बलरामपुर के बनकटवा वन रेंज में चार वर्ष बाद भी दर्जन भर मजदूरों को मज़दूरी नहीं
यह कहना अनुचित न होगा कि ‘ मस्टर रोल ‘ और ‘ फीडिंग सिस्टम ‘ ने भ्रष्टाचार को बहुत आसान बना दिया है | इससे भ्रष्ट अधिकारी भ्रष्टाचार के आरोपों से भी कुछ बचे रहते हैं , मगर उनकी आमदनी अधिक होती है , क्योंकि पारदर्शिता बनी रहती है , वह भी ऑनलाइन ! अब लगभग हर सरकारी विभाग में यही हो रहा है कि ग्राम प्रधान , ग्राम विकास अधिकारी से लेकर अन्य विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से ऐसे नामवाले मज़दूरों का मस्टर रोल तैयार होता है , बल्कि तैयार रहता है , जिनसे फीड कराई गई रक़म बहुत आसानी से हासिल की जा सके |
लेकिन सुहेलवा वन्य जीव प्रभाग , बलरामपुर का भ्रष्टाचार में कोई सानी नहीं है | यहाँ भ्रष्टाचार का खुला रूप देखने को मिलता है | यहाँ के अधिकारी और कर्मचारी अपने को गुलाम भारत के अंग्रेजों से कम नहीं समझते ! यहाँ के बनकटवा रेंज में दो – दो , ढाई – ढाई महीनों तक काम लेने के चार वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद लगभग दर्जन भर मजदूरों को अभी तक मज़दूरी नहीं दी गई है | मज़दूर उच्चधिकारियों से बार – बार गुहार लगा चुके हैं , जिसका कोई सार्थक नतीजा नहीं निकल सका है | मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास गुहार लगाने पर पिछले दिनों एक बार अवश्य सुनवाई हुई | लगभग चार महीने पहले मनरेगा मजदूरों की मजदूरी के बाबत बलरामपुर के तत्कालीन श्रम उपायुक्त [ मनरेगा ] बाल गोविंद ने उत्पीड़ित मजदूरों को बुलाया था और आश्वासन दिया था कि मजदूरी अवश्य मिलेगी | उन्होंने साक्ष्य सहित अन्य कागज़ात भी जमा कराए थे |
इसके बाद सोहेलवा वन्य जीव प्रभाग , बलरामपुर के प्रभागीय वनाधिकारी डॉ . राजीव मिश्रा ने केशव राम एवं अन्य मजदूरों को साक्ष्यों के साथ विगत 20 नवंबर 2017 को बलरामपुर स्थित प्रभागीय कार्यालय में बुलाया था , लेकिन इस पत्र को 23 नवंबर 17 की रात लगभग नौ बजे को मजदूरों को दिया गया | वन विभाग के बनकटवा रेंज के तिर्री नामक वाचर ने इस पत्र को केशव राम को सौंपा और बिना उनका दस्तखत कराए चला गया | केशव राम ने बताया कि इस स्थिति में हम लोग कैसे हाज़िर हो सकते थे , अतः हम लोगों ने डी एफ ओ महोदय को रजिस्टर्ड पत्र लिखकर नई तिथि व समय मांग की है , लेकिन काफ़ी समय बीत जाने पर भी डी एफ ओ का कोई जवाब नहीं आया ! आखिर इस कारस्तानी को क्या समझा जाए ? यही ना कि यह कागज़ी खानापूर्ति है !!!
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2015 के अक्टूबर महीने में बनकटवा वन क्षेत्र के तत्कालीन रेंजर पी डी राय ने भी इसी तरह जाँच की थी और समय निकल जाने के बाद नोटिस भेजा था | फिर मीडिया में मामला उछला , तो उन्होंने मजदूरों को बुलाया , उनसे दस्तखत अथवा अंगूठे की छाप ली और आश्वासन दिया कि ‘मैंने लिख दिया है | आप सभी को मजदूरी अवश्य मिलेगी | ‘ लेकिन मजदूरों को अभी तक मजदूरी नहीं मिल पाई |
लेकिन अपने जवाबों से अधिकारी ज़रूर अपने ही बुने भ्रष्टाचार के जाल में फंसते जा रहे हैं | इस मामले में सोहेलवा वन्य जीव प्रभाग के तत्कालीन प्रभागीय वनाधिकारी एस . एस . श्रीवास्तव ने भ्रष्टाचार को परवान पर चढाते हुए आर . टी . आई . के जवाब में जो लिखित तथ्य पेश किये हैं , वे एक – दूसरे के बिलकुल प्रतिकूल और ख़िलाफ़ हैं | ऐसे में सच उनकी कौन – सी बात है , यह तो वही बता सकते हैं या फिर वे बता सकते हैं , जो भुक्तभोगी हैं और भ्रष्टाचारियों के बुरी तरह शिकार हैं और जिन्हें चार वर्ष बीत जाने पर भी हज़ारों रुपयों की मज़दूरी नहीं मिल सकी है |
