गई ? यह तथ्य उस समय भी सामने आया, जब बलरामपुर [ उत्तर प्रदेश ] के पूर्व उप श्रमायुक्त बाल गोविन्द ने बनकटवा रेंज के पूर्व रेंजर तिलक राम आर्य को तलब किया | उप श्रमायुक्त ने मज़दूरों को भी बुलाया था | उन्होंने मज़दूरों के बैंक पासबुक रेंजर के सामने रखते हुए पूछा कि जब वन विभाग ने इन चार मज़दूरों को मज़दूरी भुगतान की है, तो इनके बैंक पास बुकों में इनकी इंट्री क्यों नहीं है ? अगर आप भुगतान करते तो पासबुकों में इंट्री ज़रूर होती | इस पर तिलक राम आर्य की घिग्घी बंध गई | उन्होंने कहा कि कंप्यूटर पर चेक करके बताता हूँ | फिर उन्होंने जो चार एकाउंट नंबर बताए, वे असली मज़दूरों के एकाउंट नंबर से भिन्न थे | इस पर उप श्रमायुक्त ने सवाल किया कि यहां बात जंगल से सटे गांव मैनडीह और टेंगनवार की हो रही है और आप जंगल से लगभग सात किमी दूरी पर स्थित इसी नाम वाले अन्य लोगों की बात कर रहे हैं, जिनकी वल्दियत अलग – अलग है | इस पर तिलक राम आर्य के हाथ – पैर फूल गए | बुरे फंसे आर्य जी की परेशानी उस समय और बढ़ गई, जब उप श्रमायुक्त ने यह कहा कि आप नियमानुसार जंगल से इतनी दूरी पर रहनेवाले से मनरेगा कार्य ले ही नहीं सकते | आपने तो काम भी नहीं लिया और भुगतान कर दिया | साथ ही जिन्होँने काम किया , उनका भुगतान ही नहीं किया ! उप श्रमायुक्त ने कहा कि आपको तो तत्कालीन फ़ारेस्ट गार्ड नूरुल हुदा को गिरफ़्तार करके क़ानूनी कार्रवाई करनी चाहिए | इस फटकार के बाद भी मज़दूरों को मज़दूरी नहीं मिल पाई है | इस मामले में अब एक ही रास्ता पी आई एल दाखिल करने का बचता है | क्या कोई व्यक्ति या संगठन इसमें मज़दूरों की सहायता कर सकता है ? – ”भारतीय संवाद” संवाददाता