अब आइए जानें , इस मामले के चंद काले कारनामों को – तत्कालीन प्रभागीय अधिकारी श्री श्रीवास्तव ने आर . टी . आई . के प्रत्युत्तर में 23 जुलाई 15 को लिखे पत्र में सूचित किया था कि मज़दूरों – केशव राम , राम वृक्ष , मझिले यादव , राम बहादुर , बड़कऊ यादव , कृपा राम , खेदू यादव , राम प्यारे , शिव वचन , शंभू यादव , संतोष कुमार यादव और रामफल – में से सिर्फ़ चार ने काम किये और उनका भुगतान किया गया | आर .टी .आई . में यह पूछा गया था कि बनकटवा रेंज में मनरेगा के तहत जनवरी 2014 से मार्च 14 के बीच किन मज़दूरों से काम कराए गए ? जवाब में यह विवरण दिया गया –
राम फल ने 21 जनवरी से 1 फरवरी 14 और 1 मार्च 14 से 11 मार्च 14 के बीच कुल 23 दिनों तक काम किया , जिन्हें 25 मार्च और 31 मार्च 14 को क्रमशः 1704 रुपए व 1562 रुपए भुगतान किए गए | इस प्रकार उनके खाते में कुल 3266 रूपये डाले गए | रामफल ने बताया कि उन्हें एक पैसा भी नहीं मिला | उनके बैंक खाते में जनवरी – मार्च 14 के बीच के काम का कोई भुगतान नहीं आया ! यह पैसा कहाँ गया , इसका जवाब वन विभाग के अधिकारी ही दे सकते हैं | प्रभागीय वनाधिकारी ने लिखित रूप में बताया है कि कृपा राम ने उक्त अवधि में 35 दिन काम किया , जिसके उन्हें 4970 रूपये भुगतान किये गए | कृपा राम ने बताया कि उन्हें कोई भुगतान नहीं प्राप्त हुआ है | उनके अनुसार , पासबुक में इस रक़म की कोई इंट्री नहीं है | कृपा राम कहते हैं कि ” तत्कालीन फारेस्ट गार्ड , वाचर सिया राम और राम किशुन के कहने पर 40 दिन काम किया , लेकिन एक भी दिन की मज़दूरी नहीं मिली | उल्लेखनीय है कि मजदूरों से काम लेनेवाले फारेस्ट गार्ड नूरुल हुदा पहले ही अपने अधिकारियों को लिखित रूप से बता चुके हैं कि उन्होंने उक्त किसी मजदूर से काम नहीं लिया | अतः तत्कालीन डी एफ ओ और उनकी बात एक – दूसरे के विपरीत है |
प्रभागीय वनाधिकारी ने यह भी विवरण दिया कि बडकऊ ने 35 दिन काम किया , जबकि राम बहादुर ने 23 दिन जिन्हें क्रमशः 4970 और 3266 रुपए भुगतान किये गए | इन दोनों ने भी यही बात कही कि उन्हें कोई भुगतान नहीं मिला है | फिर यह झूठी जानकारी क्यों दी गई ? मालूम हुआ कि उक्त 12 मजदूरों में से जिन चार मजदूरों को मज़दूरी देने की बात वनाधिकारी महोदय कर रहे हैं , वह झूठी और भ्रामक बात है | इसकी पुष्टि इन्हीं अधिकारी [ एस .एस .श्रीवास्तव द्वारा प्रदान की गई एक अन्य आर .टी .आई . सूचना [ मस्टर रोल ] से होती है | यह मस्टर रोल जनवरी – मार्च 2014 के बीच कराए गए मनरेगा कार्यों का है | उल्लेखनीय बात यह है कि इसमें कहीं भी उक्त चार मज़दूरों – रामफल , कृपा राम , बड़कऊ और राम बहादुर ] के नाम नहीं हैं , जिनसे काम लेने और उन्हें मज़दूरी भुगतान की बात की गई है !! यही नहीं मस्टर रोल में 28 जनवरी 14 से 8 फरवरी 14 तक ही मनरेगा मजदूरों से काम लेने की बात कही गई है , जबकि प्रभागीय अधिकारी 21 जनवरी 14 से 11 मार्च 14 के बीच काम लेना बताते हैं | इस प्रकार एक ही अधिकारी के उत्तरों में घोर विरोधाभास और अन्तर्विरोध मौजूद है , जो बहुत भ्रमकारी और गुमराहकुन है |
पूरे मस्टर रोल में शिकायतकर्ता 12 मजदूरों में से किसी का भी नहीं है , फिर कैसे कहा जा रहा है कि चार मज़दूरों ने काम किया और उनको भुगतान भी किया गया ? इसकी विभागीय जाँच न कराकर अन्य शासकीय जाँच होनी चाहिए | जब मस्टर रोल लिस्ट में नाम ही नहीं तो चार मज़दूरों के काम और उनकी मजदूरी के भुगतान का कैसे दावा किया जा रहा है ? मस्टर रोल में अन्य मजदूरों के काम करने की तारीखें दर्ज हैं , वे प्रभागीय वनाधिकारी , बलरामपुर के 23 जुलाई 15 के जवाब में बताई उन तारीखों से भिन्न हैं , जो उन्होंने चार मजदूरों के सिलसिले में लिखी हैं | यह साफ तौर पर मजदूरी हड़पने और आर . टी . आई . का झूठा उत्तर देने का मामला है | जिन्हें अमलन मज़दूरी भुगतान की गई है , उन्होंने काम ही नहीं किये ! और जिन्होंने काम किए , उन्हें मज़दूरी नहीं भुगतान की गई |
जब श्रम उपायुक्त के सवालों के जवाब में ख़ामोश हुआ वन विभाग
इस भ्रष्टाचार के मामले में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर बलरामपुर के तत्कालीन श्रम उपायुक्त बाल गोविन्द ने कुछ समय पहले डी एफ ओ राजीव मिश्रा को तलब किया | मगर वे खुद न आकर बनकटवा के रेंजर तिलक राम आर्य को भेजा , जो कुछ अन्य वनकर्मियों के हमराह हाज़िर हुए | उस समय उनके कार्यालय में वे अधिकांश मजदूर उपस्थित थे , जिनसे वन विभाग ने चार साल पहले काम लिया था और उन्हें अभी तक मजदूरी नहीं दी गई है | इस मौके पर वन विभाग के वाचर सिया राम भी मजदूरों के साथ आए थे , जिन्होंने शपथपत्र देकर विस्तार से यह बताया कि उन्होंने तत्कालीन फारेस्ट गार्ड नूरुल हुदा के कहने पर मजदूरों से कब और कितने दिनों तक क्या – क्या काम लिया | श्रम उपायुक्त बाल गोविन्द ने आर टी आई के जवाब में वन विभाग के इस दावे की सच्चाई जाननी चाही कि ” वन विभाग यह कहता है कि यहाँ उपस्थित श्रमिकों में से चार श्रमिकों – रामफल , कृपा राम , बड़कऊ और राम बहादुर – को मजदूरी का भुगतान किया गया | लेकिन उनके बैंक पासबुकों में तो ऐसी कोई इंट्री मौजूद ही नहीं है ! ” उन्होंने चारों के बैंक पासबुकों को दिखाते हुए कहा | इस पर रेंजर तिलक राम आर्य सकते में आ गए | उन्होंने अपने साथ के वनकर्मी को डाटा चेक करने को कहा , श्रम उपायुक्त के कार्यालय के कंप्यूटर से डाटा चेक करके बताया कि ये चारों श्रमिक अन्यत्र गाँव के हैं , अतः उनके बैंक पासबुक नंबर दूसरे हैं | इस पर उपायुक्त महोदय ने कहा कि मनरेगा नियमावली के अनुसार कार्यस्थल से इतनी दूरीवाले व्यक्ति से काम नहीं लिया जा सकता | फिर आपने क्यों काम लिया ? इस फटकार पर वन विभाग के लोगों कि घिग्घी बंध गई | उपायुक्त महोदय ने यह भी कहा कि जब मस्टररोल में इनका नाम ही नहीं , तो कैसे भुगतान किया गया ? यह एक गंभीर मामला है | वन विभाग तत्कालीन फारेस्ट गार्ड नूरुल हुदा के ख़िलाफ़ पुलिस में एफ आई आर दर्ज कराए और मजदूरी भुगतान के साथ ही दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करे , अन्यथा हम कार्रवाई करेंगे |
इसके बाद ही डी एफ ओ ने मजदूरों को बुलाने और जाँच कि रस्मअदायगी की थी | इस मामले की गहराई में जाने पर पता चला कि तत्कालीन फारेस्ट गार्ड नूरुल हुदा खां ने , जो बकरियों की ख़रीद – बिर्की का धंधा भी करते थे , बकरी चरवाहों समेत अपने लोगों के नाम उक्त अवधि के मस्टर रोल में डलवाकर उन्हें फर्ज़ी तौर पर मज़दूर बनाकर मनरेगा की हज़ारों रूपये मज़दूरी हड़प ली | हजरत ,बाबू अली , मुहम्मद अली , इन्साफ अली , छोटकऊ , शमसुद्दीन , किस्मत अली , अहमद अली , रोज़ अली , कमरुद्दीन , लंगड़ , जाबिद , गोसुल और बाबा दीन के मुताबिक़ उक्त अवधि में इन्होंने कोई मनरेगा काम ही नहीं किया | इनमें से कुछ ने नाम न प्रकाशित करने की बात कहते हुए बताया कि ‘ साहब ने हमारे खाते में हज़ारों रूपये डलवाए थे , जिसे वाचर राम किशुन हमसे निकलवाकर ले गया | ‘ – Dr RP Srivastava